Supreme Court on Bombay HC: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई जिसमें एक महिला के लिए ‘अवैध पत्नी’ और ‘वफादार रखैल’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. शीर्ष अदालत ने इसे महिला विरोधी बताते हुए कहा कि ऐसी भाषा न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली भी है. न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह के शब्दों का प्रयोग पूरी तरह अनुचित है.
महिला अधिकारों और गरिमा का हनन..
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि किसी महिला का विवाह अमान्य घोषित किया जाना एक कानूनी प्रक्रिया हो सकती है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे ‘अवैध पत्नी’ कहा जाए. अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 24वें पैराग्राफ में प्रयुक्त वफादार रखैल शब्द को भी कठोर शब्दों में खारिज किया. शीर्ष अदालत ने इसे महिला अधिकारों और गरिमा का हनन बताया और कहा कि न्यायपालिका को अपने शब्दों के चयन में सतर्क रहना चाहिए, ताकि किसी भी वर्ग की गरिमा को ठेस न पहुंचे.
1955 की धारा 24 और 25 से जुड़ा
यह मामला हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 से जुड़ा है. धारा 24 के तहत मुकदमे के लंबित रहने तक भरण पोषण और कार्यवाही के खर्च की व्यवस्था की जाती है, जबकि धारा 25 में स्थायी गुजारा भत्ता और भरण पोषण का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में परस्पर विरोधी विचारों पर सुनवाई कर रहा था. पीठ ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से न्यायपालिका की निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों पर सवाल उठते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार चर्चा में है. एक्सपर्ट्स का साफ कहना है कि अदालतों को न केवल कानूनी प्रावधानों का पालन करना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निर्णय और टिप्पणियां किसी भी व्यक्ति, विशेषकर महिलाओं की गरिमा और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न करें. इस फैसले से न्यायपालिका में संवेदनशीलता और भाषा की शुद्धता को लेकर एक नई बहस छिड़ सकती है. एजेंसी इनपुट
महिला अधिकारों और गरिमा का हनन..
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि किसी महिला का विवाह अमान्य घोषित किया जाना एक कानूनी प्रक्रिया हो सकती है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे ‘अवैध पत्नी’ कहा जाए. अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 24वें पैराग्राफ में प्रयुक्त वफादार रखैल शब्द को भी कठोर शब्दों में खारिज किया. शीर्ष अदालत ने इसे महिला अधिकारों और गरिमा का हनन बताया और कहा कि न्यायपालिका को अपने शब्दों के चयन में सतर्क रहना चाहिए, ताकि किसी भी वर्ग की गरिमा को ठेस न पहुंचे.
1955 की धारा 24 और 25 से जुड़ा
यह मामला हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 से जुड़ा है. धारा 24 के तहत मुकदमे के लंबित रहने तक भरण पोषण और कार्यवाही के खर्च की व्यवस्था की जाती है, जबकि धारा 25 में स्थायी गुजारा भत्ता और भरण पोषण का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में परस्पर विरोधी विचारों पर सुनवाई कर रहा था. पीठ ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से न्यायपालिका की निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों पर सवाल उठते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार चर्चा में है. एक्सपर्ट्स का साफ कहना है कि अदालतों को न केवल कानूनी प्रावधानों का पालन करना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निर्णय और टिप्पणियां किसी भी व्यक्ति, विशेषकर महिलाओं की गरिमा और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न करें. इस फैसले से न्यायपालिका में संवेदनशीलता और भाषा की शुद्धता को लेकर एक नई बहस छिड़ सकती है. एजेंसी इनपुट
1955 की धारा 24 और 25 से जुड़ा
यह मामला हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 से जुड़ा है. धारा 24 के तहत मुकदमे के लंबित रहने तक भरण पोषण और कार्यवाही के खर्च की व्यवस्था की जाती है, जबकि धारा 25 में स्थायी गुजारा भत्ता और भरण पोषण का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में परस्पर विरोधी विचारों पर सुनवाई कर रहा था. पीठ ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से न्यायपालिका की निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों पर सवाल उठते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार चर्चा में है. एक्सपर्ट्स का साफ कहना है कि अदालतों को न केवल कानूनी प्रावधानों का पालन करना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निर्णय और टिप्पणियां किसी भी व्यक्ति, विशेषकर महिलाओं की गरिमा और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न करें. इस फैसले से न्यायपालिका में संवेदनशीलता और भाषा की शुद्धता को लेकर एक नई बहस छिड़ सकती है. एजेंसी इनपुट
सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार चर्चा में है. एक्सपर्ट्स का साफ कहना है कि अदालतों को न केवल कानूनी प्रावधानों का पालन करना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निर्णय और टिप्पणियां किसी भी व्यक्ति, विशेषकर महिलाओं की गरिमा और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न करें. इस फैसले से न्यायपालिका में संवेदनशीलता और भाषा की शुद्धता को लेकर एक नई बहस छिड़ सकती है. एजेंसी इनपुट
