अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव का संभावित प्रभाव
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिल्ली में आयोजित कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन में संवाद के दौरान कहा कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के संभावित परिणामों के बावजूद भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण में ‘परिवर्तन’ होगा। यह बयान उस समय दिया गया जब उनसे अमेरिका के चुनाव के संभावित नतीजों पर सवाल पूछा गया। जयशंकर ने कहा कि अमेरिका ने अब अपनी पुरानी व्यवस्था की पुनः जांच की है और यह निष्कर्ष निकाला है कि वह अब उनकी इतनी फायदेमंद नहीं है।
पिछले प्रशासन की नीतियों का प्रभाव
जयशंकर ने कहा कि पिछले पांच सालों में कई नीतियाँ, जिन्हें ट्रंप प्रशासन की नीतियाँ समझा जाता था, बाइडन प्रशासन ने उन्हें न केवल जारी रखा बल्कि उनका विस्तार भी किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह प्रक्रिया कुछ व्यक्तियों की नहीं बल्कि एक चलन की है। उन्होंने कहा, “यह वह अमेरिका है, जिसने वास्तव में भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण में बदलाव किया है।”
विश्वस्तर पर खंडन और समन्वय
जयशंकर ने कहा कि वर्तमान में दुनिया अधिक खंडित हो गई है। इसके बावजूद, पारदर्शिता और विश्वसनीयता बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि यह पैमाना देशों के बीच लेन-देन और उद्यम के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
एससीओ शिखर सम्मेलन और पाकिस्तान यात्रा
जब जयशंकर से शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान यात्रा के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ द्विपक्षीय बातचीत की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे वहां एक निर्धारित कार्य और जिम्मेदारी के लिए जा रहे हैं, जो भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए है।
संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान स्थिति
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया, विशेषकर बदलते वैश्विक परिदृश्य में। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्थापित इस संस्था के बारे में उन्होंने कहा कि यह एक पुरानी कंपनी की तरह हो गई है, जो बाजार के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के बावजूद उसकी कार्यप्रणाली अपर्याप्त है।
विकासशील देशों के लिए ग्लोबल साउथ का महत्व
जब उनसे एशिया, अफ्रीका, और लातिन अमेरिका के विकासशील देशों के लिए ग्लोबल साउथ की अवधारणा के बारे में पूछा गया, तो जयशंकर ने इसे ‘महत्वपूर्ण’ बताया। उन्होंने कहा कि हालांकि भारत नेता बनने की उम्मीद नहीं करता, मगर यह एक विश्वसनीय सदस्य के रूप में देखा जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता
भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग करता रहा है। जयशंकर ने कहा कि सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्यों का ‘अदूरदर्शी’ दृष्टिकोण इस संस्था में सुधार की प्रक्रिया को बाधित कर रहा है। इसके अलावा, रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका जैसे स्थायी सदस्यों के पास महत्वपूर्ण प्रस्तावों को वीटो करने का अधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी नीति का संभावित भविष्य
जयशंकर ने कहा कि चाहे नवंबर में चुनाव के परिणाम कुछ भी हों, यह तय है कि अगले दिनों में अमेरिकी नीति बदलाव की और बड़ती रहेगी। दुनिया की बदलती परिस्थितियों को देखते हुए, यह जरूरी है कि राष्ट्र आपसी समकालीन समस्याओं के समाधान के लिए जुटें। नए नए गठबंधन और पहलें इसी दिशा में उठाए जा रहे कदम हैं।
जयशंकर का यह बयान न केवल भारत की विदेश नीति की दिशा को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को भी इंगित करता है। यह दिखाता है कि किस प्रकार भारत केवल अपना भाग्य नहीं सुधारना चाहता, बल्कि वैश्विक स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन लाने की कोशिश भी कर रहा है।