सोनम वांगचुक का अनशन और आंदोलन
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जो सामुदायिक शिक्षा प्रणाली को एक नई दिशा देने के लिए जाने जाते हैं, ने दिल्ली के लद्दाख भवन में अनशन प्रारंभ कर दिया है। उनकी यह पहल लद्दाख को भारत के संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग के समर्थन में है। जंतर-मंतर पर आंदोलन की अनुमति नहीं मिलने से वांगचुक को यह निर्णय लेना पड़ा। लद्दाख भवन में जगह लेते हुए, उन्होंने खुद को और अपने सहकर्मियों को वहां बैठने के लिए मजबूर पाया।
आंदोलन की पृष्ठभूमि और मांगें
सोनम वांगचुक ने सरकार से लद्दाख को विशेष संवैधानिक दर्जा देने की मांग की है। उनका मानना है कि छठी अनुसूची में शामिल होने से लद्दाख की विविध संस्कृति और पर्यावरण की सुरक्षा हो सकेगी। यह कदम वहां की जनजातीय आबादी को बेहतर सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर करेगा। उन्होंने इस संबंध में उच्चतम नेतृत्व, जैसे कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या गृह मंत्री से भेंट का भी आग्रह किया है।
अनुमति न मिलने की स्थिति
जब वांगचुक और उनके समर्थकों को जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं मिली, तो वे लद्दाख भवन में ही बैठ गए। पुलिस द्वारा घोषित समयसीमा के अनुसार, विरोध केवल सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक करना संभव था। वांगचुक ने इस विकल्प को स्वीकार किया था, लेकिन स्थान की समस्या के कारण उन्हें भवन के अंदर ही अनशन पर बैठना पड़ा।
भूख हड़ताल का कारण
सोनम वांगचुक ने पहले 2 अक्टूबर को राजघाट पर अपनी भूख हड़ताल समाप्त की थी। यह समाप्ति गृह मंत्रालय से नेतृत्व मिलने के आश्वासन पर आधारित थी। उन्हें बताया गया था कि चार अक्टूबर तक वरिष्ठ नेताओं से मिलने की व्यवस्था हो जाएगी। इसके आधार पर, उन्होंने राजघाट पर होने वाली जनसभा भी रद्द कर दी थी। लेकिन तब से उन्हें कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला, जिसने उन्हें फिर से अनशन और भूख हड़ताल प्रारंभ करने पर मजबूर कर दिया।
अनशन के दौरान का माहौल
वांगचुक के साथ लगभग 18 लोग लद्दाख भवन के गेट के पास बैठे हैं। यह लोग गा रहे हैं “हम होंगे कामयाब” और नारे लगा रहे हैं “भारत माता की जय”, “जय लद्दाख” और “लद्दाख बचाओ, हिमालय बचाओ”। वांगचुक ने इस आंदोलन को शांतिपूर्ण विरोध बताया और कहा कि वे गांधीवादी मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ नेताओं से आश्वासन प्राप्त करना और लद्दाख लौटना है।
आंदोलन का भविष्य और चुनौती
सोनम वांगचुक और उनके समर्थकों ने 32 दिनों के भीतर 1,000 किलोमीटर से अधिक पैदल चलकर दिल्ली पहुंचने की जो यात्रा की है, वह उनके संकल्प की गंभीरता को दर्शाता है। हालाँकि, कई पदयात्री पहले ही लौट चुके हैं, लेकिन अभी भी कुछ लोग, जिनमें महिलाएं, बुजुर्ग और पूर्व सैनिक शामिल हैं, नेतृत्व से मुलाकात करना चाहते हैं। वांगचुक ने स्पष्ट किया है कि जब तक उनकी मांगों को सुना नहीं जाता, वे अपना शांतिपूर्ण विरोध जारी रखेंगे।
इस आंदोलन के कारण देशभर में लद्दाख के लिए समर्थन बढ़ा है। सोनम वांगचुक का उद्देश्य स्पष्ट है: वह लद्दाख के लोगों के लिए संवैधानिक और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मांग को किस प्रकार संबोधित करती है और क्या लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाता है या नहीं।