भूमिका: जाति की अटल सच्चाई
21वीं सदी में भी जाति एक ऐसी सच्चाई है जिससे समाज झूठ मानकर आगे बढ़ना ही नहीं चाह रहा। बढ़ना चाहता भी होगा तो उसी समाज के झंडाबरदार नेता जाति के नाम पर पीछे घसीट लाते हैं। कायदे से जाति का पूरा सिस्टम ही संविधान में दिए गए समानता के अधिकारों से खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन हाय री व्यवस्था! मुई जाति को ही पूरे सिस्टम की नींव बना रखा है। जाति सर्टिफिकेट दिखाए बिना काम नहीं चलेगा, भले ही आप भारत सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ही क्यों न हों! संसद का यह नजारा देखकर लगेगा नहीं कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं।
लोकसभा में अनुराग ठाकुर बनाम राहुल गांधी
मंगलवार का वाकया है। लोकसभा में केंद्रीय बजट 2024 पर चर्चा चल रही थी। बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा, “जिनकी जाति नहीं पता, वे जाति जनगणना की बात करते हैं।” अनुराग ठाकुर ने यह टिप्पणी की नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की ओर संकेत करते हुए। इस पर राहुल गांधी ने दावा किया कि अनुराग ठाकुर ने उनका अपमान किया और उनके साथ बदतमीजी की।
राहुल गांधी ने सदन में कहा, “जो भी आदिवासी, दलित और पिछड़े के मुद्दे उठाता है, उसे गालियां दी जाती हैं। मैं खुशी-खुशी इन गालियों को स्वीकार करूंगा… अनुराग ठाकुर ने मुझे गालियां दी हैं और मेरा अपमान किया है। लेकिन मैं उनसे कोई माफी नहीं चाहता।” इस बयान के समर्थन में समाजवादी पार्टी (SP) के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी अपनी बारी आने पर तमतमाते हुए कहा कि अनुराग ठाकुर राहुल की जाति के बारे में कैसे पूछ सकते हैं।
कांग्रेस बताने लगी राहुल की ‘जाति’
राहुल गांधी की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने X (पूर्व ट्विटर) पर ठाकुर का वीडियो शेयर करते हुए पूछा कि “सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना इस देश के 80% लोगों की मांग है। आज भरी संसद में कहा गया कि जिनकी जाति का पता नहीं, वे गणना की बात करते हैं। क्या अब देश की संसद में देश की 80% जनता को गालियां दी जाएंगी? नरेंद्र मोदी जी को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या यह उनके कहने पर हुआ है?”
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, “राहुल गांधी के परिवार की जाति ‘शहादत’ है। यह मानसिकता केवल भाजपा की हो सकती है कि एक ऐसे व्यक्ति के लिए इस तरह के अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जो शहीदों के परिवार का बेटा है। उससे कहा जाता है कि आपकी जाति का पता नहीं है। हम आपको बताएंगे कि आपकी जाति क्या है। राहुल गांधी के पिता शहीद हैं और इस परिवार की जाति शहादत है। यह आरएसएस, भाजपा और ठाकुर कभी नहीं समझ सकते।”
भारत में जातियों का इतिहास
प्राचीन भारत में ग्रंथों में भी वर्ण व्यवस्था का जिक्र मिलता है। हालांकि, वैदिक ग्रंथों में न तो अछूत लोगों का उल्लेख है और न ही अस्पृश्यता की किसी प्रथा का। वर्ण और जाति की उत्पत्ति पूर्व-आधुनिक काल में हुई, लेकिन आज जो जाति व्यवस्था मौजूद है, वह मुगल काल के बाद और ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का नतीजा है। अंग्रेजों ने जाति संगठन को प्रशासन का एक केंद्रीय तंत्र बना दिया था। अंग्रेज चले गए लेकिन वह ढांचा अब भी बरकरार है।
आधुनिक भारत की पहली जनगणना अंग्रेजों ने ही कराई। लेकिन 1881 की जनगणना में और उसके बाद, अंग्रेजों ने आबादी को जाति के हिसाब से भी गिना। तत्कालीन ब्रिटिश भारत (अब भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार) में हुई 1891 की जनगणना में 60 उप-समूह थे, जिनमें से हर एक को छह व्यावसायिक और नस्लीय श्रेणियों में बांटा गया था। बाद में जनगणनाओं में ये उप-समूह यानी जातियां बढ़ती चली गईं।
संविधान और जाति
भारतीय संविधान साफ कहता है कि जाति के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद 17 स्पष्ट रूप से अस्पृश्यता के उन्मूलन की घोषणा करता है। संविधान ने सभी नागरिकों को उनका धर्म, रंग, जाति इत्यादि न देखते हुए समानता का अधिकार दिया। ऐतिहासिक भूलों को सुधारने की कोशिश में, परंपरागत रूप से वंचित जातियों (अनुसूचित जातियों और जनजातियों) के लिए, 1950 में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में कोटा दिया गया।
जाति आधारित जनगणना की बढ़ती मांग
भारत में जाति आधारित जनगणना की मांग कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के समय में इसने जोर पकड़ा है। बिहार में जाति सर्वे हुआ तो पूरे देश में इसी तर्ज पर जनगणना की मांग होने लगी। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने जाति जनगणना की मांग को प्रमुखता से उठाया है।
तमिलनाडु की मिसाल
1993 में तमिलनाडु सरकार ने ‘तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विधेयक’ पास किया। उस समय तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता थीं। उन्होंने मांग रखी कि तमिलनाडु सरकार के अधिनियम को संविधान की नौवीं अनुसूची में रखा जाए ताकि इसे किसी अदालत में चुनौती न दी जा सके। 1994 में राष्ट्रपति ने अधिनियम पर हस्ताक्षर कर दिए और तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रहा।
भारत में जाति की ये सच्चाई दशकों से चली आ रही नीतियों और व्यवस्थाओं का नतीजा है। जाति आधारित जनगणना और आरक्षण के मुद्दे अब संसद तक सीमित नहीं रहें, बल्कि यह 21वीं सदी के भारत की एक बड़ी सच्चाई बन गए हैं, जिसे बदलने के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है।