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न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने की सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत

मुद्दा और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस वेदव्यासचार श्रीशानंद की विवदास्पद टिप्पणी फिर से चर्चा में आ गई है, जिसमें उन्होंने पश्चिमी बेंगलुरु के एक मुस्लिम बहुल इलाके को ‘पाकिस्तान’ कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बयान पर गंभीर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया कि इस तरह की टिप्पणी देश की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ है और किसी को देश के किसी हिस्से को इस प्रकार नहीं उल्लेखित करना चाहिए।

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने स्पष्ट कहा कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ न्यायिक प्रणाली की गरिमा और निष्पक्षता को प्रभावित करती हैं।

जजों की जिम्मेदारी और सजगता की आवश्यकता

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस श्रीशानंद की ओपन कोर्ट में मांगी माफी के बावजूद अदालत में इस मामले पर अपनी सुनवाई समाप्त कर दी। साथ ही, चीफ जस्टिस और अन्य जजों ने नसीहत दी कि लाइव स्ट्रीमिंग के दौर में जजों को अपनी टिप्पणियों में विशेष सावधानी बरतनी होगी। लाइव स्ट्रीमिंग की वजह से अब कोर्ट की सुनवाई का प्रभाव केवल कोर्ट रूम में बैठे लोगों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि उससे बाहर की दुनिया पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

विवाद की उत्पत्ति

कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस वेदव्यासचार श्रीशानंद के दो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे, जिनमें से एक में वे पश्चिमी बेंगलुरु के एक मुस्लिम बहुल इलाके को ‘पाकिस्तान’ कह रहे थे। इसके अलावा, एक अन्य वीडियो में वे एक महिला वकील के बारे में असंवेदनशील टिप्पणी करते हुए नजर आए थे। इन वीडियोज के वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई शुरू की थी।

सुनवाई का निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि जस्टिस श्रीशानंद ने 21 सितंबर को ओपन कोर्ट में माफी मांगी थी। उन्होंने कहा था कि उनका मकसद किसी वर्ग की भावना को आहत करने का नहीं था। उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि यदि किसी की भावना आहत हुई है तो वे माफी चाहते हैं। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि इसलिए इस मामले में आगे कार्रवाई नहीं की जाएगी।

लाइव स्ट्रीमिंग की पारदर्शिता

हालांकि, चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के विवाद के चलते न्यायालय की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग बंद नहीं की जा सकती। अदालत की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। न्यायिक प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है, न कि अदालत में हो रही सुनवाई को पर्दे में रखा जाए। लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया में जनता का भरोसा और बढ़ेगा।

न्यायिक प्रणाली की जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बात को दोहराते हुए दृढ़ता से कहा कि न्यायिक गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए जजों को अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा। वे किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि उनका व्यक्तित्व पूर्वाग्रह का प्रतीक न बने। न्यायाधीशों को संवैधानिक मूल्यों का ध्यान रखते हुए निर्णय लेने चाहिए ताकि जनता का न्यायिक प्रणाली पर भरोसा बना रहे।

न्यायपालिका का सन्देश

सुप्रीम कोर्ट की यह कार्रवाई न्यायपालिका की स्वच्छता और निष्पक्षता को बनाए रखने की महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखी जा रही है। इस घटनाक्रम के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि जजों की टिप्पणियों का व्यापक प्रभाव हो सकता है और उन्हें काफी सजग और सचेत रह कर अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए। इस प्रकार के मामलों में माफी की आवश्यकता भी हो सकती है, लेकिन न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

जस्टिस श्रीशानंद के विवादास्पद बयान के समय लाइव स्ट्रीमिंग का महत्व और प्रभाव साक्षात हो गया। इसलिए, किसी भी टिप्पणी के पहले न्यायाधीशों को यह भी समझना चाहिए कि उनकी बातों का क्या असर हो सकता है, खासकर ऐसे समय में जब पूरी दुनिया उनकी बातों को सुन रही होती है।

सुप्रीम कोर्ट की इस हिदायत ने न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह कदम न्यायिक प्रणाली में विश्वास को और मजबूत करेगा और जनता को न्यायालय पर भरोसा बनाए रखने में मदद करेगा।

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