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यूपी के उपचुनाव में बीएलओ की भूमिका पर विवाद सपा ने उठाए सवाल


उत्तर प्रदेश में आगामी उपचुनावों से पहले एक नया विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें बूथ लेवल ऑफिसरों (बीएलओ) की नियुक्ति और हटाने को लेकर विशेषकर समाजवादी पार्टी (सपा) ने गंभीर आरोप लगाए हैं। सपा का कहना है कि जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वहां के मुस्लिम और यादव जाति के बीएलओ को हटाकर अन्य जातियों के बीएलओ नियुक्त किए जा रहे हैं। यह मामला चुनावी पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच गहन चर्चा का विषय बन गया है।

सपा के आरोप और प्रमुख विवाद

समाजवादी पार्टी विशेष रूप से मीरजापुर की मझवां सीट और कानपुर की सीसामऊ सीट को लेकर आरोप लगा रही है कि यहां के बीएलओ में धर्म और जाति के आधार पर बदलाव किए जा रहे हैं। सपा ने मीरजापुर की मझवां सीट पर 13 बीएलओ के बदले जाने को लेकर सवाल उठाए हैं, इनमें से 11 बीएलओ मुस्लिम थे। इसी तरह, कानपुर की सीसामऊ सीट पर 124 में से 98 मुस्लिम बीएलओ को बदल दिया गया है।

चुनाव आयोग की प्रक्रिया और बीएलओ का महत्व

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि बीएलओ का बदलना उसकी सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा होता है। बीएलओ, जो कि आमतौर पर विभिन्न सरकारी कर्मचारी होते हैं, चुनाव आयोग के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। उनका मुख्य कार्य मतदाता सूचियों की जांच, वोटर आईडी कार्ड बनाना, और मतदाताओं को सुगम वोट डालने में मदद करना होता है। चुनाव समाप्त होने के बाद ये कर्मचारी अपने पुराने सरकारी कार्यों में वापस लौट जाते हैं।

बीएलओ का कार्य और जिम्मेदारियां

बीएलओ के रोल को समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह चुनाव की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण हिस्सा है:
1. **मतदाता सूची का सत्यापन:** बीएलओ अपने बूथ की मतदाता सूची को नियमानुसार सत्यापित करते हैं।
2. **वोटर आईडी कार्ड निर्माण:** नए मतदाताओं के वोटर आईडी कार्ड बनवाना और उनका नाम मतदाता सूची में शामिल करना।
3. **चुनावी शिक्षा:** बीएलओ मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया के बारे में जागरूक करते हैं और उन्हें निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से मतदान करने के लिए प्रेरित करते हैं।
4. **चुनाव के दिन कर्तव्य:** चुनाव के दिन बीएलओ मतदान केंद्र पर मौजूद रहते हैं और चुनावी गतिविधियों का संचालन सुनिश्चित करते हैं।

समाजवादी पार्टी की प्रतिक्रिया और रणनीति

समाजवादी पार्टी इस बदलाव को बड़े चुनावी मुद्दे के रूप में उभार रही है। उनका मानना है कि बीएलओ के बदले जाने की इस प्रक्रिया में राजनीति की बू आ रही है, और यह चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता के खिलाफ है। सपा ने इस मामले पर चुनाव आयोग से शिकायत भी की है और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

सपा के नेता, चुनाव बहिष्कार की भी धमकी दे रहे हैं यदि इस मुद्दे का न्यायसंगत समाधान नहीं निकाला जाता। उन्होंने इस जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए एक सूची भी जारी की है जिसमें उन मुस्लिम बीएलओ के नाम शामिल हैं जिन्हें बदला गया है।

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने सपा के द्वारा लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज किया है और कहा है कि बीएलओ की नियुक्ति और फेरबदल उसकी नियमित कार्यप्रणाली का हिस्सा है। यह प्रक्रिया पूर्व-निर्धारित होती है और इसमें किसी भी प्रकार की पार्टी विशेष का प्रभाव संभव नहीं है।

आगे की चुनौतियाँ

बीएलओ की नियुक्ति को लेकर खड़ा हुआ यह विवाद उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी उपचुनाव को और भी जटिल बना सकता है। यदि इस मुद्दे का समाधान शीघ्र नहीं निकाला गया तो चुनाव की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं।

समाजवादी पार्टी के इस कदम से न केवल चुनाव आयोग के कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठे हैं, बल्कि यह प्रदेश की राजनीति में एक नए संघर्ष का संकेत भी है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग और राजनीतिक दल इस मुद्दे को किस तरह से हल करते हैं ताकि चुनाव की निष्पक्षता बनी रहे और जनता का विश्वास कायम रहे।

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