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बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश

बाल विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की कड़ी नाराजगी

भारत में बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक समस्या बना हुआ है। इससे न केवल हमारे समाज का ताना-बाना कमजोर होता है, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के विकास पर भी नकारात्मक असर डालता है। हाल ही में, बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गंभीर चर्चा हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस प्रथा के खिलाफ अपना कड़ा रुख जाहिर किया है। उन्होंने बाल विवाह को संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करार दिया है।

स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार की अवमानना

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाह के चलते नाबालिग लड़कियों को उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, और जीवन के मौलिक अधिकारों से वंचित होना पड़ता है। विवाहित नाबालिग बच्चे अपनी पसंद और स्वायत्तता के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, और लैंगिक अधिकारों से वंचित कर दिए जाते हैं। इस तरह की शादियों से जुड़े कई मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का फैसले में उल्लेख किया गया, जिसमें कहा गया कि जिन बच्चों को जबरन विवाह बंधन में बांधा जाता है, उन्हें उनके विकास के अधिकार से वंचित किया जाता है।

सामाजिक प्रगति के लिए खतरा

संविधान लागू होने के 74 साल बाद भी बाल विवाह का समाज में प्रचलन चिंताजनक है। यह सामाजिक प्रगति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए एक निरंतर खतरा बना हुआ है। चीफ जस्टिस ने इस पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बाल विवाह से न केवल लड़कियों का बचपन छिनता है, बल्कि उन्हें सामाजिक अलगाव का भी सामना करना पड़ता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह की समस्या

अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी बाल विवाह को एक बुराई मानकर इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने की कोशिश करता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून ने इस मुद्दे के लिए अधिकार-आधारित रूपरेखा विकसित की है और बाल विवाह के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है।

भविष्य के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकारों, जिला प्रशासन, पंचायतों और न्यायपालिका के लिए विभिन्न निर्देश जारी किए हैं ताकि इस सामाजिक कुप्रथा को समाप्त किया जा सके। पीठ ने स्पष्ट किया कि लड़कियों के विकास और शिक्षा को सुनिश्चित करते हुए उन्हें उनकी पसंद और स्वायत्तता के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

सामाजिक दबाव और बाल विवाह

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण बच्चों की सहमति देने की क्षमता कमजोर हो जाती है। बाल विवाह के संदर्भ में यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है। विशेषकर नाबालिगों को उनके जीवन के बारे में स्वायत्त निर्णय लेने के मौलिक अधिकार से वंचित करना संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।

इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट बाल विवाह के विरुद्ध गंभीर है और इसके खिलाफ कड़े कदम उठाना अनिवार्य मानता है। समाज को भी इस दिशा में जागरूकता फैलाने और उचित कार्यवाही करने की जरूरत है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित और समान अवसरों के साथ अपने जीवन का निर्वाह कर सकें।

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