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ज्ञान के सागर जगद्गुरु रामभद्राचार्य: आँखों की ज्योति खोकर भी अज्ञानता के अंधकार को हराया

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आस्था, संस्कृति और दिव्य ज्ञान के प्रतीक

हिन्दू धर्म के महान संत और आध्यात्मिक गुरु, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज को हाल ही में 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनके इस गौरव की प्रशंसा में देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी बधाई व्यक्त की है। हाल के दिनों में, उनके स्वास्थ्य में कुछ अनियमितताएँ देखी गईं, जिसके चलते उन्हें हार्ट सर्जरी के बाद दिल्ली के प्रतिष्ठित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहाँ उनके उपचार की प्रक्रिया जारी है।

बचपन से ही ज्ञान की अनूठी पिपासा

14 जनवरी 1950 को जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी को मात्र दो महीने की उम्र में ही दृष्टि खोनी पड़ी थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना ट्रेकोमा संक्रमण के कारण हुई थी। इन परिस्थितियों ने उनकी दिव्य योग्यताओं को और प्रखर कर दिया। चार वर्ष की कोमल उम्र में ही वे कविताएं कहने लगे और आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने रामकथा और भागवत का जाप आरंभ कर दिया था।

अन्धत्व को ज्ञान से जीता

नेत्रहीन होने के बावजूद, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की मेधा किसी भी प्रकार से सीमित नहीं हुई। बिना ब्रेल लिपि के सहारे के, उन्होंने अपने कंठ स्थल से अनगिनत ग्रंथों और काव्यों की सृष्टि की। उनके पास रामचरितमानस, गीता, वेद, उपनिषद, और वेदांत जैसे धर्मग्रंथों का विस्तृत ज्ञान है और उन्होंने अपनी भविष्यवाणियों के साथ अद्वितीय प्रतिष्ठा प्राप्त की है।

भाषाओं के ज्ञाता और साहित्य के शिल्पकार

उनकी भाषा ज्ञान की सूची में हिंदी, मैथिली, अवधी समेत 22 भाषाएँ हैं। उन्होंने अब तक 100 से भी अधिक धार्मिक ग्रंथों का सृजन किया है। इसके अलावा, उन्हें रामानन्द संप्रदाय के चार जगद्गुरु में से एक माना जाता है और 1988 से इस पद पर आसीन हैं।

शिक्षा के प्रकाश को समर्पित एक विश्वविद्यालय

रामभद्राचार्य जी ने विश्व का पहला नेत्रहीन विश्वविद्यालय, जगद्गुरु रामभद्राचार्य हांडीकैंप्ड यूनिवर्सिटी की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित है और जगद्गुरु जी इसके आजीवन कुलाधिपति हैं।

महाकाव्य और सम्मानों की अनूठी यात्रा

उन्होंने चार महाकाव्यों की रचना की है, जिनमें दो हिंदी और दो संस्कृत में हैं। वे तुलसीदास पर सबसे माने हुए विशेषज्ञों में से एक हैं। उन्हें अनगिनत उपाधियाँ और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें पद्मविभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार और अन्य शामिल हैं।

राम जन्मभूमि मामले में महत्वपूर्ण योगदान

रामभद्राचार्य जी जब राम जन्मभूमि मुकदमे में गवाह के रूप में उपस्थित हुए, तो उनकी गवाही ने मामले के निर्णय की दिशा मोड़ दी थी। उनकी गवाही में वेद-पुराणों और अन्य शास्त्रों से जुड़े शक्तिशाली तर्क थे, जिसे न्यायालय ने भारतीय ज्ञान परंपरा का एक अद्भुत चमत्कार माना।

इस प्रकार, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज एक ऐसी विभूति हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान और अध्यात्मिक प्रतिभा से समस्त मानव जाति को प्रेरित किया है। उनकी दिव्य अंतर्दृष्टि और उदार जीवन-दृष्टिकोण ने दुनिया में शांति और सद्भावना के प्रसार में अत्यधिक योगदान दिया है।

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