सोने की चोरी का दावा और प्रतिक्रिया
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह से 228 किलो सोना गायब होने का दावा किया है, जो एक बड़ी विवाद की वजह बन गया है। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति प्रबंधन ने तुरंत ही इस मामले पर सफाई जारी की और सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए दावा किया कि सोना पूरी तरह से सुरक्षित है और इसे विधिवत तरीके से प्रबंधित किया गया था।
आरोपों का विरोध और स्पष्टीकरण
मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने गर्भगृह से सोने की चोरी के आरोपों को निराधार और तथ्यहीन बताते हुए आरोप लगाने वालों को विवाद खड़ा करने की बजाय सक्षम स्तर पर मामले की जांच कराने का अनुरोध किया। उन्होंने इस मामले को षड्यंत्र करार देते हुए कहा कि दानदाता ने केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह को स्वर्णजड़ित करने की इच्छा प्रकट की थी और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए मंदिर समिति की बोर्ड बैठक में प्रस्ताव रख उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी गई।
दानदाता की भूमिका और सोने की परत
अजेंद्र अजय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस सोने का काम भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों की देखरेख में किया गया था। दानदाता ने अपने स्तर से स्वर्णकार से तांबे की प्लेटें तैयार करवाईं और फिर उन पर सोने की परतें चढ़ाई गईं। उन्होंने कहा कि सोना खरीदने से लेकर दीवारों पर जड़ने तक का पूरा काम दानी ने खुद कराया और मंदिर समिति की इसमें कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं थी।
आधिकारिक बिल और वाउचर
अजय ने बताया कि कार्य खत्म होने के बाद दानदाता ने सभी आधिकारिक बिल और वाउचर मंदिर समिति को दे दिए थे, जिसके बाद इसे नियमानुसार स्टॉक बुक में दर्ज किया गया। उन्होंने कहा कि दानदाता ने मंदिर समिति से आयकर अधिनियम की धारा-80 जी का प्रमाणपत्र भी नहीं मांगा।
शंकराचार्य का गुस्सा और तीर्थ पुरोहितों का समर्थन
इस मामले पर ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का गुस्सा स्पष्ट नजर आ रहा है। उनका आरोप है कि मंदिर समिति ने 528 सोने की प्लेटों और 230 चांदी की प्लेटों का हिसाब नहीं दिया है। उन्होंने इस विरोध को मजबूत करते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की। केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने भी शंकराचार्य का समर्थन करते हुए वीडियो संदेश के माध्यम से सोने की जांच की मांग की।
सोने की गुणवत्ता और मंदिर समिति पर सवाल
उत्तराखंड चार धाम तीर्थ पुरोहित महापंचायत के उपाध्यक्ष संतोष त्रिवेदी ने गर्भगृह में लगाए गए सोने की गुणवत्ता को लेकर भी संदेह जताया है और सवाल उठाया है कि मंदिर में लगाया गया सोना तांबे में कैसे बदल गया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने पूर्व में गढ़वाल आयुक्त की अध्यक्षता में जांच समिति बनाने की बात कही थी लेकिन उसकी रिपोर्ट के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है।
विवाद के मूल में शंकराचार्य की नाराजगी
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का क्रोध स्पष्ट रूप से जनहित में है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में लगे सोने का अब तक कोई स्पष्ट हिसाब नहीं है और इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। केदार सभा के पूर्व अध्यक्ष किशन बगवाड़ी ने भी आरोप लगाया कि 528 सोने की प्लेटों के साथ ही 230 चांदी की प्लेटें भी गायब हैं और इसके बारे में मंदिर समिति से जवाब मांगा है।
राजनीतिक और धार्मिक टकराव
यह विवाद किसी धार्मिक टकराव से बढ़कर राजनीतिक रंग लेता दिख रहा है। केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह से गायब हुए सोने का मुद्दा अब उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारों में भी गूंज रहा है। देखा जाए तो, यह विवाद केवल सोने की चोरी का नहीं, बल्कि धार्मिक परमात्मीयता और राजनीतिक मुद्दों का भी प्रतीक बन गया है।
मंदिर समिति और शंकराचार्य दोनों ही अपने-अपने स्थान पर अडिग हैं। अजेंद्र अजय ने स्पष्ट किया कि पूरी प्रक्रिया नियमानुसार थी और अब यह सिर्फ एक षड्यंत्र है। वहीं, शंकराचार्य ने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश से जांच की मांग कर इसे न्याय के लिए एक कोशिश करार दिया।
निष्कर्ष
इस विवाद में कौन सही और कौन गलत है, यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन इतना तो तय है कि केदारनाथ मंदिर के इस स्वर्ण विवाद ने धार्मिक और सामाजिक परिदृश्य को हिला दिया है। हिन्दू धर्म में अध्यात्मिकता का महत्व बहुत अधिक है और ऐसे विवाद इसे गहरे रूप से आहत करते हैं। भक्तों की आस्था और विश्वास को बनाए रखने के लिए निष्पक्ष और सटीक जांच बहुत जरूरी है।
जहां एक ओर शंकराचार्य ने अपने समर्थन में तीर्थ पुरोहितों को जुटा लिया है, वहीं मंदिर समिति ने भी अपने तर्क प्रस्तुत कर दिए हैं। अब देखना यह है कि यह विवाद कितने समय तक चलता है और इसका निष्कर्ष क्या निकलता है।