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भारत-चीन सीमा विवाद: पारस्परिक सहमति से हटेगी सेनाएं क्या समाधान के निकट हैं देश?

भारत-चीन सीमा विवाद: परिप्रेक्ष्य और वर्तमान स्थिति

भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा विवाद चला आ रहा है, जो विभिन्न चरणों में तल्खियों और सैन्य गतिरोध में बदलता रहा है। पूर्वी लद्दाख में हाल के वर्षों में स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई है, जिसके चलते दोनों देशों की सेनाएं सीधे सामने आ गई हैं। इसी संदर्भ में दुश्मनी को मिटाने और शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में बढ़ते हुए, दोनों देश लगातार संवाद और चर्चा में लगे हुए हैं।

अतिरिक्त सहमति और मतभेदों के समाधान की ओर कदम

चीनी रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण बयान जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि दोनों देशों ने राजनयिक एवं सैन्य चैनलों के माध्यम से संपर्क बनाए रखा है। चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग जियाओगांग ने कहा कि दोनों देश विभिन्न चलन-चैनलों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संपर्क बनाए हुए हैं, जिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्रियों, चीन के विदेश मंत्री और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तथा सीमा परामर्श तंत्र के माध्यम से बातचीत शामिल है।

वैध चिंताओं का समाधान और आम सहमति की दिशा में बढ़िया प्रगति

चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग ने यह भी कहा कि बातचीत से चीन और भारत दोनों अपने मतभेदों को कम करने और एक-दूसरे की वैध चिंताओं का समाधान करने के लिए सहमति बनाने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष किसी ऐसे समाधान पर सहमत हुए हैं, जो दोनों के लिए मान्य और स्वीकार्य हो। लगातार बातचीत के माध्यम से यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच सकारात्मक परिणाम आने की संभावना बढ़ रही है।

पूर्वी लद्दाख की गतिरोध

कई वर्षों से पूर्वी लद्दाख में चल रहे सैन्य गतिरोध के समाधान की दिशा में भी बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में डेमचोक और देपसांग जैसे स्थानों से सैनिकों को हटाने पर द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से इसका समाधान खोजने की कोशिश की जा रही है। सैन्य गतिरोध के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच संबंधों में ठहराव आ गया था, लेकिन हाल की कुछ उच्च स्तरीय चर्चाओं और बैठकों ने इस गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में उम्मीद की किरण दिखाई है।

विशेष बैठकें और उनके प्रभाव

हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बैठक के साथ-साथ रूस में हुए ब्रिक्स बैठक के इतर वांग और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच बातचीत ने दोनों देशों के बीच संबंधों को नया मोड़ दिया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने तीन सितंबर को कहा था कि चीन और भारत की अग्रिम पंक्तियों की सेनाएं सीमा के पश्चिमी भाग में चार क्षेत्रों से पीछे हट चुकी हैं, जिनमें गलवान घाटी भी शामिल है। देपसांग और डेमचोक जैसे स्थानों पर सैनिकों की वापसी की प्रगति पर कोई ठोस टिप्पणी नहीं की गई, लेकिन कहा कि दोनों पक्ष परिणामों को मजबूत करना जारी रखेंगे।

सीमा पर शांति और स्थिरता की दिशा में कदम

प्रवक्ता झांग ने यह भी कहा कि जिन नतीजों पर दोनों देश पहुंचे हैं, उन्हें मजबूत करना और सीमा पर शांति बनाए रखना जारी रहेगा। द्विपक्षीय समझौतों और आपसी विश्वास निर्माण उपायों का सम्मान किया जाएगा। जयशंकर ने न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम के दौरान यह कहा कि दोनों देशों के बीच कई समझौते हैं, जो यह सुझाव देते हैं कि सीमा पर शांति और स्थिरता कैसे बनी रहे।

स्ट्रैटजिक दृष्टिकोण और भविष्य की दिशा

सीमा पर शांति और स्थिरता को बनाए रखने और द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने में दोनों देशों के बीच रणनीतिक दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से निहित हैं। विदेश मंत्री जयशंकर ने न्यूयॉर्क में एशिया सोसाइटी के एक कार्यक्रम में कहा कि दोनों देशों के बीच समझौतों की एक श्रृंखला है, जो सीमा पर विस्तारित शांति और स्थिरता की दिशा में मार्गदर्शन करती है। इस संदर्भ में पिछले दिनों हुई प्रमुख मुलाकातें और वार्तालाप एक बड़ा संकेत देती हैं कि दोनों देश पारस्परिक सहमति से विवाद का समाधान खोजने के बेहद करीब हैं।

निष्कर्ष

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जटिल और लंबा है, लेकिन हाल के घटनाक्रम और दोनों पक्षों की सकारात्मक बातचीत से उम्मीद की जा सकती है कि शांति और स्थिरता की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे। द्विपक्षीय संवाद और उच्च स्तरीय बैठकों का यह तात्पर्य हैं कि दोनों देश अपने मतभेदों को शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में हल करने के लिए तैयार हैं और आपसी विश्वास निर्माण प्रक्रिया को मजबूत करेंगे। भविष्य में इस विवाद के समाधान की दिशा में हो रहे प्रयासों से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान मिल सकता है।

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