भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व का अपना एक विशेष महत्व और स्थान होता है। इन्हीं पर्वों में होली का त्योहार भी शामिल है, जोकि न केवल रंगों का पर्व है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है। होली पर्व दो दिन तक चलता है – पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन धुलेंडी या रंग वाली होली। वर्ष 2024 में होली के इस उत्सव का आरंभ 24 मार्च, रविवार को होलिका दहन के साथ होगा और इस बार इसकी विशेषता भद्रा का प्रभाव है।
होलिका दहन का दिन भद्रा नक्षत्र के प्रभाव में आ रहा है, जिसके चलते पूर्वाह्न 9:24 बजे से रात्रि 10:27 बजे तक भद्रा काल निर्धारित किया गया है। इसी काल में होलिका दहन वर्जित माना जाता है, जिसके कारण शुभ मुहूर्त में देरी हो रही है। शुभ मुहूर्त संध्या 11:14 बजे से मध्य रात्रि 12:29 बजे तक निर्धारित है। इस समयावधि में होलिका दहन करना शुभ माना जाता है और इसे नियमों और विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाना चाहिए।
होलिका दहन की पवित्र विधि में सर्वप्रथम शुद्ध मन से पूजा की जाती है। पूजा में महिलाएं और पूरा परिवार होलिका के आसपास एकत्रित होकर विशेष मंत्रों और आहुतियों से पूजन करते हैं। पूजा में चढ़ाई गई सामग्री में गेहूं की बालियां, गन्ना, मूंग, बताशा और अन्य पूजा की वस्तुएं शामिल की जाती हैं। पूजा के बाद होलिका दहन का समय आता है, जिसमें सभी विष संहार और कल्याण के लिए संकल्प लेकर अग्नि को शक्ति प्रदान करते हैं।
होली की पौराणिक कथा के अनुसार, दानव हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को नाना प्रकार से मारने का प्रयास किया, किन्तु हर बार प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से बच जाता था। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका, जोकि आग से न जलने का वरदान प्राप्त थी, को कहा अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए। किन्तु ऐसा होता है कि होलिका जलकर भस्म हो जाती है, और भक्त प्रह्लाद सही सलामत बच जाते हैं। इस पूरी घटना को सच्चे भक्ति की शक्ति के रूप में पुनः अनुस्मरण किया जाता है, और होलिका दहन को उसी प्राचीन कथा की याद में मनाया जाता है।
होलिका दहन के बाद, प्रतीकात्मक रूप में आम की डालियों और अन्य लकड़ियों की होली जलाई जाती है और उसे परिक्रमा दी जाती है। परिक्रमा व्यक्तिगत और सामूहिक दोषों से मुक्ति का सूचक है। साथ ही, यह शक्ति और ऊर्जा के संचार का भी प्रतीक है। भद्रा काल के दौरान इस पर्व को मनाना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय में मनाए जाने वाले अनुष्ठानों को विपुल सिद्धियाँ और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
इस बार का होलिका दहन सभी के लिए एक आध्यात्मिक अवसर है। चाहे वह पूजा अर्चना हो, घर आंगन की सफाई हो या पारस्परिक संबंधों की मजबूती हो, सभी क्षेत्रों में इसे जीवन की नई शुरुआत के रूप में देखा जाता है। सभी आगामी होलिका दहन के समय महत्वपूर्ण योजनाएँ बना सकते हैं और इस दिन से नयी उम्मीदों की शुरुआत की योजना बनाने में समर्थ होंगे।
अतः चलिए, इस होली को हम सभी संकल्प लें कि हम अपने अंतर्मन की बुराइयों को होलिका दहन की अग्नि में समर्पित कर दें, और अपने जीवन को रंगों की तरह सात्विक, जीवंत और खुशहाल बनाने का प्रण लें।