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बुजुर्गों की दौड़: बिहार होमगार्ड भर्ती में उम्रदराज़ उम्मीदवार

बिहार होमगार्ड भर्ती: शारीरिक परीक्षण में बुजुर्गों की भीड़

बिहार होमगार्ड भर्ती के लिए आरा जिले में एक विशेष कैंप का आयोजन किया गया, जिसमें अनेक अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया। हालांकि, जब अधिकारियों की नजर अभ्यर्थियों पर पड़ी, तो वे चौंक गए। कोई 45 साल का था, कोई 48 का और कोई 50 वर्ष की उम्र पार कर चुका था। ये बुजुर्ग न केवल पहुंचे बल्कि 800 मीटर की दौड़, लॉन्ग जंप, हाई जंप और गोला फेंक प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया।

रिटायरमेंट की उम्र में नौकरी की तलाश

46 साल के सुशील चा, जो छह बच्चों के पिता हैं, और 48 साल के मंजीत चा ने भी होमगार्ड की नौकरी के लिए दौड़ में हिस्सा लिया। सफेद बाल, चेहरे पर झुर्रियां और उम्र के 50 वसंत पार कर चुके बुजुर्ग यहां नौकरी की तलाश में पहुंचे थे। उनका लक्ष्य था 800 मीटर की दूरी को ढाई मिनट में पूरा करना। हालांकि, शरीर ने साथ नहीं दिया और वे वांछित समय सीमा के अंदर यह दौड़ पूरी नहीं कर पाए।

18 साल बाद फिजिकल टेस्ट

जब इन बुजुर्गों ने होमगार्ड की नौकरी के लिए आवेदन भरा था, वे जवान थे, उनके बाजुओं में जोर था और शरीर में स्फूर्ति थी। लेकिन सरकारी व्यवस्था की खामियों के कारण उन्हें 18 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। 2006 में निकली इस बहाली के लिए 21 हजार 724 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। आवेदन डीएम कार्यालयों में जमा हुए थे। उस समय इस भर्ती के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। 2011 में दूसरी भर्ती निकली गई, लेकिन फॉर्म का ठीक से रखरखाव नहीं होने के कारण इसे कैंसल कर दिया गया। इसके बाद मामला कोर्ट में गया और अब, कोर्ट के आदेश पर इस भर्ती प्रक्रिया को फिर से शुरू किया गया।

समय बीतने से बदल गई जिंदगी

जिन लोगों ने 18 साल पहले आवेदन किया था, उनके जीवन में कई बदलाव आ चुके हैं। इनके बच्चे अब किशोर हो गए हैं और कुछ तो दादा-नाना भी बन चुके हैं। गीता देवी, जो 2006 में 18 साल की थीं, अब 36 साल की हो चुकी हैं। तब से अब तक उनकी शादी हो गई, बच्चे हो गए, लेकिन उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। रोजाना तैयारी करते हुए, गीता देवी ने इस बार फिजिकल टेस्ट पास कर लिया।

सिस्टम का फेल्यर और बेरोजगारी

लेकिन केवल गीता देवी ही सफल नहीं हुईं। सुशील चा और मंजीत चा, जो पहले भी बेरोजगार थे, सिस्टम की खामियों के कारण आज भी बेरोजगार ही घर लौट रहे हैं। ऐसे में बिहार और यहां के बेरोजगार को देख एक कविता याद आती है:

चंद्रगुप्त का साहस हूं, अशोक की तलवार हूं।
बिंदुसार का शासन हूँ, मगध का आकार हूं।
अजी हां! बिहार हूं।।

दिनकर की कविता हूं, रेणु का सार हूं।
नालंदा का ज्ञान हूं, पर्वत मन्धार हूं।
अजी हां! बिहार हूं।

बेबस हूं, लाचार हूं, बेरोजगार हूं।
अजी हां, मैं भी बिहार हूं।

बिहार के बेरोजगारों की कहानी

बिहार होमगार्ड कॉन्सटेबल के लिए बहाली 2006 में निकली थी, जिसमें 21 हजार 724 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। पहले 2011 में भर्ती निकाली गई, लेकिन फॉर्म का रखरखाव ठीक से नहीं होने के कारण बहाली कैंसल कर दी गई। अदालत के आदेश पर अब बहाली प्रक्रिया शुरू हो गई है। 18 साल पहले जिन्होंने आवेदन किया था, उनके बच्चे अब बड़े हो चुके हैं। गीता देवी ने भी 18 साल पहले फॉर्म भरा था और अब 36 साल की हो चुकी हैं, इतना लंबा इंतजार शिक्षित बेरोजगारों की समस्या को और बढ़ा देता है।

संघर्ष और उम्मीद

गीता देवी ने हमेशा विश्वास रखा कि एक दिन दौड़ जरूर होगी और वे इसकी तैयारी करती रहती थीं। इसी तैयारी की वजह से उन्होंने फिजिकल टेस्ट पास कर लिया। लेकिन सुशील चा और मंजीत चा बढ़ती उम्र की वजह से 800 मीटर की दौड़ भी नहीं लगा पाए। हालांकि, इनमें हौसला आज भी कायम है, लेकिन उम्र ने शरीर को कमजोर कर दिया है।

एक नए बिहार की उम्मीद

इन अभ्यर्थियों की कहानी केवल उनकी नहीं बल्कि बिहार के युवाओं की है जो सरकारी व्यवस्था की खामियों से जूझ रहे हैं। कहीं न कहीं यह हमारी व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर करती है। बिहार के राजनैतिक और प्रशासनिक अधिकारियों को इस दिशा में काम करना होगा ताकि ऐसी समस्याओं से बचा जा सके और युवाओं को उनकी मेहनत का सही फल समय पर मिल सके।

बिहार की इस व्यथा-कथा को दिनकर जी की कविता के माध्यम से जैसे आज भी आसानी से समझा जा सकता है:
चंद्रगुप्त का साहस हूं, अशोक की तलवार हूं।
बिंदुसार का शासन हूँ, मगध का आकार हूं।
अजी हां! बिहार हूं।

दिनकर की कविता हूं, रेणु का सार हूं।
नालंदा का ज्ञान हूं, पर्वत मन्धार हूं।
अजी हां! बिहार हूं।

बेबस हूं, लाचार हूं, बेरोजगार हूं।
अजी हां, मैं भी बिहार हूं।

यह कहानी इस बात की गवाही देती है कि इच्छा शक्ति और मेहनत के बल पर बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी पार की जा सकती हैं।

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