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वसुधैव कुटुंबकम वाले देश में परिवार में एकता नहीं… SC ने जताई इस बात पर चिंता; जानिए पूरा मामला


Supreme Court on Kallu Mal Property Dispute Case: परिवार के टूटने से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में लोग ‘वसुधैव कुटुंबकम’ यानी पूरी दुनिया को एक परिवार मानने में यकीन करते हैं. लेकिन, अपने करीबी रिश्तेदारों से भी निकटता बनाए रखने में विफल हो रहे हैं. जस्टिस पंकज मिथल और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की बेंच ने कहा कि परिवार की अवधारणा समाप्त हो रही है और एक शख्स-एक परिवार की व्यवस्था बन रही है.
कोर्ट ने कहा, ‘भारत में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में यकीन करते हैं, अर्थात पूरी पृथ्वी एक परिवार है. हालांकि, आज हम अपने परिवार में भी एकता बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं, विश्व के लिए एक परिवार बनाने की बात तो दूर की बात है. ‘परिवार’ की मूल अवधारणा ही समाप्त होती जा रही है और हम एक शख्स एक परिवार के कगार पर खड़े हैं.’ 
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा दायर याचिका पर की, जिसमें उसने अपने बड़े बेटे को घर से बेदखल करने का अनुरोध किया था. रिकॉर्ड में यह बात लाई गई कि कल्लू मल और उनकी पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दे बेटियों समेत पांच बच्चे थे. कल्लू मल का बाद में इंतकाल हो गया था. माता-पिता के अपने बेटों के साथ रिश्ते अच्छे नहीं थे और अगस्त 2014 में कल्लू मल ने लोकल SDM को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक यातना देने का इल्जाम लगाया.
 मेंटेनेंस के लिए 4 हजार देने का आदेश
साल 2017 में दंपती ने अपने बेटों के खिलाफ मेंटेनेंस के लिए कार्यवाही शुरू की, जो सुल्तानपुर की एक फैमिली कोर्ट में एक आपराधिक मामले के रूप में रेजिस्टर्ड हुई. फैमिली कोर्ट ने माता-पिता को 4,000 हर महीने देने का आदेश दिया, जो दोनों बेटों को हर कैलेंडर माह की सातवीं तारीख तक समान रूप से देना होगा.
बाप का बेटे पर इल्जाम
कल्लू मल ने इल्जाम लगाया कि उनका मकान खुध अर्जित संपत्ति है, जिसमें निचले हिस्से में दुकानें भी शामिल हैं. इनमें से एक दुकान में वह 1971 से 2010 तक अपना कारोबार चलाते रहे. पिता ने इल्जाम लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक और मेडिकल जरूरतों का ध्यान नहीं रखता था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता प्रोपर्टी का इकलौता मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें हक या हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई जरूरत नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत मेंटेनेंस का आदेश देकर मकसद पूरा किया जा सकता था.
इनपुट- भाषा
कोर्ट ने कहा, ‘भारत में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में यकीन करते हैं, अर्थात पूरी पृथ्वी एक परिवार है. हालांकि, आज हम अपने परिवार में भी एकता बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं, विश्व के लिए एक परिवार बनाने की बात तो दूर की बात है. ‘परिवार’ की मूल अवधारणा ही समाप्त होती जा रही है और हम एक शख्स एक परिवार के कगार पर खड़े हैं.’ 
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा दायर याचिका पर की, जिसमें उसने अपने बड़े बेटे को घर से बेदखल करने का अनुरोध किया था. रिकॉर्ड में यह बात लाई गई कि कल्लू मल और उनकी पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दे बेटियों समेत पांच बच्चे थे. कल्लू मल का बाद में इंतकाल हो गया था. माता-पिता के अपने बेटों के साथ रिश्ते अच्छे नहीं थे और अगस्त 2014 में कल्लू मल ने लोकल SDM को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक यातना देने का इल्जाम लगाया.
 मेंटेनेंस के लिए 4 हजार देने का आदेश
साल 2017 में दंपती ने अपने बेटों के खिलाफ मेंटेनेंस के लिए कार्यवाही शुरू की, जो सुल्तानपुर की एक फैमिली कोर्ट में एक आपराधिक मामले के रूप में रेजिस्टर्ड हुई. फैमिली कोर्ट ने माता-पिता को 4,000 हर महीने देने का आदेश दिया, जो दोनों बेटों को हर कैलेंडर माह की सातवीं तारीख तक समान रूप से देना होगा.
बाप का बेटे पर इल्जाम
कल्लू मल ने इल्जाम लगाया कि उनका मकान खुध अर्जित संपत्ति है, जिसमें निचले हिस्से में दुकानें भी शामिल हैं. इनमें से एक दुकान में वह 1971 से 2010 तक अपना कारोबार चलाते रहे. पिता ने इल्जाम लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक और मेडिकल जरूरतों का ध्यान नहीं रखता था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता प्रोपर्टी का इकलौता मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें हक या हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई जरूरत नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत मेंटेनेंस का आदेश देकर मकसद पूरा किया जा सकता था.
इनपुट- भाषा
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा दायर याचिका पर की, जिसमें उसने अपने बड़े बेटे को घर से बेदखल करने का अनुरोध किया था. रिकॉर्ड में यह बात लाई गई कि कल्लू मल और उनकी पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दे बेटियों समेत पांच बच्चे थे. कल्लू मल का बाद में इंतकाल हो गया था. माता-पिता के अपने बेटों के साथ रिश्ते अच्छे नहीं थे और अगस्त 2014 में कल्लू मल ने लोकल SDM को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक यातना देने का इल्जाम लगाया.
 मेंटेनेंस के लिए 4 हजार देने का आदेश
साल 2017 में दंपती ने अपने बेटों के खिलाफ मेंटेनेंस के लिए कार्यवाही शुरू की, जो सुल्तानपुर की एक फैमिली कोर्ट में एक आपराधिक मामले के रूप में रेजिस्टर्ड हुई. फैमिली कोर्ट ने माता-पिता को 4,000 हर महीने देने का आदेश दिया, जो दोनों बेटों को हर कैलेंडर माह की सातवीं तारीख तक समान रूप से देना होगा.
बाप का बेटे पर इल्जाम
कल्लू मल ने इल्जाम लगाया कि उनका मकान खुध अर्जित संपत्ति है, जिसमें निचले हिस्से में दुकानें भी शामिल हैं. इनमें से एक दुकान में वह 1971 से 2010 तक अपना कारोबार चलाते रहे. पिता ने इल्जाम लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक और मेडिकल जरूरतों का ध्यान नहीं रखता था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता प्रोपर्टी का इकलौता मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें हक या हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई जरूरत नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत मेंटेनेंस का आदेश देकर मकसद पूरा किया जा सकता था.
इनपुट- भाषा
बाप का बेटे पर इल्जाम
कल्लू मल ने इल्जाम लगाया कि उनका मकान खुध अर्जित संपत्ति है, जिसमें निचले हिस्से में दुकानें भी शामिल हैं. इनमें से एक दुकान में वह 1971 से 2010 तक अपना कारोबार चलाते रहे. पिता ने इल्जाम लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक और मेडिकल जरूरतों का ध्यान नहीं रखता था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता प्रोपर्टी का इकलौता मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें हक या हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई जरूरत नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत मेंटेनेंस का आदेश देकर मकसद पूरा किया जा सकता था.
इनपुट- भाषा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता प्रोपर्टी का इकलौता मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें हक या हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई जरूरत नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत मेंटेनेंस का आदेश देकर मकसद पूरा किया जा सकता था.
इनपुट- भाषा
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