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कर्नाटक में आईटी कर्मचारियों के लिए 14 घंटे काम ओवरटाइम की सीमा खत्म… नए बिल पर विवाद जारी

कर्नाटक सरकार का विवादास्पद बिल

कर्नाटक सरकार ने हाल ही में एक नया बिल पेश किया है जो प्रदेश के आईटी और आईटीईएस कर्मचारियों के लिए अत्यंत विवादास्पद साबित हो रहा है। इस बिल के तहत कर्मचारियों को हर रोज 14 घंटे काम करना अनिवार्य कर दिया गया है। कर्नाटक आईटी/आईटीईएस कर्मचारी संघ (KITU) ने इस बिल का कड़ा विरोध किया है, उनका मानना है कि इस बदलाव से कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ेगा और कंपनियां इसका फायदा उठाकर कर्मचारियों की छंटनी कर सकती हैं।

ओवरटाइम की सीमा बंद

अभी तक के नियमों के अनुसार, ओवरटाइम सहित कर्मचारियों को अधिकतम 10 घंटे काम करने की इजाजत थी। लेकिन नए बिल में ओवरटाइम की सीमा को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि कंपनियां कर्मचारियों से जब चाहे जितना काम करवा सकती हैं। KITU का कहना है कि यह बदलाव अमानवीय है और इसका असली मकसद कर्मचारियों को कम करके दो शिफ्टों में काम करवाना है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

संघ ने यह भी चिंता जताई है कि इस नए कानून से कर्मचारियों में मानसिक तनाव, डिप्रेशन जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अध्ययन में भी यह सिद्ध हुआ है कि काम के घंटे बढ़ने से स्ट्रोक और हृदय रोग से होने वाली मौतों का खतरा अधिक होता है।

पिछला विवादास्पद बिल

गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब कर्नाटक सरकार ने विवादास्पद बिल पेश किया हो। हाल ही में सरकार ने एक और बिल पास किया था, जिसके अनुसार राज्य की निजी कंपनियों में 70% गैर-प्रबंधन और 50% प्रबंधन पदों के लिए स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की बात थी। यह बिल भी काफी विरोध का कारण बना और फिलहाल इसे रोक दिया गया है।

सरकारी अडिगता और विरोध

सरकार इस नए बिल को लेकर अपने रुख पर अडिग है। वहीं, KITU ने इस बिल के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया है। संघ का मानना है कि इससे कर्मचारियों की जीवनशैली में नकारात्मक बदलाव आएगा और कंपनियां इसका गलत इस्तेमाल कर सकती हैं। अगर इस बिल को लागू किया गया तो कर्मचारियों और प्राइवेट सेक्टर दोनों पर इसका गहरा असर पड़ेगा।

कार्य वातावरण पर प्रभाव

इस बिल की वजह से कार्य पर्यावरण में भी बदलाव संभावित हैं। वर्तमान समय में प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारी पहले ही उच्च प्रतिस्पर्धा और काम के बोझ से जूझ रहे हैं। नए बिल के लागू हो जाने से कर्मचारियों पर बोझ और भी बढ़ सकता है और उनकी कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है।

श्रमिक अधिकार और मानसिक स्वास्थ्य

काम के घंटे बढ़ने से कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कई अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि लंबे समय तक काम करने से मानसिक तनाव, ज्यादा थकान, और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। कर्मचारियों के लिए यह स्थिति बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।

आर्थिक प्रभाव

इस बिल का दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव भी हो सकता है। अगर कर्मचारियों की कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है, तो इसका असर प्रोडक्टिविटी पर भी पड़ेगा, जिससे कंपनी की लाभप्राप्ति पर असर पड़ेगा। यह स्थिति बाजार में प्रतियोगी कंपनियों को फायदा पहुंचा सकती है।

भविष्य की दिशा

कर्नाटक सरकार के इस नए बिल ने प्रदेश में आईटी सेक्टर के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। क्या यह बिल राज्य की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करेगा? क्या इससे अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के कानून बन सकते हैं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर आना अभी बाकी है।

संक्षेप में कहें तो, कर्नाटक सरकार का यह नया बिल कर्मचारियों के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर आया है। इसे लेकर सरकार और कर्मचारी संघ के बीच जारी संघर्ष का परिणाम क्या होगा, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट हो पाएगा।

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