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जामिया में दीपोत्सव के दौरान नारेबाजी और संघर्ष क्यों हुआ?

दीपोत्सव पर विवाद का प्रांसगिक घटनाक्रम

दिल्ली का जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया है, इस बार कारण है दीपोत्सव के दौरान हुआ हंगामा। दिवाली के त्योहार के एक हफ्ते पहले आयोजित इस कार्यक्रम की गूंज केवल विश्वविद्यालय के कैम्पस तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसके राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी सवाल खड़े किए गए हैं। कार्यक्रम के दौरान एक ऐसे समय पर विवाद शुरू हुआ जब विद्यार्थियों का एक गुट दीप जलाने और रंगोली बनाने में व्यस्त था। इसी बीच कुछ लोगों ने रंगोली को पैरों से खराब कर दिया, जिसके बाद घटना ने हिंसात्मक रूप धारण कर लिया।

जबरदस्त नारेबाजी और टकराव

विवाद का यह मामला जामिया के गेट नंबर 7 पर हुआ। घटना ने तब जोर पकड़ा जब दो छात्रों के गुट आपस में भिड़ गए और एक-दूसरे के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। बताया जाता है कि नारेबाजी के दौरान इस्लामिक नारे भी लगाए गए, जिससे स्थिति और हिंसात्मक हो गई। इस विवाद का विस्तार तब होता दिखाई दिया जब छात्रों के दोनों गुटों के बीच मारपीट की खबरें सामने आईं। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह घटना विश्वविद्यालय के शांति और सौहार्द्र के माहौल को चुनौती देती है।

समाज और राजनीति के बीच कटुता

इस विवाद के चलते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने आरोप लगाया कि कुछ बाहरी तत्वों ने दिवाली के इस आयोजन को बाधित करने की कोशिश की। ABVP का यह भी कहना है कि इस दौरान ‘फिलिस्तीन जिंदाबाद’ के नारे भी लगाए गए। इन घटनाओं ने न केवल कैंपस के भीतर बल्कि समाज में भाईचारे की भावना पर भी चोट पहुंचाई है।

इस विवाद ने राजनीति को भी गर्मा दिया है। कई नेता और सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना को धार्मिक ध्रुवीकरण के रूप में देखते हैं, जो कि समाज में असहिष्णुता की बढ़ती प्रवृत्ति का प्रतीक बन सकता है।

सुरक्षा की दृष्टि से प्रभाव और प्रशासन की प्रतिक्रिया

घटना की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को तुरंत परिसर के बाहर तैनात किया गया। पुलिस प्रशासन ने मामले को शांत करने की पूरी कोशिश की और छात्रों से बातचीत के जरिए स्थिति को नियंत्रित किया। परिसर में स्थिति फिलहाल शांतिपूर्ण बताई जा रही है, लेकिन तनाव का माहौल अभी बरकरार है।

जामिया मिलिया इस्लामिया की छवि लेकर सवाल

ऐसा लगता है कि जामिया मिलिया इस्लामिया अब विवादों के घेरे में आ गया है। इस बार का मामला विश्वविद्यालय की छवि को और कमजोर कर सकता है। लगातार हो रहे विवाद विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित कर सकते हैं, और इसके शैक्षणिक प्रतिष्ठान को भी चुनौती दे सकते हैं।

अंतिम विचारों और संभावित परिणाम

यह घटना न केवल विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक चिंता का विषय है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि किस तरह से प्रशासन और संबंधित जनसाधारण इस विवाद से आगे बढ़ेंगे और भविष्य में ऐसे हालात को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।

घटना के पीछे के तत्वों की पूरी जांच होना बेहद जरूरी है ताकि ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। यह घटना एक विचारणीय स्थिति प्रस्तुत करती है, जो भारतीय समाज में चल रही विभाजनकारी प्रवृत्तियों को समझने का एक अवसर भी हो सकती है।

इस पूरे प्रकरण का निष्कर्ष यह है कि शांति और संवाद से ही किसी भी प्रकार के विवाद को सुलझाया जा सकता है, और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम समाज को सामंजस्यपूर्ण बनाएं।

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