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उत्तराखंड से गोद ली गईं माही और प्रियंका: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के जीवन में बदलाव

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का वीगन बनने का प्रेरणास्रोत

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक कार्यक्रम में बताया कि वे अपनी दिव्यांग बेटी माही से प्रेरित होकर वीगन बने हैं। माही लगातार उन्हें ऐसी जीवनशैली अपनाने के लिए समझाती रही है, जो पूरी तरह से क्रूरता मुक्त हो, जिसमें किसी जीव के लिए कोई हिंसा न हो। वीगन जीवनशैली अपनाने का मतलब मात्र मांसाहारी भोजन, शहद, दूध-डेयरी उत्पाद का सेवन न करना नहीं है, बल्कि उसमें किसी भी प्रकार की क्रूरता की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

उत्तराखंड से दिव्यांग बच्चियों को गोद लिया

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपनी दिव्यांग बच्चियों के संघर्ष और जीवनशैली का भी जिक्र किया, जिन्हें उन्होंने 2014 में उत्तराखंड के एक गरीब परिवार से गोद लिया था। इन बच्चियों के नाम प्रियंका और माही हैं। इसके अलावा, चीफ जस्टिस के दो बेटे भी हैं, जो पेशे से वकील हैं।

दिव्यांग बेटियों के चलते नज़रिया बदला

इस मौके पर चीफ जस्टिस ने कहा कि दो ऐसी शानदार बेटियों का अभिभावक होना उनके और उनकी पत्नी के लिए हर दिन खुशी का एहसास दिलाता है। इन बेटियों ने न केवल दुनिया को देखने का उनका नजरिया बदला है, बल्कि बाहरी दुनिया से कैसा संबंध रखें, उसमें भी बदलाव आया है। जीवन में इनकी मौजदूगी उनके उस समाज निर्माण के कमिटमेंट को मजबूत करती है, जहाँ हर बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस कर सके।

मेरी बहन पर ये टेस्ट मत करना!

चीफ जस्टिस ने गोद ली हुईं दिव्यांग बच्चियों के शुरुआती संघर्ष का ज़िक्र भी किया। चीफ जस्टिस ने बताया कि ये बच्चियां उत्तराखंड के एक सामान्य परिवार में पैदा हुईं थीं और 2014 में उनकी जिंदगी में आईं। इससे पहले उनके माता-पिता और डॉक्टरों को सही जानकारी का अभाव था, जिसके कारण चिकित्सा व्यवस्था में कई कठिनाइयाँ आईं। उदाहरण के लिए, लखनऊ जैसे शहर में जहाँ टेस्ट की सुविधा मौजूद थी, वहां मेडिकल कॉलेज में टेस्ट की प्रक्रिया बेहद पीड़ा दायक थी। उन्होंने याद किया कि जब बड़ी बेटी का टेस्ट हुआ तो उसे इतनी परेशानी हुई कि उसने केवल यही कह पाया कि “मेरी बहन पर ये टेस्ट मत करना!”

दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई की मशक्कत

चीफ जस्टिस ने बताया कि कैसे उन्होंने अपनी बच्चियों के लिए स्कूल खोजने में मशक्कत करनी पड़ी। उत्तराखंड में तो ऐसी किसी सुविधा का अभाव था। इलाहाबाद में उन्हें घर पर ही पढ़ाया गया। लेकिन दिल्ली में उन्होंने दूसरे स्कूल की खोज की, जहां उन्हें सलाह दी गई कि उनकी दोनों बच्चियों को मेनस्ट्रीम स्कूल में दाखिला कराया जाए। स्कूल ने कहा कि इन दोनों का दिमाग तेज है और उन्हें विशेष सुविधा की जरूरत नहीं है।

स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं

चीफ जस्टिस ने बताया कि मुख्यधारा के स्कूलों में पढ़ने की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वहां दिव्यांग बच्चों के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पातीं। उदाहरण के लिए, यदि किसी बच्चे को साइंस पढ़ने का शौक है लेकिन उसकी लैब बेसमेंट में स्थापित है, तो लिफ्ट या रैंप की गैरमौजूदगी में बच्चा लाईब्रेरी नहीं जा पाता। इसी तरह, कोई बच्चा प्ले ग्राउंड में खेलने के लिए नहीं जा पाता। जिन बच्चों को बोलने में दिक्कत होती है, वे डिबेट या नाटक में भी हिस्सा नहीं ले पाते क्योंकि स्कूल वालों को डर होता है कि ऑडिएंस में इतना धैर्य न हो कि वे बच्चे की बात समझ सकें।

दिव्यांग बच्चों में पर्याप्त क्षमता

चीफ जस्टिस ने जोर देकर कहा कि दिव्यांग बच्चों में पर्याप्त क्षमता होती है, जिससे वे दूसरों की जिंदगी में भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। उनकी बेटी माही पर्यावरण के प्रति बेहद सजग है। उसने 8 बिल्लियों की मां जैसी देखभाल की है और पसंदीदा बिल्ली के बच्चे को जन्म देते समय उसकी देखभाल खुद की। पिछले 10 साल से माही ऐसी जीवनशैली अपनाने के लिए समझाती रही है जो पूरी तरह से क्रूरता-मुक्त हो।

पेड़ काट देंगे तो चिड़ियों का घर नहीं बचेगा

इस मौके पर चीफ जस्टिस ने माही के जीवन से जुड़ा एक वाकया भी सुनाया। कोविड-19 महामारी के दौरान जब माही ऑनलाइन क्लास कर रही थी, उसने पेड़ कटने की आवाज सुनी। उसने अपने टीचर से कुछ मिनट की ब्रेक की इजाजत मांगी और व्हील चेयर पर बाग में पहुंच गई। वहाँ उसने कर्मचारी से पेड़ न काटने की अपील की क्योंकि वह पेड़ चिड़ियों का घर था।

समापन

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि माही ने उन्हें पिछले 10 सालों से बिल्कुल क्रूरता-मुक्त जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया है। जजों को समझाना आमतौर पर मुश्किल होता है, फिर चाहे वो कोर्ट रूम में हों या घर में। लेकिन माही की इस सोच ने उन्हें पूरी तरह से वीगन जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने कहा कि माही की संवेदनशीलता और पर्यावरण के प्रति जागरूकता ने उन्हें भी अपने जीवन में आवश्यक बदलाव करने के लिए बाध्य कर दिया है।

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