हिंदू पंचांग और दशा माता व्रत
भारतीय संस्कृति में पंचांग का महत्व अत्यंत विशेष है और इसके माध्यम से ही पर्वों और व्रतों की तिथियाँ निर्धारित होती हैं। इसी क्रम में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता व्रत का आयोजन किया जाता है। यह व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह धन, संपत्ति और समृद्धि को बढ़ाने के लिये भी अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
दशा माता का महत्व
दशा माता व्रत को करने से मान्यता है कि व्यक्ति के घर की दशा में सुधार आता है और दरिद्रता का निवारण होता है। इस व्रत में विशेष रूप से त्रिवेणी या पवित्र वृक्ष – पीपल, नीम और बरगद – की पूजा की जाती है। इन वृक्षों का प्रत्येक हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा अपार श्रद्धा के साथ पूजा जाता है क्योंकि इन्हें दिव्य और जीवनदायिनी शक्तियों का स्रोत माना जाता है।
व्रत का शुभ अवसर 2024 में
हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2024 में दशा माता व्रत 4 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिव्य पर्व पर महिलाएं सुबह से लेकर दोपहर तक यानी 6:29 AM से 8:02 AM और फिर 11:08 AM से 3:46 PM तक पूजा कर सकेंगी। इस अवधि में पूजा अर्चना करने से इसके फल को और भी अधिक माना जाता है।
पूजा विधि
दशा माता व्रत की पूजा विधि में सबसे पहले व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद पीपल के पेड़ को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर, पूजा की जाती है। विशेषत: इस दिन कच्चे सूत में 10 गांठ बाँध कर, उसकी पूजा की जाती है और पूजा समाप्ति के पश्चात उस डोरे को गले में धारण किया जाता है। इस रस्म को पूर्ण करने के बाद, विधि विधान से पीपल के पेड़ की 10 बार परिक्रमा करते हुए विष्णु मंत्रों का जाप किया जाता है।
दशा माता व्रत के दिन, नमक रहित भोजन करने का भी विधान है और पूजन के उपरांत दशा माता की आरती अवश्य करनी चाहिए।
दशा माता व्रत का अनुसरण
महिलाएं इस व्रत के नियम के अनुसार एक वर्ष तक गले में डोरा धारण करती हैं। ऐसा करने से मान्यता है कि परिवार में सदस्यों की उन्नति होती है और हर प्रकार की परेशानी से मुक्ति मिलती है। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति पूरे साल डोरे को धारण नहीं कर सकती है, तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में किसी शुभ दिन चुनकर इसे माता के चरणों में अर्पित करने का भी विधान है। इस पर्व पर साफ-सफाई का विशेष महत्व होता है, और घरेलू सामान या झाड़ू खरीदने की भी एक परंपरा है, जो घर की शुद्धिकरण और धन की आवक से जुड़ी है।
निस्संदेह, दशा माता व्रत हमारे भारतीय समाज में अधिक समृद्धि और सकारात्मकता लाने का एक शक्तिशाली माध्यम है। इसके माध्यम से हम न केवल पारंपरिक रीति-रिवाजों का आदर करते हैं बल्कि यह भी संकेत देते हैं कि हम प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण रिश्ता बनाए रखते हैं।