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डॉक्टरों का अद्भुत कारनामा: एओर्टिक एन्यूरिज्म से पीड़ित मां-बेटे का सफल उपचार

भूली भुलायी एओर्टिक एन्यूरिज्म रोग की गंभीरता

एक विशेष प्रकार के हृदय रोग ने हैदराबाद के कामिनेनी अस्पताल के डॉक्टरों को एक और चमत्कार करने का अवसर प्रदान किया। इस बार का मामला न केवल चिकित्सीय दृष्टिकोण से जटिल था, बल्कि भावनात्मक रूप से भी चुनौतीपूर्ण रहा। इस दुर्लभ एओर्टिक एन्यूरिज्म रोग से पीड़ित मां और बेटे का सफल ऑपरेशन कर उन्हें एक नई ज़िंदगी देने में डॉक्टरों ने सफलता पाई। एओर्टिक एन्यूरिज्म वह स्थिति है जिसमें धमनी की दीवार कमजोर होकर फूल जाती है, जिसके परिणामस्वरूप धमनी फट सकती है और यह जानलेवा हो सकती है।

दुर्लभ मार्फन सिंड्रोम और इसके खतरनाक परिणाम

डॉक्टरों का कहना है कि मां और बेटे दोनों को मार्फन सिंड्रोम नामक दुर्लभ आनुवांशिक रोग भी है। मार्फन सिंड्रोम की घटना अत्यंत दुर्लभ होती है और यह प्रति 1,00,000 में से केवल 0.19 लोगों को प्रभावित करता है। कंसल्टेंट कार्डियोथोरेसिक सर्जन विशाल वी. खांते इस पूरी प्रक्रिया के मुख्य प्रवर्तक थे। उन्होंने बताया, “मां और बेटे का सर्जरी सफलतापूर्वक कामिनेनी अस्पताल में किया गया, जिसमें हमनें उनकी एन्यूरिज्म महाधमनी को कृत्रिम महाधमनी से बदल दिया, जिससे उनकी जान बच गई।”

परिवार की जटिल चिकित्सीय समस्याएं

डॉक्टरों के अनुसार यह परिवार कई चिकित्सीय समस्याओं से जूझ रहा है। उनकी हड्डियाँ और लिगामेंट भी कमजोर हैं और उन्हें रक्त वाहिकाओं और वाल्वों में भी समस्या है। छह महीने पूर्व एक महिला आपातकालीन विभाग में आई थी। विभिन्न परीक्षणों के बाद, डॉक्टरों ने पाया कि उसकी महाधमनी फट गई थी। तत्काल कृत्रिम महाधमनी प्रत्यारोपित कर उसकी जान बचाने के लिए आपातकालीन सर्जरी की गई।

महाधमनी की आपातकालीन सर्जरी

महिला की लंबाई और उसकी विशेषताएं सामान्य महिलाओं से काफी अलग थीं, उसकी लंबाई 5 फीट 9 इंच थी। कंसल्टेंट कार्डियोथोरेसिक सर्जन ने आगे बताया कि महिला का 18 वर्षीय बेटा जो उससे मिलने आया था, उसकी लंबाई भी 6 फीट 4 इंच थी। यह आनुवंशिक समानता को दर्शाता था, जिससे संदेह उत्पन्न हुआ कि बेटे को भी मार्फन सिंड्रोम सहित अन्य चिकित्सीय स्थितियां विरासत में मिली होंगी। बेटे का परीक्षण कराने पर वैसी ही समस्याएं सामने आईं और तुरंत सर्जरी की सलाह दी गई।

बेंटल प्रक्रिया के तहत जटिल सर्जरी

युवक की महाधमनी भी काफी बड़ी हो चुकी थी। सभी आवश्यक परीक्षण करने के बाद, डॉक्टरों ने बेंटल प्रक्रिया के तहत एक जटिल सर्जरी की। डॉ. खांते ने बताया, “हमने बढ़ी हुई महाधमनी को निकाल दिया और उसकी जगह कृत्रिम महाधमनी लगाई, जिसमें 29 आकार का वाल्व और ट्यूब लगाया गया। यह एक बहुत ही जटिल और चुनौतीपूर्ण सर्जरी थी, जिसकी सफलता दर केवल 50 प्रतिशत थी। सौभाग्य से, मां और बेटे दोनों की सर्जरी पूरी तरह सफल रही।”

आनुवंशिक स्थिति और निदान की महत्ता

यह जेनेटिक स्थिति आनुवंशिक रूप से आगे बढ़ती है, और इस मामले में इसने दादी, मां और बड़े बेटे को प्रभावित किया। 14 वर्षीय छोटे बेटे पर किए गए परीक्षणों से पता चला कि उसे भी यही समस्या है। इन स्थितियों की जल्द से जल्द पहचान करने से महाधमनी के बढ़ने और फटने से पहले समय से हस्तक्षेप कर के जीवन बचाया जा सकता है। इस मजबूरीपूर्ण और संवेदनशील मामले ने एक बार फिर से यह साक्षात्कार करा दिया कि चिकित्सा प्रौद्योगिकी की प्रगति और विशेषज्ञ डॉक्टरों के समर्पण के बल पर कैसे असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

डॉक्टरों का चमत्कार

डॉक्टरों के इस साहसिक प्रयास ने उस परिवार को जीवनदान दिया, जो कई जटिलताओं और आनुवंशिक रोगों से जूझ रहा था। यह मामला चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलिब्धि के रूप में जाना जाएगा। डॉक्टरों की मेहनत और विशेषज्ञता ने यह साबित कर दिया कि किसी भी जटिल समस्या से निपटने के लिए चिकित्सा विज्ञान में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। यह मां और बेटे के लिए ही नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञान के पूरे जगत के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया है।

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