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महारानी अहिल्याबाई: न्याय की देवी का अपने ही पुत्र के लिए अनूठा इंसाफ

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मालवा की गौरवशाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर

भारतीय इतिहास परिपूर्ण है वीरता और न्यायप्रियता से जिनमें महारानी अहिल्याबाई होलकर का नाम सर्वोत्कृष्ट है। मालवा की इस महारानी ने साहस के साथ-साथ अपने न्यायप्रिय आचरण से सभी का दिल जीता था। उनके न्याय में कभी भी अपने और पराये का भेद नहीं होता था। कहानियां और इतिहास गवाह हैं कि वे जीव मात्र की पीड़ा को समझती और परिपूर्ण इंसाफ के लिए प्रतिबद्ध रहती थीं।

रथ के नीचे कुचलने की घटना और मां का इंसाफ

एक अविस्मरणीय घटना में मालेजी राव, अहिल्याबाई होलकर के पुत्र, ने सड़क किनारे खड़े एक बछड़े को अपने रथ से कुचल दिया और बिना रुके आगे बढ़ गए। इस दुर्घटना से घायल होकर बछड़े की मौत हो गई और उसकी मां गाय अपने मरते हुए बछड़े के पास सड़क पर ही बैठ गई।

महारानी अहिल्याबाई का न्याय और स्नेहिल हृदय

जब अहिल्याबाई होल्कर उसी मार्ग से गुज़रीं, तो उन्होंने वह दृश्य देखा और तुरंत अपनी यात्रा रोक दी। उनके हृदय को यह घटना इतनी आहत कर गई कि उन्होंने अपने सैनिकों को उस दोषी का पता लगाने का आदेश दिया जिसके कारण इस निर्दोष प्राणी की जान गई थी। जब पता चला कि यह हादसा उनके खुद के पुत्र के द्वारा हुआ है, तो उन्होंने किसी का मोह ना करते हुए कठोर निर्णय लिया।

माता के अग्निपरीक्षा और रथ से कुचलने का आदेश

अहिल्याबाई होलकर ने अपने पुत्र मालेजी राव की पत्नी मेनाबाई को दरबार में बुलाया और पूछा कि यदि कोई किसी के मृत बछड़े को किसी गाय के सामने मार डाले, तो उस अपराधी को क्या दंड दिया जाना चाहिए? मेनाबाई के मृत्युदंड सुझाने पर महारानी ने अपने पुत्र को उसी तरीके से मृत्युदंड देने का आदेश दिया जिससे बछड़े की मृत्यु हुई थी।

रानी का दृढ़ निश्चय और अंतिम परीक्षा

जब कोई सारथी उनके पुत्र को रथ के नीचे कुचलने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब महारानी ने स्वयं रथ की बागडोर थाम ली। वह एक महान सम्राज्ञी थीं जो न्याय के मार्ग पर चलने के लिए किसी भी कठिनाई का सामना कर सकती थीं।

करुणा की मूर्ति गाय और अंतिम नैतिक विजय

जैसा कि वह रथ चला रही थीं, वह गाय जिसने अपने बछड़े को खो दिया था, रथ के सामने आकर खड़ी हो गई। गाय की इस करुणा को देखते हुए महारानी ने अपने फैसले को पलट दिया और अपने पुत्र को क्षमा कर दिया।

यह घटना आज भी मानवीयता और न्याय के इतिहास में एक मिसाल के रूप में जानी जाती है और उस स्थान को ‘आड़ा बाज़ार’ के नाम से पहचाना जाता है।

अतः यह कहानी सिर्फ एक राजा या रानी की नहीं, बल्कि न्यायप्रियता, साहस और मानवता की मिसाल पेश करती है। अहिल्याबाई की यह घटना आज भी प्रेरणास्रोत बनी हुई है और उनकी महानता को चिरस्थायी बनाती है।

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