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वंशवादी नेताओं से भाजपा की जीत कांग्रेस का संबंध बन गया सहारा

हरियाणा चुनाव के नतीजों पर अप्रत्याशित प्रतिक्रिया

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे जब सामने आए तो देश की राजनीतिक फलक पर हलचल सी मच गई। देश की शायद ही ऐसी एग्जिट पोल एजेंसी हो, जिसने भाजपा की हरियाणा चुनाव में बड़ी जीत की भविष्यवाणी की हो। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले थे। भाजपा ने राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 48 पर विजय पताका फहराई। कांग्रेस को 37 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप पूरे देश में भाजपा की इस अप्रत्याशित जीत पर चर्चा होने लगी।

वंशवाद का खेल बना भाजपा की सफलता की कुंजी

भाजपा की इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण वंशवाद का खेल बना। पार्टी ने बड़े पैमाने पर वंशवादी नेताओं को मैदान में उतारा, जो अपनी प्रतिष्ठा के दम पर निर्वाचित हुए। हालांकि, लोगों का ध्यान इस बात पर भी गया कि इन व्यक्तियों का कांग्रेस से पुराता सम्बंध है। 8 वंशवादी उम्मीदवारों में से 7 की जीत भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बनी।

कांग्रेस के वंशवादियों से भाजपा को लाभ

भाजपा ने अपने चुनावी रणनीति में पूर्व कांग्रेस के वंशवादी नेताओं का उपयोग कर उन्हें लाभ पहुंचाने का कार्य किया। इनमें से कई नेताओं ने कांग्रेस की पुरानी छवि के चलते भाजपा में शरण ली और अपनी जीत सुनिश्चित की। खासतौर पर शक्ति रानी शर्मा, आरती राव और श्रुति चौधरी की जीत कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका रही।

बीजेपी वंशवादियों का कांग्रेस के साथ कनेक्शन

भाजपा के वंशवादी उम्मीदवारों और उनके कांग्रेस से मजबूत संबंध चुनावी विश्लेषकों का ध्यान खींचते हैं। शक्ति रानी शर्मा, विनोद शर्मा की पत्नी और पूर्व कांग्रेसी नेता, ने कालका से भाजपा टिकट पर भारी मतों से जीत हासिल की। राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव ने अटेली सीट पर जीत दर्ज की, जबकि श्रुति चौधरी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता किरण चौधरी की बेटी, ने तोशाम सीट पर जीत हासिल की।

पुरानी कांग्रेस पृष्ठभूमि वाले नेताओं की सफलता

इन चुनावों में, पूर्व कांग्रेसियों के भाजपा में आने का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया। इसने दर्शाया कि कैसे कांग्रेस से संबंध रखने वाले वंशवादी नेता, एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाकर अपने विरासत में मिले समर्थन का लाभ उठा सकते हैं। पूर्व विधायक करतार सिंह भड़ाना का बेटा मनमोहन भड़ाना और हरिचंद मिड्ढा के बेटा कृष्ण मिड्ढा इन उदाहरणों में शामिल हैं।

समस्याओं के मध्य भाजपा की बढ़त

राजनीतिक समस्याओं और विपक्ष की चुनौतीपूर्ण स्थिति के बावजूद, भाजपा ने यह साबित किया कि यदि चुनावी रणनीति को सही दिशा दी जाए तो सफलता हासिल करना संभव है। पार्टी ने दिखा दिया कि वंशवाद को भी सकारात्मक रूप से उपयोग में लाया जा सकता है, बशर्ते कि इसे सुचारू रूप से नियोजित किया जाए।

आगामी दिशा और प्रभाव

हरियाणा चुनाव में वंशवाद के इस नए प्रयोग ने भाजपा के लिए एक नई राह की ओर इशारा किया है। भविष्य में यह दल कैसे अपने राजनीतिक अभियान को आगे बढ़ाता है और किस तरह से अन्य राज्यों में भी इस रणनीति का परीक्षण करता है, यह महत्वपूर्ण होगा। इस जीत ने भाजपा को हमले से बचाते हुए उसे राजनीतिक परिदृश्य में मजबूती प्रदान की है।

समाज और राजनीतिज्ञों के लिए सन्देश

इस चुनाव से एक स्पष्ट संदेश यह भी निकलता है कि राजनीति में वंशवाद एक दोधारी तलवार की तरह होता है। यह लाभ भी दे सकता है और नुकसान भी पहुंचा सकता है। पार्टी का यह ध्यान रहना चाहिए कि वंशवाद के चंगुल में फंसकर वह अपने मौलिक सिद्धांतों से विमुख न हो, नहीं तो इसका युवाओं की नई पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

कुल मिलाकर, हरियाणा चुनावों के परिणाम ने देश की राजनीति में एक नई चर्चा को जन्म दिया है और यह दर्शाया है कि सफलता का मार्ग कितनी विविधता और रणनीति से भरा हो सकता है। भाजपा ने वंशवाद के हथियार का सफल उपयोग करते हुए यह प्रतिस्पर्धा जीत ली, जिससे विपक्ष को गंभीर पुनःमूल्यांकन की आवश्यकता महसूस हुई।

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