मध्य प्रदेश का पुरातन धरोहर: सोमेश्वर धाम महादेव मंदिर
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित सोमेश्वर धाम महादेव मंदिर, भारतीय इतिहास और धार्मिक आस्था का एक अभिन्न प्रतीक है। यह मंदिर रायसेन के किले पर स्थित है, जो 10वीं-11वीं शताब्दी में परमार राजवंश के राजा उदयादित्य द्वारा निर्मित किया गया था। पुराने समय में यह मंदिर नियमित धार्मिक कार्यों और पूजा का केंद्र था, लेकिन अब यह केवल महाशिवरात्रि के अवसर पर ही खोला जाता है।
शेरशाह सूरी का आक्रमण और मंदिर का विध्वंस
इतिहास के पन्ने हमें बताते हैं कि 1543 में जब रायसेन के राजा पूरणमल शेरशाह सूरी से युद्ध में पराजित हुए, तब शेरशाह ने इस पवित्र मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। शेरशाह का उद्देश्य मंदिर की जगह मस्जिद बनाना था। तोड़-फोड़ के बावजूद, कुशल कारीगरों ने शिवलिंग को सुरक्षित रखकर गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति और कुछ अन्य संकेत छोड़ दिए, जिससे यह साफ हो सके कि यह स्थल मूलतः एक मंदिर था।
आजादी के बाद का संघर्ष
भारत की आजादी के बाद, 1974 में इस मंदिर को खोलने के लिए एक बड़ा आंदोलन छेड़ा गया था। इस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, और मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी ने व्यक्तिगत रूप से जाकर इस धार्मिक स्थल के ताले खुलवाए। इसके बावजूद, यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन हो जाने के कारण केवल शिवरात्रि पर ही खुलता है। बाकी के दिनों में ताले में बंद रहता है ताकि इसका ऐतिहासिक महत्व संरक्षित किया जा सके।
समकालीन विवाद और मांग
हाल के वर्षों में इस मंदिर को लेकर कई राजनीतिक और सामाजिक विवाद उभरे। फरवरी 2023 में कथा वाचक प्रदीप मिश्रा ने सरकार को इस मंदिर की वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया, जिसके बाद इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग ले लिया। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी इस स्थल पर जल चढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन प्रशासनिक अड़चनों के कारण उन्हें निराशा ही हाथ लगी। उन्होने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही भाजपा के अधीन हैं, फिर भी मंदिर का ताला नहीं खोलना अशोभनीय है।
मुस्लिम समुदाय की सहमति
रायसेन के शहर काजी जहीरुद्दीन का कहना है कि इस मुद्दे पर कोई हिन्दू-मुसलमान विवाद नहीं है। मुस्लिम समुदाय को इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि मंदिर हिंदुओं को सौंप दिया जाए ताकि वे अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार पूजा कर सकें। उनके अनुसार, इससे धार्मिक सहिष्णुता को ही बढ़ावा मिलेगा।
मौजूदा स्थिति और भविष्य की संभावनाएँ
वैसे तो हर साल महाशिवरात्रि पर एक विशाल मेला आयोजित किया जाता है, इस दौरान मंदिर के द्वार श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। बावजूद इसके, साल के बाकी दिनों में मंदिर को बंद रखा जाता है। इतिहासकार और समाजसेवी इस बात पर जोर देते हैं कि मंदिर को खोलने के लिए एक बड़े जन आंदोलन की आवश्यकता है।
रायसेन का यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं बल्कि भारतीय इतिहास का समृद्ध खजाना भी है। यह कहानी न केवल मंदिर की, बल्कि उस मार्ग की भी है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। अब देखना यह है कि भविष्य में इस मुद्दे पर कौन-सी दिशा तेज़ी से उठाई जाती है और कैसे इस धार्मिक स्थल को फिर से पूजा-पाठ का पूर्ण अधिकार मिलता है।