मुंबई: महाराष्ट्र में देसी नस्ल की गाय को राज्यमाता का दर्जा
महाराष्ट्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए देसी नस्ल की गाय को ‘राज्यमाता-गोमाता’ का दर्जा दिया है। यह सवाल उठता है कि आखिर इस विशेष गौरव का पात्र केवल देसी गाय को ही क्यों चुना गया और जर्सी जैसी अन्य नस्लों को इस सूची से बाहर क्यों रखा गया? सरकारी अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि इसका उद्देश्य देसी गायों के धार्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व को प्रचारित करना है। विले पार्ले के संन्यास आश्रम स्थित गौशाला के गौसेवक धनराज पाटिल ने बताया कि हिंदू धर्म में देसी गायों का पौराणिक महत्व अत्यधिक है।
देसी गाय की विशेषताएं
धनराज पाटिल, जिन्होंने पिछले 30 वर्षों से गायों की सेवा की है, ने देसी और जर्सी नस्ल की गायों के बीच अंतर स्पष्ट किया। देसी गाय के कान बड़े होते हैं, गर्दन का हिस्सा लटका हुआ होता है, पीठ का हिस्सा ऊंचा और सींग बड़े एवं घुमावदार होते हैं। वहीं, जर्सी नस्ल की गाय के कान और सींग छोटे होते हैं और गर्दन कम लटकी होती है। हालांकि, व्यापारिक दृष्टिकोण से जर्सी गाय की दूध देने की क्षमता अधिक होती है। धनराज ने बताया कि जर्सी गाय एक दिन में दो बार मिलाकर कुल 16 लीटर दूध देती है जबकि देसी गाय केवल 7-8 लीटर दूध ही देती है।
महाराष्ट्र सरकार का महत्वपूर्ण फैसला
महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को एक अधिसूचना जारी कर देसी गायों को ‘राज्यमाता-गोमाता’ घोषित किया। राज्य के कृषि, डेरी विकास, पशुपालन एवं मत्स्य पालन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि वैदिक काल से ही मानव जीवन में गाय का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य मानव पोषण में देसी गाय के दूध का महत्व, आयुर्वेदिक एवं पंचगव्य उपचार के लिए इसका उपयोग और जैविक खेती में गाय के गोबर से बने खाद का उपयोग को बढ़ावा देना है।
देसी गाय का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
भारत में गायों का धार्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व व्यापक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देसी गाय में 36 कोटि देवी-देवता वास करते हैं। इसके अलावा, देसी गाय का दूध, मूत्र और गोबर कई रोगों के उपचार में उपयोगी होते हैं। उदाहरण के तौर पर, गौमूत्र का सेवन कई लोग सुबह-सुबह स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले को भारतीय समाज में गाय की आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाने वाला कदम बताया है।
जैविक खेती में देसी गाय का महत्व
महाराष्ट्र सरकार ने देसी गाय के गोबर के कृषि लाभों को भी रेखांकित किया है। उनके अनुसार, देसी गाय का गोबर जैविक खाद के रूप में उपयोगी है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। इस पहल का एक अन्य मुख्य उद्देश्य जैविक खेती को प्रोत्साहित करना है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ मिल सके और पर्यावरण संरक्षण भी हो सके।
विधानसभा चुनाव और राजनीतिक पृष्ठभूमि
यह फैसला राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कृषि अधिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार ने इस फैसले के माध्यम से गायों के महत्व को उजागर किया है, जो भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य में सदियों से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह निर्णय आगामी चुनावों में भी वोटरों को प्रभावित कर सकता है और भाजपा को ग्रामीण क्षेत्रों में समर्थन प्राप्त हो सकता है।
देसी नस्ल की गायों के विविध लाभ
धानराज पाटिल के अनुसार, देसी गाय का दूध स्वादिष्ट होता है और इसे भगवान श्रीकृष्ण को भोग में चढ़ाया जाता है। आयुर्वेद और पंचगव्य चिकित्सा में भी देसी गाय के उत्पादों का महत्व है। इसके अलावा, देसी गायों का गोबर जैविक खाद के रूप में उपयोगी है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र सरकार का देसी नस्ल की गाय को ‘राज्यमाता-गोमाता’ का दर्जा देने का निर्णय भारतीय समाज में गाय के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है। इस फैसले का उद्देश्य धार्मिक मान्यता, स्वास्थ्य लाभ और जैविक खेती को प्रोत्साहित करना है। हालाँकि, व्यावसायिक दृष्टिकोण से जर्सी गाय की दूध उत्पादन क्षमता अधिक होती है, लेकिन देसी गाय का स्थान भारतीय संस्कृति में अनन्य है।