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आजकल हर कोई बताना चाहता है कि कैसे उसका धर्म सर्वोच्च है… हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ऐसा?

बॉम्बे हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

बॉम्बे हाई कोर्ट ने धर्म को लेकर हाल ही में एक महत्वपूर्ण और विचारणीय टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि आज के समय में लोग अपने धर्मों के प्रति पहले की तुलना में अधिक संवेदनशील हो गए हैं। यह एक महत्वपूर्ण अवलोकन है, विशेषकर ऐसे समय में जब धार्मिक भावनाएँ व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहार में अधिक केंद्रीय भूमिका निभाने लगी हैं।

व्हाट्सऐप ग्रुप का मामला

यह टिप्पणी कोर्ट ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप में कथित रूप से धार्मिक भावना आहत करने को लेकर दो लोगों के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करते हुए की। उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने इस मामले में कहा कि व्हाट्सऐप संदेश कूटबद्ध होते हैं और तीसरा व्यक्ति उसे हासिल नहीं कर सकता है, इसलिए यह जांचना आवश्यक है कि क्या वे भारतीय दंड संहिता के तहत धार्मिक भावना को आहत करने का प्रभाव डाल सकते हैं।

संवेदनशील धार्मिक भावनाएँ

कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है, जहां सभी को एक-दूसरे के धर्म और जाति का सम्मान करना चाहिए। लेकिन साथ ही, कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि लोगों को किसी भी प्रकार की जल्दबाजी में प्रतिक्रिया करने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसी प्रतिक्रियाओं से सामाजिक तनाव और अन्य समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।

मीडिया का प्रभावी उपयोग

कोर्ट ने यह भी कहा कि आजकल के डिजिटल युग में सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग तेजी से बढ़ा है। इसका विशेष रूप से व्हाट्सऐप जैसे संदेश प्लेटफॉर्म पर धार्मिक विचारों और भावनाओं को साझा करने में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि ऐसे संदेशों का उपयोग संभालकर और सहनशीलता के साथ किया जाए, ताकि वे भारतीय सामाजिक ताने-बाने को नुकसान न पहुँचाएँ।

सैन्य अधिकारी और डॉक्टर के खिलाफ मामला

2017 में दर्ज यह मामला सैन्य अधिकारी प्रमोद शेंद्रे और डॉक्टर सुभाष वाघे के खिलाफ था। शिकायतकर्ता शाहबाज सिद्दीकी ने इन पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपमानजनक संदेश पोस्ट करने का आरोप लगाया था। यह मामला उच्च न्यायालय के सामने आया जब शिकायतकर्ता ने बताया कि इन आरोपियों ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक सामग्री साझा की थी और कहा था कि जो ‘वंदे मातरम’ नहीं बोलते हैं, उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए।

फैसले का महत्व

बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाते समय बहुत ही संतुलित और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया। कोर्ट ने समझाया कि धार्मिक भावनाओं की संवेदनशीलता को देखते हुए, ऐसे मामलों में जल्दबाजी या उत्तेजित प्रतिक्रियाओं से बचना महत्वपूर्ण है। यह न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है।

आगे का मार्ग

कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि भविष्य में ऐसे मामलों में संभालकर और संतुलित तरीके से निपटना ज़रूरी होगा। डिजिटल युग में जहां सूचना तेजी से फैलती है, वहां एक संवेदनशील और सहिष्णु दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है। सामुदायिक सद्भाव और सामाजिक ताने-बाने की सुरक्षा के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

समाज के लिए संदेश

यह निर्णय एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि समाज को धार्मिक मुद्दों पर अधिक संवेदनशील और सहिष्णु दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उच्च न्यायालय का यह रुख वास्तव में समय की मांग है, जहां धार्मिक भावनाओं को समझने और उनका सम्मान करने की आवश्यकता है। जब हम ज़िम्मेदारी और सहिष्णुता के साथ धार्मिक मामलों का संचालन करेंगे, तब ही समाज में वास्तविक समरसता और शांति स्थापित हो पाएगी।

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय एक संदेश है कि संवेदनशीलता और सहिष्णुता ही समाज को आगे बढ़ाने का मार्ग दिखा सकती है। धार्मिक संवेदनाओं का सम्मान करते हुए, संवेदनशील मुद्दों पर संयमित और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। इससे समाज में भाईचारे, शांति और समझदारी का माहौल स्थापित होगा।

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