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हल्द्वानी विवाद: मानवता का सवाल पुनर्वास की चुनौती


### सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी, 2022 में उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की जमीन से अतिक्रमणकारियों को हटाने के आदेश पर प्रतिक्रिया दी। अदालत ने इस मामले को “मानवीय मुद्दा” करार दिया और कहा कि 50,000 लोगों को रातोंरात हटाया नहीं जा सकता है। इस आदेश के बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करने की मांग की, ताकि रेलवे की भूमिपर फिर से कब्जा प्राप्त किया जा सके और रेल संचालन सुचारू रूप से चल सके।

### पुनर्वास का प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गहराई को समझते हुए उत्तराखंड के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह केंद्र और रेलवे के साथ मिलकर बनभूलपुरा में 50,000 से ज्यादा लोगों के पुनर्वास के लिए एक योजना बनाए। राज्य सरकार को जल्दी से जल्दी बुनियादी ढांचा विकसित करने और रेलवे लाइन के लिए आवश्यक भूमि की पहचान करने का भी आदेश दिया गया।

### पक्षों के तर्क

रेलवे का कहना है कि उक्त जमीन पर 4,365 अतिक्रमणकारी हैं जबकि स्थानीय निवासी दावा करते हैं कि वे जमीन के मालिक हैं। विवादित जमीन पर 4,000 से अधिक परिवार रहते हैं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम समुदाय से हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि वे इस स्थिति से कैसे निपटेंगे और इन लोगों को कैसे एवं कहाँ पुनर्वास किया जाएगा।

### अदालती दिशा-निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि पर अधिकार का दावा करने वालों को उचित अवसर दिया जाना चाहिए। साथ ही, राज्य सरकार को उन स्थानों की पहचान करनी चाहिए, जहां प्रभावित लोगों का पुनर्वास संभव हो सके। उन्होंने कहा, “यह मानते हुए कि वे अतिक्रमणकारी हैं, लेकिन वे इंसान भी हैं और दशकों से वहाँ रह रहे हैं। वे पक्के मकान में रहते हैं, तो इस स्थिति को कैसे सँभाला जाए?”

### जनहित याचिका की जरूरत

सुनवाई की शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई कि रेलवे ने उच्च न्यायालय से बेदखली का आदेश एक निजी व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका के आधार पर प्राप्त किया। पीठ ने सवाल किया कि क्या रेलवे ने अतिक्रमणकारियों को कोई नोटिस दिया? उन्होंने जनहित याचिका की आड़ क्यों ली? अगर वहां पर अतिक्रमणकारी हैं तो रेलवे को सीधे अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी करना चाहिए था।

### स्थानीय निवासियों की प्रतिक्रिया

बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खुशी जताई। समाजवादी पार्टी के नेता अब्दुल मतीन ने कहा, “4365 परिवारों और 50,000 लोगों को रातोंरात बेदखल करना न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम निर्देश स्वागत योग्य हैं।” सामाजिक कार्यकर्ता सरताज आलम ने कहा, “यह निर्देश प्रशंसनीय हैं और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में जनहित ही होगा।”

### राजनीतिक प्रतिक्रिया

हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित ह्रदयेश ने राज्य सरकार और रेलवे को गरीबों के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने की अपील की। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर रेलवे गोला नदी के किनारे से सुरक्षा दीवार बनाती है, तो उसे भूमि की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। राज्य सरकार और रेलवे को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट की तरह गरीबों के हित में निर्णय लेना चाहिए।

### मूलभूत चिंताएं

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को बिना किसी देरी के रेलवे परिचालन हेतु भूमि की पहचान करने का निर्देश दिया। साथ ही, अतिक्रमण हटाने के कारण प्रभावित होने वाले परिवारों की पहचान करने को भी कहा। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को सूचित किया कि रेलवे के पास अतिक्रमकारियों के पुनर्वास के लिए कोई योजना नहीं है और अतिक्रमण के कारण कई विस्तार योजनाएं रुकी हुई हैं।

### निष्कर्ष

यह मामला न केवल एक कानूनी मुद्दा है, बल्कि एक सामाजिक और मानवता का प्रश्न भी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि न्यायालय निर्दयी नहीं हो सकता और हर व्यक्ति को न्याय प्राप्त करने का हक है। राज्य सरकार और रेलवे को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा, ताकि किसी का भी हक और अधिकार प्रभावित न हो।

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