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अमरोहा: शिक्षा में मज़हब को घसीटने का आरोप प्रिंसिपल मोहसिन का विवादित फरमान

मज़हब की लड़ाई का नया अध्याय

अमरोहा, उत्तर प्रदेश — भारतीय शिक्षा प्रणाली एक बार फिर विवाद के घेरे में है। अमरोहा के गजरौला के पियर्स इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल मोहसिन ने तिलक लगाने और कलावा बांधने से छात्रों को रोकते हुए एक विवादित फरमान जारी किया, जिसके तहत छात्रों को प्रार्थना में हाथ जोड़ने से मना किया गया और जुम्मे के दिन स्कूल में छुट्टी घोषित कर दी गई। इस घटना से समाज में एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या अब यूपी के स्कूलों में शिक्षा के नाम पर मज़हब की लड़ाई लड़ी जाएगी?

मोहसिन का विवादित फरमान

गजरौला के पियर्स इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल मोहसिन ने अपने फरमान में छात्रों को स्पष्ट रूप से तिलक न लगाने और कलावा न बांधने का निर्देश दिया। इसके अलावा, उन्होंने प्रार्थना के समय हाथ जोड़ने को भी मना कर दिया। इस निर्णय को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। प्रिंसिपल का कहना था कि “हमारा स्कूल है, हमारी मर्जी है, हम जो चाहें वो करेंगे।” ABVP के दबाव के कारण मोहसिन को अपना फरमान वापस लेना पड़ा। भीड़ की मौजूदगी में, मोहसिन ने हिन्दू छात्र के हाथ में पहले कलावा बांधा और फिर तिलक भी लगाया।

रामपुर में भी वही घटना

गजरौला की घटना के बाद, यूपी के रामपुर से भी इसी तरह के धार्मिक विवाद की खबर सामने आई। राजकीय इंटर कॉलेज धमोरा में एक मुस्लिम शिक्षिका ने छात्रों के तिलक लगाने और कलावा पहन कर स्कूल आने पर एतराज जताया। इस खबर के जब बच्चों के परिजनों तक पहुंची, तो उन्होंने स्कूल पहुंचकर प्रिंसिपल से सवाल किए। इस दौरान ABVP के कार्यकर्ता भी पहुंचे और प्रिंसिपल से इस मुद्दे पर बहस की। स्कूली बच्चों ने भी मुस्लिम टीचर के फरमान की जानकारी दी।

मुस्लिम टीचर को हटाया गया

लोगों के गुस्से को देखते हुए, स्कूल प्रबंधन ने प्राइवेट तौर पर काम कर रही मुस्लिम शिक्षिका फिरदौस को नौकरी से हटा दिया। हालांकि, स्कूल ने एक नोट जारी करते हुए इस बात का दावा भी किया कि स्कूल में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी।

शिक्षा की पवित्रता पर सवाल

यह मामला शिक्षा की पवित्रता और धार्मिक तटस्थता पर महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है। क्या धार्मिक पहचान को विद्यालय परिसर के अंदर वास्तविक रूप से अलग रखा जा सकता है, जबकि वह व्यक्तिगत विश्वास और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा होता है?

प्रिंसिपल मोहसिन का यह बयान कि “हमारा स्कूल है, हमारी मर्जी है, हम जो चाहें वो करेंगे” ने देशभर में शिक्षाकर्मियों और छात्रों के बीच एक विवाद को जन्म दिया। क्या स्कूल प्रबंधन को ऐसा अधिकार है कि वे किसी भी धार्मिक परंपरा को पूर्णतया रोक सकें? यह घटना दर्शाती है कि भारत में धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता के सिद्धांतों का पालन करना अभी भी एक चुनौती है।

समाज की प्रतिक्रिया

समाज की प्रतिक्रिया इस घटना पर मिलीजुली रही। कुछ लोगों ने प्रिंसिपल मोहसिन का समर्थन करते हुए कहा कि शिक्षा के संस्थान को धार्मिक स्थलों से अलग रखा जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर, कई लोग इस निर्णय को धार्मिक भेदभाव और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं।

इस पूरे विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया कि शिक्षा के माहौल में धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को समझना और उसे सम्मान देना आवश्यक है। विद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र होते हैं, बल्कि वे विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक मान्यताओं के मेलजोल का भी स्थान होते हैं।

महत्वपूर्ण सन्देश

अंततः, यह घटना हमें इस बात का संदेश देती है कि शिक्षा व्यवस्था को धार्मिक वातावरण से मुक्त और तटस्थ रखा जाना चाहिए। सभी छात्रों को उनकी धार्मिक पहचान के साथ समग्र रूप से स्वीकार करना और उनका सम्मान करना न केवल शिक्षकों और प्रिंसिपल्स की जिम्मेदारी है, बल्कि पूरे समाज का भी कर्तव्य है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि छात्र किसी भी प्रकार के धार्मिक भेदभाव से मुक्त एक सुरक्षित और समर्पित शिक्षण वातावरण में अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें।

इस विवाद को समझने और इसके समाधान के लिए शिक्षा नीति निर्माताओं, शिक्षकों और समाज को मिलकर काम करना होगा, ताकि भविष्य में ऐसे विवाद उत्पन्न न हों और शिक्षा का मकसद पूरा हो सके।