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भजन-कीर्तन में ताली की प्राचीन परंपरा: ताली बजाने का धर्म और विज्ञान

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ताली की प्राचीनता और इसकी शुरुआत

भारतीय संस्कृति में भजन-कीर्तन एक महत्वपूर्ण अंग है, जो न केवल आध्यात्मिक आनंद देता है बल्कि सामूहिक भक्ति का एक सशक्त माध्यम भी है। इसी क्रम में ताली बजाने की परंपरा भी अत्यंत प्राचीन है। यह परंपरा सतयुग से ही चली आ रही है। भजन-कीर्तन के समय पर सभी भक्त ताली बजाते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार, यह परंपरा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद ने प्रारंभ की थी।

धार्मिक महत्व

ताली बजाना सिर्फ एक क्रिया नहीं बल्कि भक्ति की एक अभिव्यक्ति है। ताली बजाते समय जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वह एक योगदान रखती है। मंदिरों और धार्मिक संगठनों में पूजा, आरती, भजन, कीर्तन के दौरान ताली बजाई जाती है। यह मान्यता है कि इससे भगवान भक्तों के कष्ट सुनते हैं और नकारात्मकता और पापों का नाश होता है। भजन-कीर्तन में ताली बजाने की परंपरा का भी ऐसा ही धार्मिक महत्व है।

ताली बजाने का वैज्ञानिक महत्व

ताली बजाने का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी होता है। जब हम ताली बजाते हैं, तो हाथ के एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स पर उचित दबाव पड़ता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह हाथ से जुड़े अन्य अंगों को भी सक्रिय बनाता है और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में सहायक होता है।

ताली बजाने के ये सारे आयाम, चाहे धार्मिक हो या वैज्ञानिक, इसकी गहराई और प्रासंगिकता को और भी अधिक बढ़ा देते हैं। इस प्रकार, ताली बजाने की सनातन परंपरा न सिर्फ हमारी आध्यात्मिकता में नई ऊर्जा का संचार करती है, बल्कि हमें स्वस्थ और सकारात्मक भी रखती है। हमारी प्राचीन परंपराओं में छिपे इन गहन तथ्यों को जानने और समझने का प्रयास हमें हमारे प्राचीन ज्ञान और विज्ञान की ओर और अधिक आदरपूर्वक देखने का आग्रह करता है।

Disclaimer: उपरोक्त जानकारी परंपरागत मान्यताओं और विद्वानों द्वारा व्यक्त की गई सामान्य सूचनाओं पर आधारित है। हम इसकी सटीकता या पूर्णता की किसी भी प्रकार से पुष्टि नहीं करते हैं।

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