यासीन मलिक का गांधीवादी दावा
जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के चीफ यासीन मलिक ने यूएपीए ट्रिब्यूनल के सामने पेशी के दौरान कहा है कि उन्होंने तीन दशक पूर्व ही हथियारबंद संघर्ष का रास्ता छोड़ दिया था। मलिक ने दावा किया कि वे अब गांधीवादी हो गए हैं और 1994 से ही उन्होंने अहिंसात्मक तरीकों को अपनाया है। मलिक का कहना है कि वे जम्मू-कश्मीर में भारतीय कब्जे का विरोध गैर-हिंसात्मक तरीकों से कर रहे हैं। हालांकि, उनके इस दावे के चलते उन्हें उन अलगाववादी संगठनों से जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं जो अब भी हिंसक तरीकों का सहारा लेते हैं।
ट्रिब्यूनल का दृष्टिकोण
यूएपीए ट्रिब्यूनल के सामने मलिक ने अपने संगठन जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (वाई) पर सरकार की तरफ से लगाए गए बैन को हटाने के लिए पूरी कोशिश की। लेकिन ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए सबूतों और दलीलों के मद्देनजर उनकी यह दलील बेमानी करार दी। ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में यासीन मलिक के संगठन पर लगे बैन को बरकरार रखा है। केंद्र सरकार ने पहले 2019 में JKLF (Y) को UAPA के तहत गैरकानूनी संगठन घोषित कर 5 सालों के लिए प्रतिबंधित किया था, जिसे 2024 में अगले 5 सालों के लिए बढ़ा दिया था।
मलिक की सफाई
तिहाड़ जेल में बंद मलिक ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ट्रिब्यूनल के सामने पेश होकर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शुरुआत में उन्हें यकीन दिलाया गया था कि कश्मीरी जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सशस्त्र संघर्ष ही एकमात्र तरीका है, लेकिन बाद में उन्होंने अहिंसात्मक मार्ग अपनाने का निश्चय किया। मलिक ने दावा किया कि 1994 के बाद से केंद्र सरकार के कई बड़े राजनीतिक और सरकारी अधिकारियों ने उनसे संपर्क भी किया है ताकि कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके।
गांधीवादी दलील पर सवाल
यूएपीए ट्रिब्यूनल ने मलिक के इस दावे को खारिज कर दिया कि वे अब गांधीवादी हो चुके हैं। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि मलिक ने बार-बार दावा किया कि वे अहिंसा के मार्ग पर हैं, लेकिन उनके हिंसात्मक संगठनों और व्यक्तियों के साथ जुड़े होने की बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मलिक ने न केवल कुख्यात आतंकवादियों के साथ संपर्क बनाए रखा है, बल्कि उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में एक आतंकवादी शिविर का दौरा भी किया है, जहां उन्हें सम्मानित भी किया गया।
केंद्र सरकार की दलील
केंद्र सरकार ने ट्रिब्यूनल के समक्ष जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट-वाई पर लगे बैन को सही ठहराते हुए कहा कि 1994 में रिहा होने के बाद मलिक ने खुद को हथियारबंद प्रतिरोध से तो अलग कर लिया था, लेकिन उनका और उनके संगठन का आतंकवाद से नाता बना रहा। सरकार का दावा है कि मलिक ने अपने गांधीवादी मुखौटे का उपयोग करके हिंसात्मक अभियानों के लिए पैसा जुटाया। साथ ही, उनका संगठन राष्ट्र की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है।
अखिल भारतीय सुरक्षा पर दृष्टिकोण
ट्रिब्यूनल ने इस मुद्दे पर स्पष्ट कहा कि देश में ऐसी संस्थाओं के लिए कोई जगह नहीं है जो देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को गलत दिशा में ले जाती हैं। ट्रिब्यूनल ने कहा कि 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में जो स्थिरता आई है और आतंकी घटनाओं में कमी आई है, उसे JKLF-वाई की निरंतर गैरकानूनी गतिविधियों के कारण खतरे में नहीं डाला जा सकता है।
गांधीवादी दलील का फेल होना
आखिरकार, ट्रिब्यूनल ने यासीन मलिक के संगठन पर लगे बैन को बरकरार रखते हुए उनके गांधीवादी होने के दावे को खारिज किया। इसके साथ ही यह साफ कर दिया कि देश के भीतर हिंसा और अलगाववाद को किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जा सकता।