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महाराष्ट्र में बारामती की चुनावी जंग: चाचा-अजित बनाम भतीजा-युगेंद्र

परिवार का संघर्ष और राजनीतिक मंच पर बंटवारा

महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में इस समय सबसे चर्चित मुद्दे में से एक है बारामती विधानसभा सीट पर आगामी चुनावी मुकाबला। इस बार का चुनाव विशेष इसलिए है क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के दो प्रमुख सदस्य और पवार परिवार के सदस्य आमने-सामने हैं। युगेंद्र पवार, जोकि राकांपा के वरिष्ठ नेता अजित पवार के भतीजे हैं, अपने चाचा के खिलाफ अपना पहला चुनाव लड़ने जा रहे हैं। युगेंद्र का कहना है कि यह उनके लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन वह चिंतित नहीं हैं, क्योंकि बारामती की जनता का आशीर्वाद और शरद पवार की सद्भावना उनके साथ है।

अजित पवार बनाम युगेंद्र पवार: क्या कहते हैं आंकड़े?

मई 2023 में ऐसा ही एक राजनीतिक घटना देखने को मिली थी जब शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अपने चचेरे भाई अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा के खिलाफ बारामती लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। उस वक्त सुप्रिया सफलता के साथ अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं। इसी क्रम में अब युगेंद्र का दावा है कि बारामती की जनता ने उन्हें खुद चुनाव के लिए नामित किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या युगेंद्र अपने परिवार की परंपरागत सीट पर चमत्कार कर सकते हैं।

राजनीतिक बगावत और राकांपा का विभाजन

राकांपा दो भागों में बंट गई थी जब अजित पवार ने शरद पवार के नेतृत्व से बगावत कर एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने का फैसला किया। यह विभाजन राकांपा की ताकत में सेंध लगा सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पवार परिवार की मजबूत पकड़ है। युगेंद्र इस परिस्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं, यह दावा करते हुए कि शरद पवार का आशीर्वाद अब उनके साथ है।

युगेंद्र का सामाजिक जुड़ाव और विश्वास

युगेंद्र के अनुसार, उनका पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी उन्हें एक ताकतवर उम्मीदवार बनाती है। उनके माता-पिता सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और युगेंद्र खुद शैक्षणिक संस्थानों और कुश्ती संघ से जुड़े हुए हैं। जैविक खेती का प्रबल समर्थक होने के कारण, युगेंद्र का कहना है कि वह बारामती में एक नई राजनीतिक लहर का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं।

पूर्वानुमान और संभावनाएं

जहां एक तरफ शरद पवार की सतर्क दृष्टि और मार्गदर्शन युगेंद्र के लिए प्रेरणास्रोत है, वहीं दूसरी तरफ अजित पवार के राजनीतिक अनुभव और रणनीतिक कौशल से मुकाबला करना आसान नहीं होगा। बारामती के लोगों के समक्ष अब एक बड़ा सवाल खड़ा है कि वह किन्हें अपनी आस लिए देखते हैं—चाचा अजित या भतीजा युगेंद्र?

अंततः: जनता का फैसला

इस चुनावी मुकाबले में बारामती के लोग मुख्य निर्णायक होंगे। उस मतदान की तारीख निर्धारित होने पर ही यह स्पष्ट होगा कि जनता की दुआएं और विश्वास किसके साथ हैं। युगेंद्र जोर-शोर से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं और देखना होगा कि क्या वह राजनीतिक मंच पर अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर पाते हैं।

इस चुनावी समर में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अंततः बारामती की जनता किसे विजयी बनाती है, और यह चुनावी संघर्ष राजनीतिक इतिहास में कितनी गहराई में दर्ज होता है। जनता के समर्थन और आशीर्वाद से युगेंद्र इस बार अपने राजनीतिक सफर की नई इबारत लिखने के लिए आशान्वित हैं।

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