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शिमला की शांति मार्च: हिमाचल में प्रवासियों पर विवाद और वामपंथी दलों की भूमिका

परिचय

हिमाचल प्रदेश के शिमला में प्रवासियों की उपस्थिति और स्थानीय लोगों द्वारा उठाए गए सवालों के बीच अब वामपंथी दलों ने अपनी एंट्री कर ली है। इस विषय को लेकर CPIM (सीपीआईएम) ने 27 सितंबर को शिमला में शांति मार्च का आयोजन करने की घोषणा की है। इस मार्च में विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ-साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की शिमला इकाई भी शामिल होगी।

शांति मार्च का उद्देश्य

सीपीआईएम का दावा है कि इस मार्च में कुछ सामाजिक संगठनों ने भी शामिल होने का ऐलान किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर यह शांति मार्च का आयोजन क्यों और किसके लिए किया जा रहा है। राज्य की सरकार ने पहले ही ऐलान किया है कि लोगों की मांगों पर ध्यान दिया जा रहा है, फिर आखिरकार वामपंथी दल इस शांति मार्च के माध्यम से किस मुद्दे को उठाना चाह रहे हैं?

राजनीतिक दृष्टिकोण

हिमाचल प्रदेश में प्रवासियों का मुद्दा बेहद संवेदनशील बनता जा रहा है। जनता घरों से निकलकर अवैध मस्जिदों और प्रवासियों का विरोध कर रही है। लेकिन अब इस विरोध में राजनीतिक दलों की एंट्री से मामला और भी पेचीदा हो गया है। वामपंथी दलों ने इस स्थिति को शांति मार्च के जरिये संभालने का प्रयास किया है, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।

वामपंथी दलों की भूमिका

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में वामपंथी दलों की उपस्थिति हमेशा से ही सीमित रही है। 1977 से लेकर आज तक, वामपंथी दलों के केवल दो ही प्रत्याशी हिमाचल से विधायक चुने गए हैं। राकेश सिंगा जो 1993 और 2017 में विधायक बने थे और केके कौल जो 1990 में विधायक चुने गए थे।

प्रवासियों का मुद्दा और स्थानीय राजनीति

हिमाचल प्रदेश में प्रवासियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा रहा है। आम लोग अवैध मस्जिदों और प्रवासियों से परेशान हो चुके हैं और उनके विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। इस स्थिति में शांति मार्च का आयोजन कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि वामपंथी दल इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर अपने पक्ष में करना चाह रहे हैं।

सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का योगदान

इस शांति मार्च में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की शिमला इकाई भी शामिल होगी। इसके अलावा, कुछ सामाजिक संगठन भी इस मार्च का समर्थन कर रहे हैं। इस सब के बीच, सवाल यह उठता है कि सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस क्यों वामपंथी दलों के इस मार्च में शामिल हो रही है।

मीडिया और पब्लिक की प्रतिक्रिया

मीडिया और आम जनता इस शांति मार्च को राजनीतिक दृष्टिकोण से देख रही है। ऐसा माना जा रहा है कि वामपंथी दल इस मुद्दे को विपक्षी बीजेपी से जोड़कर दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार के प्रदर्शन को राजनीतिक बताकर जनता का ध्यान वास्तविक समस्याओं से भटकाने की कोशिश की जा रही है।

निष्कर्ष

हिमाचल प्रदेश में मौजूदा स्थिति बेहद संवेदनशील है। शांति मार्च का उद्देश्य क्या है, यह स्पष्ट तो नहीं हो पाया है, लेकिन यह जरूर है कि राजनीतिक दलों की इस एंट्री से मामला और भी पेचीदा हो गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि 27 सितंबर को इस शांति मार्च के बाद हिमाचल की राजनीति में क्या बदलाव आते हैं और यह मार्च वास्तव में लोगों की समस्याओं को हल करता है या नहीं।
शिमला से समीक्षा राणा, ज़ी मीडिया

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