विश्व भूख सूचकांक: एक विवादस्पद रिपोर्ट
हाल ही में जारी हुए ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023 ने भारत को 127 देशों की सूची में 105वें स्थान पर रखा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत भुखमरी के मामले में बांग्लादेश, श्रीलंका, वियतनाम और नेपाल जैसे देशों से भी पीछे है। कुछ लोग इसे अंतरराष्ट्रीय साज़िश मानते हैं, तो कुछ इसे मोदी सरकार की नीतियों की विफलता के रूप में देखते हैं।
यह सूचकांक हर साल विभिन्न देशों की भुखमरी की स्थिति के आधार पर तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने वाले यूरोपियन NGO, ‘कन्सर्न वर्ल्डवाइड’ और ‘वर्ल्ड हंगर हेल्प’ हैं।
रैंकिंग का मापदंड और भारतीय असंतोष
ग्लोबल हंगर इंडेक्स का स्कोर चार मुख्य मापदंडों पर आधारित होता है: कुपोषण, बाल मृत्यु दर, बच्चों की सेहत और बच्चों की लंबाई। हर मापदंड के आधार पर 0 से 100 तक के अंक दिए जाते हैं। भारत को 27.3 का स्कोर दिया गया है, जो उसे गंभीर स्थिति में दर्शाता है। सबसे ज्यादा अंक बच्चों की लंबाई कम होने के कारण दिया गया है।
जब इस रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय देशों की तुलना की जाती है, तो यह पाया जाता है कि भारत की रैंकिंग उन देशों से भी खराब है जहां राजनीतिक और आर्थिक स्थिति बहुत अस्थिर है। उदाहरण के लिए:
– बांग्लादेश ने 84वीं रैंक हासिल की,
– श्रीलंका जो भारत से राशन सहायता प्राप्त कर रहा है, उसकी 56वीं रैंक है,
– नेपाल की रैंकिंग 68 है, जबकि उसकी अर्थव्यवस्था भारत से काफी कमजोर है।
– पाकिस्तान 102वें स्थान पर है, भारत से कुछ ही स्थान पीछे।
यह स्थिति कई भारतीयों के लिए आश्चर्य और असंतोष का कारण बनी हुई है।
संभावित साज़िश: भारतीय दृष्टिकोण
कई भारतीय विशेषज्ञ और नागरिक मानते हैं कि यह रिपोर्ट भारत के खिलाफ साज़िश का एक हिस्सा हो सकती है। उनका सवाल है कि जिन देशों में लगातार गतिरोध और सैन्य शासन के बावजूद भुखमरी की दर भारत से कम है, यह कैसे संभव है? उनके अनुसार, यह तभी हो सकता है जब इंडेक्स तैयार करने वालों पर बाहरी प्रभाव रहे हों।
कई लोग मानते हैं कि अमीर यूरोपीय देश, जिनके पास संसाधन और सुविधाएं भरपूर हैं, भारत जैसे विकासशील देश के खिलाफ अपने आर्थिक समीकरण सेट करने के लिए इस तरह की रिपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं। इनकी नजरों में, यह उनके लिए राजनीतिक और आर्थिक लाभ प्राप्त करने का एक साधन हो सकता है।
सरकार और नीतियों की आलोचना
हालांकि, यह भी सच है कि कुछ लोग इस स्थिति के लिए भारत सरकार की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार के विकास योजनाओं और नीतियों की कमी के कारण देश में कुपोषण और भुखमरी की स्थिति सुधर नहीं रही। गांव और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता, शिक्षा की कमी और जागरूकता की दरारें रोड़े अटका रही हैं।
भविष्य के लिए सोचने की जरूरत
इस रिपोर्ट ने निश्चित रूप से भारतीय समाज और सरकार के लिए चिंतन और विवाद का एक नया द्वार खोल दिया है। जहां यह रिपोर्ट एक ओर भारत की भूखमरी की स्थिति को उजागर करती है, वहीं दूसरी ओर भारत के हितों के खिलाफ एक संभावित साज़िश का भी अंदेशा दे रही है।
हमें इस अवसर का उपयोग कर देश की जननीतियों में आवश्यक सुधारों को तत्काल लागू करने की आवश्यकता है। इससे देश की भुखमरी की स्थिति में सुधार संभव हो सकता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में सुधार, शिक्षा और जागरूकता का प्रसार, तथा सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन अब समय की मांग है।
इस प्रकार, ग्लोबल हंगर इंडेक्स न केवल भारत की मौजूदा स्थिति की ओर ध्यान खींचता है बल्कि यह भी बताता है कि विश्व स्तर पर भारत की छवि को कैसे उपायों से सुधारा जा सकता है।