तिलक और कलावा पर स्कूल प्रिंसिपल का विवादित फरमान
अमरोहा से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जिसने शिक्षा प्रणाली में धार्मिक दृष्टिकोण पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। गजरौला के पियर्स इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल मोहसिन ने कुछ ऐसे फरमान जारी किए हैं जो विवाद का कारण बन गए हैं। इन फरमानों में छात्रों को तिलक लगाने और कलावा बांधने से रोकना और प्रार्थना के दौरान हाथ जोड़ने से मना करना शामिल है। यह मामला तब और बढ़ गया जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्य मामले में हस्तक्षेप करने पहुंचे और स्कूल में जमकर हंगामा किया।
छात्रों को तिलक और कलावा से रोका
गजरौला के पियर्स इंटर कॉलेज में धमाके की वजह बनी प्रिंसिपल मोहसिन की अनुशासनात्मक कार्रवाई, जिसमें उन्होंने छात्रों को तिलक लगाने और कलावा बांधने से मना किया। इस बात से छात्रों और उनके माता-पिता में रोष फैल गया। प्रार्थना के दौरान हाथ जोड़ने की परंपरा को भी मोहसिन ने नकार दिया और जुम्मे के दिन स्कूल में छुट्टी की घोषणा कर दी। यह फरमान सुनने पर ABVP के कार्यकर्ता सक्रिय हो गए और उन्होंने स्कूल के बाहर प्रदर्शन किया। इस दबाव के चलते प्रिंसिपल को अपना फरमान वापस लेना पड़ा और उन्हें हिन्दू छात्र के हाथ में कलावा बांधना और तिलक लगाना पड़ा।
रामपुर में भी ऐसा ही मामला, मुस्लिम टीचर को हटाया
यूपी के रामपुर से भी एक ऐसा ही मामला प्रकाश में आया है। राजकीय इंटर कॉलेज धमोरा में एक मुस्लिम शिक्षिका फिरदौस ने छात्रों के तिलक लगाने और कलावा बांधने पर एतराज जताया। विद्यार्थियों के परिजनों को जब यह जानकारी मिली तो वे स्कूल पहुंचे और प्रिंसिपल से सवाल-जवाब किए। इस दौरान ABVP के कार्यकर्ताओं ने भी मामले में हस्तक्षेप किया और स्कूल परिसर में खूब बहस हुई। स्कूली बच्चों ने भी मुस्लिम टीचर फिरदौस के फरमान की शिकायत की। आखिरकार, स्कूल प्रबंधन ने लोगों के दबाव को देखते हुए फिरदौस को नौकरी से हटा दिया।
धार्मिक सीमांकन का असर शिक्षा पर
अमरोहा और रामपुर के इन मामलों ने न केवल शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि जाति और धर्म के नाम पर छात्रों के मनोबल को भी प्रभावित किया है। धर्म और शिक्षा के बीच तालमेल कैसे बने, इस पर गंभीर विचार-विमर्श हो रहा है। इन घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या छात्रों की धार्मिक आस्थाओं को स्कूलों में अपनाने से विद्यालय के अनुशासन और आपसी सौहार्द पर असर पड़ेगा।
शिक्षा में धार्मिक तनाव
शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को ज्ञान देना और उन्हें समाज का जिम्मेदार नागरिक बनाना होता है, न कि धार्मिक मान्यताओं के आधार पर विभाजित करना। स्कूल में छात्रों की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करना और उन्हें समानता का बोध कराना महत्वपूर्ण है। किन्तु अमरोहा और रामपुर की घटनाओं ने यह दिखाया है कि किस तरह धार्मिक तनाव शिक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकता है।
स्थानीय प्रशासन की भूमिका
स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग को इन मामलों में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए था और ऐसी स्थिति से निपटने के लिए स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए थीं। प्रशासन की निष्क्रियता ने विवाद को और भड़काने का ही काम किया है। सरकार को इस दिशा में सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
समाज की प्रतिक्रिया
समाज के विभिन्न वर्गों ने इन घटनाओं पर निंदा व्यक्त की है। लोगों का मानना है कि शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने के बजाय धार्मिक मतभेदों को बढ़ावा देना स्कूल प्रबंधन की गलती है। धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते हुए शिक्षा प्रणाली को संचालित करना ही एक सफल और समृद्ध समाज के निर्माण का सही तरीका है।
निष्कर्ष
अमरोहा और रामपुर की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि हमारे समाज में अभी भी धार्मिक भावनाओं को लेकर कई समस्याएं हैं। स्कूलों में धार्मिक स्थितियों के आधार पर भेदभाव करना अनुचित है। शिक्षा का उद्देश्य सभी छात्रों को समान अवसर और समानता का अनुभव देना होना चाहिए। धार्मिक भिन्नताओं के बावजूद, हमें एक दूसरे के आदर और सम्मान के साथ जीना सीखना होगा और यही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
यह मामले शिक्षा प्रणाली और सामाजिक आयामों को गहराई से समझने के लिए एक महत्वपूर्ण समय है ताकि हम भविष्य में ऐसी घटनाओं से बच सकें और अपने बच्चों को एक स्वस्थ एवं समावेशी वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान कर सकें।