कांग्रेस का नया हमला
हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच की सैलरी और पेंशन के मुद्दे पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ऐसी कौन सी नौकरी है, जहां सैलरी से ज्यादा पेंशन हो। इस विवाद के बाद आईसीआईसीआई बैंक की भी सफाई सामने आई है। लेकिन इस विवाद ने अब और बड़ा रूप ले लिया है।
सेबी प्रमुख पर लगाए गए आरोप
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि हमने कल एक बड़ा खुलासा किया था जिसमें हमने नरेंद्र मोदी, सेबी और आईसीआईसीआई बैंक से सवाल किए थे। खेड़ा ने कहा, “हम जानना चाहते हैं कि ऐसी कौन सी नौकरी है जहां सैलरी से ज्यादा पेंशन मिलती है। माधबी पुरी बुच को सैलरी से ज्यादा पेंशन मिलना हमारे आरोप को साबित करता है। ऐसी नौकरी सबको मिलनी चाहिए, जहां सैलरी से ज्यादा पेंशन हो।”
खेड़ा ने आगे बताया कि माधबी पुरी बुच के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप खुद भाजपा के एक पूर्व सांसद ने भी लगाए हैं। इस मामले में सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाए गए हैं।
डॉ. सुभाष चंद्रा के आरोप
इस विवाद में नया मोड़ तब आया जब जी समूह के संस्थापक डॉ. सुभाष चंद्रा ने भी सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगाए। डॉ. सुभाष चंद्रा ने कहा कि वह सेबी के साथ सहयोग करना बंद कर देंगे। उन्होंने कहा कि माधबी पुरी बुच के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की संभावना भी तलाश रहे हैं क्योंकि उन्हें यकीन है कि बुच भ्रष्ट हैं।
चंद्रा ने आरोप लगाया कि सेबी प्रमुख ने उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की और उन्होंने यह भी कहा कि बुच और आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर का गहरा संबंध था। यह आरोप लगाया गया कि बुच को अवैध रूप से पैसे दिए गए जो कि भ्रष्टाचार का मामला है।
कांग्रेस के पुराने आरोप
कांग्रेस पार्टी ने पहले भी माधबी पुरी बुच के खिलाफ कई आरोप लगाए थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि माधबी पुरी बुच ने सेबी की पूर्णकालिक सदस्य होते हुए भी आईसीआईसीआई बैंक से सैलरी ली है। पवन खेड़ा ने कहा था, “माधबी पुरी बुच 2017 से 2024 तक आईसीआईसीआई बैंक से सैलरी लेती रहीं, जो कि नियमों का उल्लंघन है।”
कांग्रेस पार्टी ने कहा कि माधबी पुरी बुच ने 16 करोड़ रुपये से अधिक सैलरी और अन्य लाभ लिए। खेड़ा ने इसे “शतरंज का खेल” बताया जहां माधबी पुरी बुच को एक “मोहरे” के रूप में प्रस्तुत किया गया।
आईसीआईसीआई बैंक की सफाई
कांग्रेस के इन आरोपों के जवाब में, आईसीआईसीआई बैंक ने एक बयान जारी किया। बैंक ने कहा कि उसने माधबी पुरी बुच की अक्टूबर 2013 में रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई सैलरी या ईएसओपी नहीं दिया है। आईसीआईसीआई बैंक की ओर से यह भी कहा गया कि बुच को उनके कार्यकाल के दौरान सभी पारिश्रमिक बैंक की नीतियों के तहत ही दिए गए थे।
बैंक ने अपने बयान में स्पष्ट किया, “हमारे नियमों के तहत, ईएसओपी आवंटित किए जाने की तारीख से अगले कुछ वर्षों में मिलते हैं। बुच को ईएसओपी आवंटन किए जाते समय लागू नियमों के तहत सेवानिवृत्त कर्मचारियों को विकल्प था कि वे अधिकृत होने की तारीख से 10 साल की अवधि तक कभी भी अपने ईएसओपी का उपयोग कर सकते हैं।”
विवाद का प्रभाव
इस विवाद का असर बड़े कॉरपोरेट सौदों पर भी पड़ा है। डॉ. सुभाष चंद्रा ने यह भी आरोप लगाया कि माधबी पुरी बुच की भूमिका के चलते ज़ी एंटरटेनमेंट और सोनी पिक्चर्स के प्रस्तावित विलय सौदे को भी प्रभावित किया गया। चंद्रा ने कहा कि माधबी पुरी बुच ने इस सौदे को रोकने के लिए अपनी पूर्व-निर्धारित मानसिकता के साथ काम किया।
उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भी इस मामले में लिखा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
निष्कर्ष
इस विवाद ने न केवल सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच के खिलाफ आरोपों को बल्कि समग्र वित्तीय पारदर्शिता और प्रक्रियाओं पर भी सवाल खड़े किए हैं। अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में इस मुद्दे पर और क्या खुलासे होते हैं और सरकार व अन्य अधिकारिक एजेंसियों की प्रतिक्रिया क्या होती है।
कांग्रेस और अन्य आरोपियों के इन दावों के बाद से यह मामला और भी गंभीर होता जा रहा है और इसके बाद और भी गहन जांच की संभावनाएं बन सकती हैं।