रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा का विवाद
दिल्ली के सदर बाजार में स्थित ईदगाह मैदान में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर पिछले कुछ दिनों से विवाद गहराता जा रहा है। यह मुद्दा दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुँच चुका है। कोर्ट ने उन लोगों से सवाल किया है जो मूर्ति लगवाने का विरोध कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई कोई धार्मिक शख्सियत नहीं बल्कि राष्ट्रीय नायिका हैं, और उनकी प्रतिमा से नमाज पढ़ने में क्या दिक्कत है?
मूर्ति विरोध का कारण
धार्मिक आधार पर मूर्ति पूजा निषिद्ध होने का तर्क देकर कुछ धार्मिक समूह रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा के विरोध में उतरे हैं। इन समूहों का कहना है कि मूर्ति स्थापित करने से उनके धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है। हालांकि, इस तर्क को अदालत ने पर्याप्त नहीं माना और मस्जिद कमेटी को रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी याद दिलाई।
आजादी की प्रतीक रानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 की स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी थी। वह उस समय की महान स्वतंत्रता सेनानी थीं और उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए, ईदगाह मैदान में उनकी प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव अधिकारिकों द्वारा रखा गया था।
वक्फ बोर्ड का दावा और अदालत का रुख
ईदगाह के पास की जमीन जिसे डी.डी.ए. की संपत्ति बताया गया है, उसपर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा पेश किया था। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस दावे को अस्वीकार करते हुए पार्क को डी.डी.ए. की संपत्ति बताया। इसके बावजूद 26 सितंबर को बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और प्रतिमा स्थापित करने का काम रुकवाने का प्रयास किया।
महिलाओं का विरोध प्रदर्शन
मूर्ति स्थापना के विरोध में 100 से अधिक महिलाओं ने धरना दिया। इस विरोध के पीछे मुख्य तर्क धार्मिक आस्था का अपमान बताना था। हालाँकि, कोर्ट ने इन विरोधों को वैध नहीं माना और मूर्ति स्थापना के कार्य को जारी रखने का आदेश दिया।
मूर्ति स्थापना कार्य का प्रगति
बताया जा रहा है कि जिले के नगर निगम के निगरानी में मूर्ति स्थापना का कार्य तेजी से चल रहा है। यह कार्य सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों के तहत हो रहा है, जिसमें यह कहा गया है कि रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा के कारण किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं होगा।
कोर्ट की अगली सुनवाई
इस मामले की अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को होनी है। हाईकोर्ट ने मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए प्रतिमा स्थापना का विरोध करने वालों को कड़ी चेतावनी दी है। कोर्ट का यह कहना है कि राष्ट्रीय नायकों का सम्मान हर एक भारतीय का कर्तव्य है, चाहे वह किसी भी धर्म का पालन करता हो।
मूर्ति स्थापना का महत्त्व
रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति स्थापित करना स्वतंत्रता संग्रामी और राष्ट्रीय आदर्शों के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक प्रयास है। यह किसी खास धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का प्रतीक है।
विरोध और समाधान
विरोध करने वालों के पास अब सीमित विकल्प हैं और उन्हें न्यायालय के आदेशों का पालन करना ही होगा। उम्मीद है कि हाईकोर्ट की सख्ती से विवाद समाप्त होगा और मूर्ति का सम्मानजनक स्थापना होगी।
समाज का दृष्टिकोण
यह समझना जरूरी है कि आज के समय में धर्म और राष्ट्रवाद एक दूसरे के विरुद्ध नहीं बल्कि साथ चल सकते हैं। रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति का विरोध धार्मिक विश्वासों की बजाय राष्ट्रीय एकता और सम्मान को प्राथमिकता देनी चाहिए।
(दिल्ली से राजू राज की रिपोर्ट)