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मध्य प्रदेश के इस गांव में रावण की पूजा होती है पारंपरिक तरीके से


मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित एक छोटा सा गांव, जिसे स्थानीय लोग ‘रावण पंचायत’ के नाम से भी जानते हैं, दशहरे के अवसर पर एक अद्वितीय परंपरा का पालन करता है। इस दिन जब पूरे देश में रावण के पुतले जलाए जाते हैं, इस गांव के निवासी ‘रावण बाबा’ की पूजा करते हैं, उन्हें अपना ‘कुलदेवता’ मानते हैं।

रावण की पूजा की अनोखी परंपरा

दशहरे के दिन यहां वार्षिक अनुष्ठान के तहत रावण बाबा की पूजा होती है। गांव की पंचायत का नाम भी रावण के नाम पर ही रखा गया है। पूजा के समय गांव के लोग रावण की मूर्ति पर तेल चढ़ाते हैं और मिष्ठान्न वितरण कर भंडारे का आयोजन करते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि यह मूर्ति 500 से अधिक वर्ष पुरानी है और रावण यहां लेटे हुए अवस्था में विद्यमान हैं।

इतिहास और पारंपरिक मान्यताएं

रावण की इस लेटी हुई मूर्ति के पीछे कई किस्से और मिथक जुड़े हुए हैं। स्थानीय किस्सों के अनुसार, पास की दुधा पहाड़ी पर एक प्राचीन काल में एक राक्षस रहता था, जो ग्रामीणों को काफी परेशान करता था। लोगों ने उसे चुनौती दी कि अगर वह वास्तव में इतना शक्तिशाली है, तो उसे ‘लंकेश’ से लड़ना चाहिए। यह कथा इसी रूप में पारित होती आई है कि राक्षस ने लंका की ओर प्रस्थान किया, लेकिन वहां के पहरेदारों ने उसे प्रवेश नहीं दिया। तब लंकेश, यानी रावण ने उसकी चीखें सुनीं और अंततः राक्षस से युद्ध कर उसे परास्त किया।

मूर्ति का धार्मिक और सामाजिक महत्व

गांव के निवासी रावण को अपने प्रथम देवता के रूप में पूजते हैं। विवाह समारोहों और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में सबसे पहला निमंत्रण रावण बाबा को ही दिया जाता है। यह प्रथा न केवल रावण के प्रति आस्था दर्शाती है, बल्कि गांव की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का एक साधन भी है।

पंचायत और स्थानीय प्रशासन की भूमिका

‘रावण पंचायत’ के सचिव जगदीश प्रसाद शर्मा बताते हैं कि यहां रावण की पूजा सदियों से की जाती रही है और यह परंपरा अब गांव की पहचान बन चुकी है। पंचायत द्वारा हर वर्ष दशहरे पर आयोजित पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है, जिसमें गांव के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। पंचायत की सरपंच प्रीत किराड़ का कहना है कि रावण की पूजा करना गांव के लिए गर्व की बात है और इसे संरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।

स्थानीय मिथकों का प्रभाव

मूर्ति को लेकर फैले विभिन्न मिथक यहां के लोगों के बीच किसी पौराणिक कथा की तरह रच-बस गए हैं। मूर्ति की लेटी हुई स्थिति का मिथकों के आधार पर व्याख्या की जाती है जिससे कि ये कहानियां और भी चमत्कारिक रूप लेती हैं। यहां के लोगों का विश्वास है कि रावण की इस स्थिति के पीछे उसका आराम करना बताया जाता है, जो कि उसके द्वारा राक्षस को परास्त करने के बाद की स्थिति है।

संस्कृति और आस्थाओं का संगम

रावण की पूजा के इस अनूठे संदर्भ में, गांव नटेरन का यह सांस्कृतिक धरोहर बेहद महत्वपूर्ण है। यहां के लोग ना सिर्फ इस मूर्ति से जुड़े हुए हैं, बल्कि यह उनकी आस्था और संस्कृति का एक मिलाजुला प्रमाण भी है। दशहरे के मौके पर रावण की पूजा दर्शाती है कि अलग-अलग समुदायों में आस्था और मान्यता के रूप विभिन्न रूपों में विद्यमान रहते हैं। रावण की पूजा को लेकर प्रश्न उठ सकते हैं, पर इस अनुभव में धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता के व्यापक रंग भी दिखते हैं।

यह परंपरा और इसके पीछे का इतिहास इस बात को साबित करता है कि आस्थाएं और परंपराएं कभी-कभी भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे होती हैं, जहां वे लोगों का जीवन व उनकी सोच गहराई से प्रभावित करती हैं। विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच सामंजस्य का यह उदाहरण सदा गतिशील रहेगा।

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