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महाराष्ट्र राजनीति: मदरसा टीचरों के वेतन में वृद्धि पर शिंदे सरकार का बड़ा कदम भाजपा ने किया समर्थन

महाराष्ट्र में मदरसा शिक्षकों का वेतन बढ़कर तीन गुना

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 2024 की सुगबुगाहट के बीच मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कैबिनेट ने मदरसा शिक्षकों के वेतन में उल्लेखनीय वृद्धि की स्वीकृति दी है। वर्तमान में 6,000 रुपये प्रति माह पर काम करने वाले मदरसा शिक्षक अब 16,000 रुपये की मासिक वेतन पाने वाले हैं। यह निर्णय शिंदे सरकार का बड़ा कदम माना जा रहा है, जो राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय को एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास है।

भाजपा ने किया सरकार के फैसले का समर्थन

महायुति सरकार के इस फैसले पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और इसका समर्थन किया। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने इस कदम की सराहना की और बताया कि पार्टी धर्म से परे शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देती है। सोमैया ने कहा, “हमारी पार्टी यह देखने में विश्वास नहीं रखती कि शिक्षक किस धर्म से हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सभी के लिए है।” भाजपा ने इस फैसले के जरिए दिखाने का प्रयास किया है कि वे एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाते हैं।

मंत्रिमंडल की बैठक में अन्य महत्वपूर्ण फैसले

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में विभिन्न अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए। इनमें मौलाना आजाद अल्पसंख्यक आर्थिक विकास निगम की शेयर पूंजी 700 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये करने की मंजूरी भी शामिल है। इसके अलावा, नॉन-क्रीमी लेयर की आय सीमा को बढ़ाने के लिए भी प्रस्ताव रखा गया है, जिससे अधिक लोग इस लाभ का फायदा उठा सकें।

राज्य अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा

कैबिनेट ने महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए एक मसौदा अध्यादेश को भी मंजूरी दी, जिसे विधानमंडल के अगले सत्र में पेश किया जाएगा। इस आयोग के लिए 27 नए पद स्वीकृत किए गए हैं, जो राज्य में अनुसूचित जाति के उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

राजनीतिक खींचतान और अल्पसंख्यक वोट बैंक

महाराष्ट्र की महायुति सरकार के इस निर्णय को मुस्लिम समुदाय को लुभाने का प्रयास माना जा रहा है। यह फैसले अजित पवार की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं, जिन्होंने महायुति गठबंधन के तहत अल्पसंख्यक समुदाय को साधने की बात कही थी। पवार ने घोषणा की थी कि गठबंधन के हिस्से के रूप में जितनी भी सीटें मिलेंगी, उनमें से 10% टिकट अल्पसंख्यकों को दिए जाएंगे।

बदलती राजनीति और संभावित असर

यह निर्णय महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। भाजपा और शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल एनसीपी के इस कदम से राज्य के मुस्लिम समुदाय में एक नया विश्वास उत्पन्न हो सकता है। आगामी विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा बहस का मुख्य केंद्र बन सकता है, क्योंकि इससे अल्पसंख्यक वोट बैंक में असर पड़ने की संभावना है।

आगे की राह

यह निर्णय उस समय आया है जब राज्य में आगामी चुनावों की तैयारी हो रही है। इसका राजनीतिक असर देखने के लिए सबकी निगाहें अब शिंदे सरकार की नीतियों पर होंगी, जो समाज के विभिन्न तबकों को साधने की कोशिश कर रही है। हालांकि, विपक्षी दल इसे चुनावी चाल के रूप में देख सकते हैं, परंतु इसे महायुति सरकार के एक साहसिक कदम के रूप में भी देखा जा सकता है।

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