प्रधानमंत्री का तेलंगाना दौरा और संगारेड्डी का ऐतिहासिक मंदिर
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में तेलंगाना राज्य के संगारेड्डी ज़िले का भ्रमण किया, जहां उन्होंने विभिन्न विकास प्रोजेक्टों का उद्घाटन किया। इन प्रोजेक्टों की कुल लागत 7200 करोड़ रुपये है, जो क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देगी। संगारेड्डी का नाम सबसे अधिक मान्यता प्राप्त श्री केतकी संगमेश्वर स्वामी मंदिर के कारण भी प्रसिद्ध हुआ है, जिसकी महिमा पूरे भारत में गूँज रही है और भक्तगण इसके दर्शन के लिए आते हैं।
एक पुराणिक कथा की झलक
तेलंगाना टूरिज्म की वेबसाइट के अनुसार, इस मंदिर का इतिहास और इसके पीछे की कहानी बड़ी ही रोचक है। सूर्य वंश के राजा कुपेंद्र को केतकी वनम के जंगलों से होकर गुज़रने के दौरान एक अनोखी जलधारा का दर्शन हुआ, जहां उन्होंने स्नान करके अपने दीर्घकालिक त्वचा रोग का इलाज पा लिया था। यह उनके लिए एक अद्भुत अनुभव था क्योंकि वही रोग वैद्य भी नहीं सुधार पाए थे। उसी रात राजा को सपने में भगवान शिव के दर्शन हुए और उन्होंने राजा से उस स्थान पर एक मंदिर बनाने की प्रेरणा दी।
इस कहानी को मान्यता देते हुए राजा कुपेंद्र ने उसी जलस्रोत पर शिव मंदिर की स्थापना की और उसे समर्पित एक जलधारा को भी बनाया, जिसे ‘पुष्करणी’ कहा जाता है। यह पुष्करणी देवी-देवताओं के आठ तीर्थों नारायण, धर्म ऋषि, वरुण, सोम, रुद्र, इंदिरा और दाता की पवित्रता से युक्त मानी जाती है और ‘अष्ट तीर्थ अमृत गुंडम’ के नाम से प्रसिद्ध है।
ब्रह्मा जी का इस मंदिर से संबंध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के पश्चात इसी स्थान पर ध्यान किया था और वहीं उन्होंने वर्तमान शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर में केतकी के फूलों से पूजा की जाती है, जो उनके मामले में एक अपवाद है, क्योंकि कहा जाता है कि इन फूलों का उपयोग शिव पूजा में नहीं किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में केतकी वनम के उसी जलधारा के जल का प्रयोग होता है, जिसे राजा ने अपनी श्रद्धा से ‘पुष्करणी’ में तब्दील कर दिया था।
समापन और पुनरावलोकन
इस भव्य मंदिर और उससे जुड़े चमत्कारिक किस्सों की महत्ता केवल भारतीय ही नहीं, विश्व के संस्कृति प्रेमियों के बीच भी बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री का दौरा न केवल तेलंगाना के विकास की ओर एक कदम है, बल्कि यह संगारेड्डी के प्राचीन मंदिर की महानता को भी रेखांकित करता है। संगारेड्डी और इसके दिव्य मंदिर की कहानी साक्षी है कि किस प्रकार प्राचीन मान्यताएँ और आस्था आधुनिक युग में भी जीवंत रह सकती हैं।
जानकारी: इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक मान्यताओं और सदियों पुरानी परंपराओं पर आधारित है। इसकी वास्तविकता की पुष्टि के लिए वैज्ञानिक प्रमाणों का होना आवश्यक है।