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असम में पेश हुआ नया बिल: मुस्लिम शादियों का रजिस्ट्रेशन अब काजी नहीं सरकार करेगी

असम में मुस्लिम शादियों के रजिस्ट्रेशन में बदलाव

असम की भाजपा सरकार ने विधानसभा में असम मुस्लिम विवाह अनिवार्य पंजीकरण और तलाक विधेयक, 2024 पेश किया है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस नए कानून का प्रारूप पेश करते हुए बताया कि इसका उद्देश्य मुस्लिम विवाहों के पंजीकरण की प्रक्रिया को आधिकारिक और पारदर्शी बनाना है। इसका मुख्य उद्देश्य बाल विवाह को रोकना और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ के संदर्भ में विधेयक

इस विधेयक के प्रेस की घोषणा के बाद से ही विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों में हलचल मच गई है। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के नेता मुजीबुर रहमान ने विधेयक का कड़ा विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार मुस्लिम डिवोर्स एंड मैरिज एक्ट 1935 को खत्म कर मुसलमानों के निजी कानूनों में हस्तक्षेप कर रही है। कांग्रेस नेता वाजेद अली चौधरी ने भी इस विधेयक को शरीयत के खिलाफ बताया और कहा कि इस तरह के कानून मुस्लिम समाज के अधिकारों के साथ खिलवाड़ हैं।

कांग्रेस और AIUDF का विरोध

विपक्षी दल कांग्रेस और AIUDF ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह मुस्लिम समाज के धार्मिक प्रथाओं और स्वतंत्रता के अतिक्रमण का प्रयास है। कांग्रेस नेता वाजेद अली चौधरी और AIUDF के नेता मुजीबुर रहमान के अनुसार यह विधेयक असम के मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक संप्रभुता को हानि पहुंचाएगा।

सरकारी दृष्टिकोण

वहीं, सरकार का मानना है कि इस बिल से मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार होगा और उन्हें उनके अधिकार मिलेंगे। सरकार का दावा है कि इस कानून का मुख्य उद्देश्य बाल विवाह पर रोक लगाना है और समाज में अन्यायपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करना है। असम के राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने कहा कि यह विधेयक 1935 के मुस्लिम विवाह और तलाक अधिनियम को निरस्त करने के लिए आवश्यक कदम है।

सदन में भाजपा का बहुमत

राज्य में भाजपा के स्पष्ट बहुमत के चलते इस विधेयक को पास करवाने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आएगी। सरकार का मानना है कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करेगा और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने में सहायक साबित होगा। विधेयक के अनुसार, पुरुषों के लिए वैध विवाह की उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है।

हर स्तरीय समाज में सुधार के उद्देश्य से प्रस्तुत यह विधेयक कानून के माध्यम से धार्मिक और समाजिक अस्पष्टता को समाप्त करने का प्रयास है। विपक्ष के विरोध के बावजूद, बहुमत का समर्थन होने के कारण संभवतः यह विधेयक विधिवत लागू होगा।

भविष्य की दिशा

असम सरकार का यह कदम एक महत्वपूर्ण बदलाव की दिशा में है। हालांकि यह कानून मुस्लिम धार्मिक प्रथाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाएगा, लेकिन सरकारी संलिप्तता से विवाह और तलाक की प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाएगी। इससे बाल विवाह जैसी समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और समाज में निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा मिलेगा।

नई पद्धति और कानून के तहत, शादी की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया सरकारी अधिकारियों के माध्यम से पूरी की जाएगी जो इसे कानूनी दृष्टी से अधिक मजबूत और वैधानिक बनाएगा। इस प्रकार की विधायी पहल विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच आपसी समझ और सहयोग को भी प्रोत्साहित करेगी।

अंतिम निष्कर्ष

असम में मुस्लिम विवाह पंजीकरण और तलाक विधेयक, 2024 एक महत्वपूर्ण कदम है जो मुस्लिम समाज में सुधार लाने के उद्देश्य से उठाया गया है। जहां एक ओर यह विधेयक विवाद का विषय बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसे समाज में सकारात्मक बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे चलकर इस विधेयक का प्रभाव क्या रहता है और यह किस प्रकार से मुस्लिम महिला अधिकारों और समाजिक न्याय के क्षेत्र में योगदान देता है।

नवीनतम अपडेट्स के लिए जुड़े रहें, ताकि आप असम में इस विधेयक के प्रभाव और इसके कार्यान्वयन पर नजर रख सकें।

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