बसंत पंचमी का पावन पर्व
सांस्कृतिक परंपरा और भक्ति के अनुरूप हमारे देश में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन, ज्ञान और संगीत की देवी, माता सरस्वती की वंदना विद्वानों और कला प्रेमियों द्वारा भी आदर सहित की जाती है। इस दिन को विद्या की देवी माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में माना जाता है, और इसलिए इसे शिक्षा की शुरुआत के लिए शुभ दिन माना जाता है।
माघ माह और बसंत ऋतु
माघ महीने की पंचमी इस तिथि को खास बनाती है। प्रकृति ने खुद को हरी चादर ओढ़ ली है और पेड़ों पर फूल खिल उठे हैं। बसंत की इसी ताज़ा शुरुआत में देवी सरस्वती का आगमन होता है।
विधिवत पूजा की प्रारंभ
सरस्वती माता की पूजा शुरु करने के लिए सबसे पहले पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र किया जाता है। देवी की प्रतिमा या चित्र के आगे धूप-दीप जलाने से वातावरण में सकारात्मकता का प्रसार होता है।
आसन शुद्धिकरण मंत्र
पूजा में बैठने के लिए आसन को मंत्रों द्वारा शुद्ध करना चाहिए। विशेष मंत्र के उच्चारण से पवित्रता की अनुभूति होती है और संकल्प द्वारा पूजन की भावना को और भी मजबूत बनाया जाता है।
गणपति पूजा का महत्व
किसी भी पूजा की शुरुआत गणपति पूजा से होती है। विघ्नहर्ता गणेश जी की आराधना के बाद ही माँ सरस्वती की पूजा का क्रम शुरू होता है। गणेशजी को ऋद्धि-सिद्धि के दाता माना जाता है, इसलिए उनका आशीर्वाद हर नए कार्य के लिए आवश्यक होता है।
कलश पूजन
कलश पूजन भी पूजा की एक प्रमुख विधि होती है। कलश को सृष्टि की नाभि माना गया है और इसमें समस्त देवताओं का वास होता है। विशेष मंत्रों से कलश का पूजन करके वरुण देवता का आह्वान किया जाता है।
सरस्वती पूजन और मंत्र
माँ सरस्वती की पूजा में विशेष ध्यान मंत्रों का जाप करें जिससे ज्ञान की देवी का आशीर्वाद हमें प्राप्त हो। पूजा के दौरान अक्षत, पुष्प, और वस्त्रों का समर्पण करना चाहिए। नैवेद्य और मिष्टान्न के साथ देवी की प्रसन्नता का आह्वान किया जाता है।
आरती और प्रसाद वितरण
पूजा के समापन पर माँ सरस्वती की आरती बहुत ही श्रद्धा और भाव से की जाती है। प्रसाद को सभी भक्तों में बांटा जाता है, इससे पूजा की सम्पूर्णता सिद्ध होती है। इस तरह से बसंत पंचमी के इस पावन अवसर पर विधिवत रूप से माँ सरस्वती की पूजा संपन्न की जाती है। इस पूजा से विद्या और कला का आशीर्वाद मिलकर हमारी समाज में सुख-समृद्धि का प्रसार होता है।