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बलात्कार दोषियों को कड़ी सजा का प्रस्ताव बंगाल में पास हुआ ‘अपराजिता’ विधेयक

पश्चिम बंगाल विधानसभा में ‘अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक’ पारित

पश्चिम बंगाल की विधानसभा में मंगलवार को ‘अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक’ पारित हो गया। इस विधेयक का उद्देश्य राज्य में महिला और बाल उत्पीड़न के मामलों में कठोर और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना है। विधेयक को विपक्ष का पूर्ण समर्थन मिला और यह सर्वसम्मति से पारित हो गया, हालांकि विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकार नहीं किया गया।

विधेयक के प्रमुख प्रस्ताव

विधेयक में बलात्कार के दोषियों को मृत्युदंड का प्रावधान रखा गया है, यदि पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से अचेत अवस्था में चली जाती है। इसके अलावा, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामलों में दोषियों को आजीवन कारावास और आर्थिक दंड दिया जाएगा। सभी अपराधों में दोषियों को पैरोल की सुविधा नहीं दी जाएगी।

जांच और अदालती कार्यवाहियों में बदलाव

विधेयक में जांच की समय सीमा को दो महीने से घटाकर 21 दिन करने का प्रस्ताव है, साथ ही आरोप पत्र तैयार होने के एक महीने के भीतर फैसला सुनाने का वादा किया गया है। इसके अलावा, अदालती कार्यवाही से संबंधित किसी जानकारी को प्रकाशित करने या पीड़िता की पहचान उजागर करने पर तीन से पांच साल की कैद की सजा हो सकती है।

ममता सरकार का कठोर रुख

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “यह विधेयक महिला उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों में सख्त से सख्त सजा सुनिश्चित करेगा। भारतीय दंड संहिता और POCSO अधिनियम के प्रावधानों को इस विधेयक में और सख्त किया गया है। इसके तहत अपराजिता टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा, जिसमें प्रारंभिक रिपोर्ट के 21 दिनों के भीतर सजा दी जाएगी।”

अपराजिता टास्क फोर्स और फास्ट ट्रैक कोर्ट

विधेयक के तहत, अपराजिता टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा जो त्वरित न्याय सुनिश्चित करेगी। फास्ट ट्रैक कोर्ट और स्पेशल जांच दल भी गठित किए जाएंगे, जिन्हें विशेष सुविधाएं मिलेंगी और ट्रायल प्रक्रिया तय समय में पूरी होनी चाहिए। गंभीर अपराधों के मामलों में न्यूनतम 7 दिनों के भीतर जांच पूरी करने का प्रावधान है, जिसे पहले एक महीने का समय था।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि विधानसभा में विधेयक को पारित कर देना ही पर्याप्त नहीं होगा। इस विधेयक में केंद्रीय कानूनों के कुछ प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव है, इसलिए इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होगी।

पीएम मोदी को दो पत्र लिखे, जवाब नहीं आया

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “मैंने प्रधानमंत्री को दो पत्र लिखे थे, लेकिन मुझे उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। जब चुनाव से पहले जल्दबाजी में न्याय संहिता विधेयक पारित किया गया था, तब मैंने विरोध किया था कि इसमें राज्यों से सलाह नहीं ली गई।”

विशेष सत्र पर विपक्ष का आरोप

विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि यह सत्र मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एकतरफा फैसला है। उन्होंने कहा कि उनसे विचार-विमर्श किए बिना विशेष सत्र बुलाया गया है।

सिर्फ विधानसभा से बिल पास होना काफी नहीं

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ विधानसभा में विधेयक को पारित कर देना काफी नहीं होगा। इसमें केंद्रीय कानूनों के कुछ प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव है, इसलिए इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होगी। विपक्षी दल और कानूनी विशेषज्ञ इसे राष्ट्रीय स्तर पर कानून में सख्त प्रावधान की मांग कर रहे हैं।

डॉक्टरों का धरना

कोलकाता पुलिस मुख्यालय के पास विभिन्न मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों ने बीबी गांगुली स्ट्रीट पर धरना दिया। उनकी मांग है कि पुलिस आयुक्त विनीत गोयल इस्तीफा दें। धरने पर बैठे डॉक्टरों और छात्रों ने पूरी रात बीबी गांगुली स्ट्रीट पर बिताई।

धरने पर डॉक्टरों की प्रतिक्रिया

एक प्रदर्शनकारी डॉक्टर ने PTI से कहा, “हम नहीं जानते थे कि कोलकाता पुलिस इतनी डरी हुई है कि उसने हमें रोकने के लिए नौ फुट ऊंचे अवरोधक लगा रखे हैं। जब तक हमें लालबाजार जाने और पुलिस आयुक्त से मिलने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तब तक हमारा प्रदर्शन जारी रहेगा।”

निष्कर्ष

यह विधेयक महिला और बच्चों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। पश्चिम बंगाल सरकार ने विधेयक पारित कर अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया है, लेकिन इस विधेयक के लागू होने के लिए केंद्रीय स्तर पर मंजूरी की भी जरूरत होगी। विपक्ष और कानूनी विशेषज्ञों का समर्थन और सहयोग इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए महत्वपूर्ण होगा।

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