आचार्य जैन मुनि विद्यासागर महाराज का देहावसान
जैन समुदाय के प्रमुख संत और आध्यात्मिक गुरु आचार्य जैन मुनि विद्यासागर महाराज ने अपनी अंतिम यात्रा को प्रशस्त करते हुए अपना देह त्याग दिया। यह घटना छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के ऐतिहासिक और पावन स्थान चंद्रगिरि में उस शुभ घड़ी में हुई जब सम्पूर्ण प्रकृति निद्रालीन थी, यानी तड़के ढाई बजे। आचार्य विद्यासागर महाराज ने कुछ समय पूर्व ही अपने आचार्य पद की दीक्षा को त्यागा था और तत्पश्चात वे निरंतर उपवास एवं मौन साधना में लीन थे। गहन साधना और तपस्या के पश्चात मुनिवर ने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।
राष्ट्रीय स्तर पर शोक की लहर
जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज के ब्रह्मलीन होने की खबर जैसे ही फैली, उससे प्रभावित होकर राष्ट्रीय नेतृत्व ने गहरी संवेदना प्रकट की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर शोक संदेश जारी किया और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता से संवाद स्थापित किया। प्रधानमंत्री ने लिखा कि आचार्य श्री का देह त्याग न केवल जैन समुदाय बल्कि पूरे देश के लिए एक विशाल क्षति है। आध्यात्मिक प्रबोधन एवं सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में उनके अनुपम योगदान को हमेशा स्मरण किया जाएगा। प्रधानमंत्री के अनुसार, उनका सौभाग्य रहा है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से आचार्य विद्यासागर से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके अलावा मुख्यमंत्री समेत अनेक राजनीतिक हस्तियों और जनसामान्य ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है।
अंतिम संस्कार की तिथि और समय
आज दोपहर एक बजे आचार्य विद्यासागर की अंतिम क्रिया संपन्न की जाएगी। उन्होंने अपनी अंतिम सांस उस पवित्र स्थल पर ली जहां उन्होंने अपने अधिकांश तपस्या के दिनों को बिताया। उनका जीवन ज्ञान के अद्भुत प्रकाश को फैलाने के लिए समर्पित था, जिससे न केवल उनके अनुयायी बल्कि समस्त मानवता ने लाभान्वित होकर एक बेहतर जीवन यापन की राह पर चल पाए।
विद्यासागर महाराज का आध्यात्मिक और सामाजिक योगदान
आचार्य विद्यासागर महाराज के समाधि लेने से न केवल जैन समाज बल्कि समस्त भारतवर्ष में शोक की लहर है। उनका योगदान अद्वितीय रहा है; चाहे गरीबी उन्मूलन हो, स्वास्थ्य सेवा का प्रसार हो, या शिक्षा की गुणवत्ता की बात। उनकी निस्वार्थ सेवा और सद्प्रेरणा ने अनगिनत जीवनों को स्पर्श किया और समाज के हर वर्ग तक पहुंचाने में सफल रहे। उनकी अनुपम शिक्षाएं और उनका जीवन, जो त्याग, समर्पण और मानवता की सेवा के इतने उदाहरणों से परिपूर्ण है, वह हम सबके लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा। उनके जाने से भले ही एक शरीर नश्वर हो गया हो, किंतु उनके विचार, उनकी शिक्षाएं और उनका आध्यात्मिक मार्गदर्शन सदैव हमारे साथ रहेगा।
आचार्य की समाधि से जो शून्यता उत्पन्न हुई है, वह निसंदेह अपूरणीय है, किंतु उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं और उनकी साधना की गहराई उन्हें सदैव जीवंत रखेगी।