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झारखंड चुनाव: बीजेपी के इस दांव से बदल सकती है राजनीतिक समीकरण

झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तैयारियां

विधानसभा चुनाव 2024 के आते ही झारखंड और महाराष्ट्र में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। इन चुनावों में एनडीए और इंडिया अलायंस के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। दोनों गठबंधनों से जुड़ी पार्टियों के बीच चल रही इस खींचतान ने कई राज्यों में माहौल गरमा दिया है। पोस्टर वॉर से लेकर नेताओं के बयानों तक, हर जगह कहीं न कहीं कोई नया मुद्दा उठता दिख रहा है।

यूपी में ‘बंटोगे तो कटोगे’ के नारों की गूंज

उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ का नारा ‘बंटोगे तो कटोगे’ बहुत चर्चा में है। इस नारे ने एक नई सियासी बहस को जन्म दिया है। लखनऊ के बाद, वाराणसी के लंका इलाके में इस नारे के साथ एक पोस्टर देखा गया जिसमें ‘हिंदू जाति में बटेंगे तो बांग्लादेश जैसा कटेंगे’ जैसे कथन का जिक्र था। इसने हिंदू एकता और राजनीति को एक नया मोड़ दिया है।

झारखंड में यूसीसी का मुद्दा

झारखंड की राजनीति में बीजेपी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का दांव खेला है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि अगर झारखंड में बीजेपी सत्ता में आती है, तो वहां यूसीसी लागू होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आदिवासी समुदाय को इससे अलग रखा जाएगा। यह घोषणा एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह हिंदू वोट को बीजेपी के पक्ष में लाने का प्रयास हो सकता है।

भ्रष्टाचार के आरोप और हेमंत सोरेन

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम इस समय भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण चर्चा में है। ईडी ने इस साल की शुरुआत में उन्हें घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया था, हालांकि वे बाद में जमानत पर रिहा कर दिए गए। बीजेपी इन आरोपों को बड़े मंच से उठा रही है और सोरेन सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रही है। अब देखना है कि क्या भाजपा इन आरोपों के जरिए झारखंड की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव ला सकती है या नहीं।

पोस्टर वॉर और राजनीतिक प्रचार

झारखंड और अन्य राज्यों में पोस्टर वॉर ने चुनावी प्रचार को हवा दी है। पोस्टरों के माध्यम से पार्टियां एक-दूसरे पर निशाना साध रही हैं। ‘बंटोगे तो कटोगे’ जैसे नारे के माध्यम से भाजपा हिंदू वोट बैंक को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रही है, जबकि विपक्षी दल इसके जवाब में नई रणनीति अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।

समीकरण का बदलता स्वरूप

राजनीति में समीकरण समय के साथ बदलते रहते हैं। एनडीए गठबंधन और इंडिया अलायंस के बीच चल रही खींचतान में कई मुद्दे हैं जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। जहां एक तरफ एनडीए गठबंधन अपने सांप्रदायिक मुद्दों के माध्यम से जनता का ध्यान खींच रहा है, वहीं इंडिया अलायंस अपने विकास के एजेंडे पर जोर दे रहा है।

आने वाले चुनाव और उनका असर

आगामी चुनाव न केवल राज्य स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा असर डाल सकते हैं। झारखंड, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के चुनावी नतीजे आगामी लोकसभा चुनावों की दिशा तय कर सकते हैं। राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से मतदाताओं को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।

इन सब के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में राजनीतिक दल कौन से नए मुद्दे उठाते हैं और मतदाता किस ओर अपना विश्वास जताते हैं। चुनावी मौके पर उठाए गए ये मुद्दे और आरोप-प्रत्यारोप निश्चित ही राजनीति का नया रूप पेश करेंगे।

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