आजादी के पहलू और चुनौतियाँ
भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई थी। लेकिन आजादी के तत्काल बाद देश में बनी स्वदेशी सरकार के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ थीं। इनमें से सबसे बड़ी चुनौती देश का एकीकरण थी। तब भारत कई छोटे-बड़े राज्यों और रियासतों में बँटा हुआ था। देश को एकीकृत करने की जिम्मेदारी देश के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को सौंपी गई थी। उन्होंने देश में फैली सभी रियासतों से अपील की कि वे आजाद भारत का हिस्सा बन जाएं। इनमें से कई रियासतें खुशी-खुशी इस प्रस्ताव को मान गई थीं, लेकिन कुछ रियासतें ऐसी भी थीं, जो भारत में शामिल होने से मना कर रही थीं।
त्रावणकोर
इस लिस्ट में पहला नाम त्रावणकोर का है। त्रावणकोर ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया था। त्रावणकोर की रियासत चाहती थी कि इसे स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिले। इस रियासत का भारत के व्यापार के लिए खास महत्व था क्योंकि यह राज्य समुद्री व्यापार और मानव एवं खनिज संसाधनों से भरा हुआ था। त्रावणकोर का भारत में शामिल होना देश की आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
जोधपुर
वर्तमान में राजस्थान में स्थित जोधपुर रियासत भी भारत में शामिल होने से मना कर रही थी। जोधपुर राज्य एक हिन्दू राजा के अधीन था और राज्य में हिंदुओं की संख्या अधिक थी। लेकिन इस राज्य ने भारत का हिस्सा होने से इंकार इस वजह से कर दिया क्योंकि पाकिस्तान से इन्हें कई आकर्षक ऑफर मिल रहे थे। जोधपुर की स्थिति अत्यंत संवेदनशील थी और इसका फैसला देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो सकता था।
भोपाल
भोपाल रियासत ने भी भारत में शामिल होने से मना कर दिया था। भोपाल के नवाब हामिदुल्लाह खान ने अपने राज्य के लिए स्वतंत्रता की मांग की थी। यहां का शासक मुस्लिम लीग का करीबी था, जो इसे भारत में शामिल होने के पक्ष में नहीं था। भोपाल का राजनीतिक दृष्टिकोण स्थिति को और उग्र बना रहा था।
हैदराबाद
भारत के सबसे बड़े और समृद्ध रियासतों में से एक, हैदराबाद के निजाम भी अपने राज्य के लिए स्वतंत्रता की मांग पर अड़े हुए थे। निजाम की इस हठधर्मिता के बाद, सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ और कूटनीति के माध्यम से हैदराबाद को भारत में शामिल करने में सफलता प्राप्त की। हैदराबाद का विलय भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।
जूनागढ़
हैदराबाद की तरह जूनागढ़ का भी शासक भारत में शामिल होने से इंकार कर रहा था। यह राज्य रणनीतिक दृष्टि से भारत के लिए महत्वपूर्ण था। जूनागढ़ का शासक पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था, लेकिन यहां की जनता भारत में विलय के पक्ष में थी। इस विरोधाभास के बीच, सरदार पटेल ने बल प्रयोग कर जूनागढ़ को भारत का हिस्सा बना लिया।
त्रावणकोर: एक बार फिर
त्रावणकोर ने दो बार भारत में शामिल होने से इंकार किया था, और यह राज्य वाकई में अपने स्वतंत्र अस्तित्व की मांग कर रहा था। इसके शासकों को लगता था कि उनका राज्य आर्थिक दृष्टिकोण से खुद ही समर्थ है और उन्हें भारत के साथ नहीं जुड़ना चाहिए। लेकिन भारत के गृहमंत्री की ठोस कूटनीति के कारण त्रावणकोर अंततः भारत का हिस्सा बन गया।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
इन रियासतों के इनकार का प्रमुख कारण उनकी अपनी राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण था। इन रियासतों ने देखा कि स्वतंत्रता के बाद भारत में समाजवादी और संघीय व्यवस्थाओं का विकास हो रहा था, जिसका उनके अप्रत्यक्ष लाभ हो सकते थे। इन रियासतों के लिए उनके अपने स्वाभिमान और प्राचीन परंपराएं भी बड़ी भूमिका निभा रही थीं।
अंतिम निष्कर्ष
इन रियासतों का भारत में विलय ऐतिहासिक और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। सरदार पटेल और उनकी टीम ने इन राज्यों को भारत में शामिल करने के लिए कठोर परिश्रम किया और हर प्रकार की कूटनीतिक और प्रशासनिक चालें अपनाईं। इनका निर्णय आज हमें एकीकृत और संप्रभु भारत के रूप में दिखाई देता है।
भारत के इतिहास में इन रियासतों का विलय एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में हमेशा याद किया जाएगा, जिसने आज के एकीकृत भारत की नींव रखी। इसने भारतीय गणराज्य को एकता और अखंडता के सतत् आदर्शों को प्रदर्शित किया।