परिचय
अजमेर शरीफ दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की समाधि के रूप में प्रसिद्ध है, एक बार फिर से विवादों के घेरे में है। हिंदू सेना ने दावा किया है कि यह दरगाह वास्तव में एक प्राचीन शिव मंदिर के ऊपर निर्मित है, जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। इस दावे के साथ ही राजस्थान की अदालत में दरगाह को शिव मंदिर घोषित करने की याचिका दायर की गई है। याचिका में दरगाह में हिंदुओं को पूजा का अधिकार देने और ASI (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) को वैज्ञानिक सर्वेक्षण के निर्देश देने की मांग की गई है।
हिंदू संगठनों का दावा
हिंदू सेना ने यह दावा पेश किया है कि दरगाह को एक प्राचीन हिंदू मंदिर की धरोहर पर बनाया गया है। उनका कहना है कि किसी भी मुस्लिम रिकॉर्ड में इस बात का उल्लेख नहीं है कि दरगाह को एक खाली स्थान पर निर्मित किया गया था। इसलिए यह स्पष्ट होता है कि दरगाह को किसी अन्य संरचना को बदलकर बनाया गया था। इस दावे के आधार पर विभिन्न हिंदू संगठनों ने अब इसे लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इन संगठनों का कहना है कि दरगाह के स्थान पर पहले एक शिव मंदिर था, जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया और फिर उसी स्थान पर दरगाह बनाई गई।
दरगाह का इतिहास और वास्तुकला
अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण मुगल बादशाह हुमायूं ने करवाया था। इस दरगाह के निर्माण की वास्तुकला और इसके इतिहास की छानबीन की गई तो यह पाया गया कि कई हिस्से हिंदू मंदिर की संरचना की ओर इशारा करते हैं। यह जानकारी हमें राजस्थान के मशहूर इतिहासकार हर बिलास शारदा की किताब “Ajmer–Historical and Descriptive” से मिलती है, जो वर्ष 1911 में छपी थी।
इतिहासकार हर बिलास शारदा की जानकारी
इस किताब के चैप्टर नंबर 8 में दरगाह की वास्तुकला और निर्माण पर चर्चा की गई है। किताब के पेज नंबर 88 और 89 पर लिखा है कि दरगाह परिसर में स्थित बुलंद दरवाजा हिंदू इमारत के अवशेषों से बना है। वहां की तीन मंजिला छतरी की बनावट और इसके पत्थर हिंदू मंदिर होने की दिशा में इशारा करते हैं। इसके अलावा दरगाह परिसर में मौजूद दरवाजा और बाकी के निर्माण कार्य भी हिंदू मंदिर के खंभों का उपयोग करके किए गए हैं। यह दावा किया गया है कि दरगाह का निर्माण इस्लामिक काल के हिंदू मंदिरों के अवशेषों से किया गया था और यह हिंदू मंदिर में कुछ बदलाव और जोड़कर किया गया है।
वर्तमान विवाद
इस विवाद के चलते दरगाह का मैनेजमेंट काफी भड़क गया है और उन्होंने इन दावों का खंडन किया है। लेकिन हिंदू सेना और अन्य संगठनों के दावे ने इस मामले को काफी विनाशकारी बना दिया है। इस विवाद का निवारण अब न्यायालय के हाथ में है। इतिहास के आधार पर हिंदू पक्ष दावा कर रहा है कि दरगाह की जगह प्राचीन शिव मंदिर था।
वर्तमान कानूनी स्थिति
राजस्थान की अदालत में दरगाह को मंदिर घोषित करने की याचिका पहले ही दायर की जा चुकी है। याचिका में दरगाह में हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार देने की मांग की गई है, जिससे महादेव शिव को दोबारा विराजमान किया जा सके। याचिका में ASI को दरगाह के वैज्ञानिक सर्वेक्षण का निर्देश देने की मांग भी की गई है।
निष्कर्ष
अजमेर शरीफ दरगाह का मामला अब कानूनी प्रक्रिया के अधीन है और कोर्ट के फैसले का इंतजार करना होगा। इस मामले में दोनों पक्षों के तर्क और ऐतिहासिक साक्ष्य का महत्व है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इसके आधार पर अदालत क्या निर्णय लेती है। निष्कर्ष यह है कि मस्जिद और दरगाहों पर दावों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ने जा रहा है और इसे साबित करना एक लंबी कानूनी लड़ाई होगी।