अघोरी समुदाय की गूढ़ साधनाओं का संसार
अघोरियों की रहस्यामयी दुनिया में प्रवेश करने पर आपको अज्ञात की गहराइयों में अनेक आश्चर्य से भरे तत्व मिलेंगे। भस्म से आच्छादित, ये अघोरी साधक अपनी परंपराओं के अनुरूप कई बार शवों का मांस खाने से लेकर उनके साथ यौन संबंध तक बनाते हैं। यहां तक कि ये महिलाओं के साथ तब समागम करते हैं जब वे मासिक धर्म की अवस्था में होती हैं। ऐसे कार्यों को जानने पर प्रश्न उठता है कि क्या ये वास्तव में साधु हो सकते हैं?
साधु समाज ब्रह्मचर्य की मिसाल पेश करता है, लेकिन अघोरी साधना में ब्रह्मचर्य का स्थान नहीं है। संतों की तरह उनका भोजन नहीं है। ये मांस-मदिरा का सेवन करने वाले होते हैं, तब भी शिव की पूजा में लीन होते हैं। अघोर पंथ का आधार क्या है, इसे समझने से पहले ‘अघोर’ का अर्थ जानना ज़रूरी है। ‘अघोर’ यानी जो घोर न होकर सरल होते हैं; इसी सरलता को अपने साधना में उतारते हैं। इनके लिए शव हो या जीवित व्यक्ति, गंदगी हो या सफाई, सब समान होता है। अघोरी की साधना उस निर्दोष बच्चे की तरह होती है, जिसे किसी चीज से घृणा नहीं होती।
हमारे शास्त्रों में शिव को ‘अघोरनाथ’ कहा गया है। अघोरी समुदाय शिव के इस रूप की आराधना करता है। वे बाबा भैरवनाथ को भी पूजते हैं, लेकिन जब यह समुदाय शवों के साथ या रजस्वला महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करता है, तो उसके पीछे का तर्क भी गहराई में जानना ज़रूरी है।
क्यों खाया जाता है कच्चा मांस
अघोरी श्मशान में निवास करते हैं और कहा जाता है कि वे अधजले शवों का मांस खाते हैं जो तांत्रिक क्रियाओं की शक्ति को बढ़ाता है। वे तंत्र साधना में मांस और मदिरा का उपयोग करते हैं और अक्सर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की जाती है। वे शवों की खोपड़ी से निकाले गए द्रव्य का प्रयोग भी करते हैं।
शवों के साथ शारीरिक संबंध की मान्यता
अघोरी समुदाय में शवों के साथ संबंध बनाने की प्रथा है, जिसे वे शिव और शक्ति की पूजा का हिस्सा मानते हैं। उन्हें ऐसा करते समय मन को ईश्वर की भक्ति में लगाए रखना पड़ता है, जो साधना के सबसे उच्चे स्तर को दर्शाता है।
रजस्वला स्त्री संग साधना
अघोर पंथ के साधक अपनी शक्तियों को जाग्रत करने के लिए रजस्वला महिला के साथ संबंध स्थापित करते हैं। मान्यता यह है कि यह क्रिया शिव के साथ उनके संबंध की परीक्षा होती है। अघोरी अपने ध्यान में शिव को लीन रखते हुए यदि संबंध बनाए रखते हैं, तो उन्हें अधिक शक्ति प्राप्त होती है।
दिव्य संगीत के बीच साधना
अघोरियों द्वारा महिलाओं के साथ ढोल-मंजीरे और नगाड़े की ध्वनि के बीच संबंध बनाने की प्रक्रिया, शक्ति की परीक्षा मानी जाती है। जो इस क्रिया में शिव में लीन रहते हैं, वे संपूर्ण अघोरी बन जाते हैं।
नरमुंड का महत्व
अघोरी समुदाय में नरमुंड का विशेष महत्व है। इन्हें कापालिका कहा जाता है और शिव की भक्ति में इन्हें अपनी साधना और भोजन पात्र के रूप में उपयोग करते हैं। अघोरी बाबाओं के कई और रहस्यमयी परंपरा और क्रिया के बारे में आगे अधिक बताया जाएगा।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी अघोरियों के पंथ, मान्यताओं और प्रथाओं पर आधारित है, जिसकी पुष्टि DNA Hindi द्वारा नहीं की गई है।