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सर्दियों में बड़े चाव से खाई जाती है जो कमल ककड़ी क्यों उसे जान जोखिम में डालकर लाते हैं कश्मीरी?


Jammu Kashmir: कश्मीर घाटी में शून्य से नीचे का तापमान और डल झील और अंचर झील लगभग जम चुकी है, लेकिन कमल ककड़ी (Kamal Kakdi) की कटाई करने वाले किसान इस भीषण ठंड का सामना करते हुए बर्फ को तोड़कर झील के अंदर जाते हैं और फिर कमल ककड़ी को निकालने के लिए पानी में कूद जाते हैं. जिसका लुत्फ आप और हम खाने की मेज पर उठाते हैं.
उत्तर भारत में चाव से खाते हैं लोग
कश्मीर में नदरू के नाम से मशहूर कमल ककड़ी न केवल कश्मीर बल्कि पूरे उत्तर भारत में सर्दियों में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला व्यंजन है. बहुत कम लोग जानते हैं कि कमल ककड़ी में सेहत (Kamal Kakdi For Health) का खजाना छिपा है. कमल ककड़ी की कटाई के पीछे कितनी मेहनत लगती है.
श्रीनगर की डल झील और अंचर झील के आसपास रहने वाले सैकड़ों लोग कमल के तने की खेती से जुड़े हैं. इसकी कटाई केवल कड़ाके की सर्दी में ही की जाती है. किसान शिकारा लेकर झील के अंदरूनी इलाकों में जाते हैं और इस ठंडे मौसम में कमल ककड़ी को निकालने के लिए पानी में कूद जाते हैं.
ये भी पढ़ें- Allu Arjun: जब अल्लू अर्जुन CM रेवंत रेड्डी का नाम भूल गए… क्या इसे ही तौहीन मान हो गई गिरफ्तारी? जानिए INSIDE STORY
कमल ककड़ी किसान मोहम्मद अल्ताफ खांडे का कहना है कि वो बीते 15 सालों से ये काम कर रहे हैं, पहले तो ये काम बहुत मुश्किल था. वो  मई से अगस्त तक झीलों को साफ करते हैं, सर्दियों में उनके हाथ सुन्न हो जाते हैं. माइनस पांच डिग्री तापमान में भी वह कमल ककड़ी की कटाई करते हैं. खांडे ने कहा, ‘पारा चाहे माइनस हो या भारी बर्फबारी के बीच पारा चाहे माइनस में कितने ही नीचे क्यों न चला गया हो, लेकिन हमें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए यह करना ही पड़ता है. कभी-कभी झील जम जाती है तब हमें लाठी से बर्फ तोड़नी पड़ती है और फिर हम अंदर जाते हैं, हम जम जाते हैं, हम यह काम बहुत मुश्किल परिस्थितियों में करते हैं.’
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
उत्तर भारत में चाव से खाते हैं लोग
कश्मीर में नदरू के नाम से मशहूर कमल ककड़ी न केवल कश्मीर बल्कि पूरे उत्तर भारत में सर्दियों में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला व्यंजन है. बहुत कम लोग जानते हैं कि कमल ककड़ी में सेहत (Kamal Kakdi For Health) का खजाना छिपा है. कमल ककड़ी की कटाई के पीछे कितनी मेहनत लगती है.
श्रीनगर की डल झील और अंचर झील के आसपास रहने वाले सैकड़ों लोग कमल के तने की खेती से जुड़े हैं. इसकी कटाई केवल कड़ाके की सर्दी में ही की जाती है. किसान शिकारा लेकर झील के अंदरूनी इलाकों में जाते हैं और इस ठंडे मौसम में कमल ककड़ी को निकालने के लिए पानी में कूद जाते हैं.
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कमल ककड़ी किसान मोहम्मद अल्ताफ खांडे का कहना है कि वो बीते 15 सालों से ये काम कर रहे हैं, पहले तो ये काम बहुत मुश्किल था. वो  मई से अगस्त तक झीलों को साफ करते हैं, सर्दियों में उनके हाथ सुन्न हो जाते हैं. माइनस पांच डिग्री तापमान में भी वह कमल ककड़ी की कटाई करते हैं. खांडे ने कहा, ‘पारा चाहे माइनस हो या भारी बर्फबारी के बीच पारा चाहे माइनस में कितने ही नीचे क्यों न चला गया हो, लेकिन हमें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए यह करना ही पड़ता है. कभी-कभी झील जम जाती है तब हमें लाठी से बर्फ तोड़नी पड़ती है और फिर हम अंदर जाते हैं, हम जम जाते हैं, हम यह काम बहुत मुश्किल परिस्थितियों में करते हैं.’
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
कश्मीर में नदरू के नाम से मशहूर कमल ककड़ी न केवल कश्मीर बल्कि पूरे उत्तर भारत में सर्दियों में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला व्यंजन है. बहुत कम लोग जानते हैं कि कमल ककड़ी में सेहत (Kamal Kakdi For Health) का खजाना छिपा है. कमल ककड़ी की कटाई के पीछे कितनी मेहनत लगती है.
श्रीनगर की डल झील और अंचर झील के आसपास रहने वाले सैकड़ों लोग कमल के तने की खेती से जुड़े हैं. इसकी कटाई केवल कड़ाके की सर्दी में ही की जाती है. किसान शिकारा लेकर झील के अंदरूनी इलाकों में जाते हैं और इस ठंडे मौसम में कमल ककड़ी को निकालने के लिए पानी में कूद जाते हैं.
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कमल ककड़ी किसान मोहम्मद अल्ताफ खांडे का कहना है कि वो बीते 15 सालों से ये काम कर रहे हैं, पहले तो ये काम बहुत मुश्किल था. वो  मई से अगस्त तक झीलों को साफ करते हैं, सर्दियों में उनके हाथ सुन्न हो जाते हैं. माइनस पांच डिग्री तापमान में भी वह कमल ककड़ी की कटाई करते हैं. खांडे ने कहा, ‘पारा चाहे माइनस हो या भारी बर्फबारी के बीच पारा चाहे माइनस में कितने ही नीचे क्यों न चला गया हो, लेकिन हमें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए यह करना ही पड़ता है. कभी-कभी झील जम जाती है तब हमें लाठी से बर्फ तोड़नी पड़ती है और फिर हम अंदर जाते हैं, हम जम जाते हैं, हम यह काम बहुत मुश्किल परिस्थितियों में करते हैं.’
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
श्रीनगर की डल झील और अंचर झील के आसपास रहने वाले सैकड़ों लोग कमल के तने की खेती से जुड़े हैं. इसकी कटाई केवल कड़ाके की सर्दी में ही की जाती है. किसान शिकारा लेकर झील के अंदरूनी इलाकों में जाते हैं और इस ठंडे मौसम में कमल ककड़ी को निकालने के लिए पानी में कूद जाते हैं.
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कमल ककड़ी किसान मोहम्मद अल्ताफ खांडे का कहना है कि वो बीते 15 सालों से ये काम कर रहे हैं, पहले तो ये काम बहुत मुश्किल था. वो  मई से अगस्त तक झीलों को साफ करते हैं, सर्दियों में उनके हाथ सुन्न हो जाते हैं. माइनस पांच डिग्री तापमान में भी वह कमल ककड़ी की कटाई करते हैं. खांडे ने कहा, ‘पारा चाहे माइनस हो या भारी बर्फबारी के बीच पारा चाहे माइनस में कितने ही नीचे क्यों न चला गया हो, लेकिन हमें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए यह करना ही पड़ता है. कभी-कभी झील जम जाती है तब हमें लाठी से बर्फ तोड़नी पड़ती है और फिर हम अंदर जाते हैं, हम जम जाते हैं, हम यह काम बहुत मुश्किल परिस्थितियों में करते हैं.’
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
ये भी पढ़ें- Allu Arjun: जब अल्लू अर्जुन CM रेवंत रेड्डी का नाम भूल गए… क्या इसे ही तौहीन मान हो गई गिरफ्तारी? जानिए INSIDE STORY
कमल ककड़ी किसान मोहम्मद अल्ताफ खांडे का कहना है कि वो बीते 15 सालों से ये काम कर रहे हैं, पहले तो ये काम बहुत मुश्किल था. वो  मई से अगस्त तक झीलों को साफ करते हैं, सर्दियों में उनके हाथ सुन्न हो जाते हैं. माइनस पांच डिग्री तापमान में भी वह कमल ककड़ी की कटाई करते हैं. खांडे ने कहा, ‘पारा चाहे माइनस हो या भारी बर्फबारी के बीच पारा चाहे माइनस में कितने ही नीचे क्यों न चला गया हो, लेकिन हमें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए यह करना ही पड़ता है. कभी-कभी झील जम जाती है तब हमें लाठी से बर्फ तोड़नी पड़ती है और फिर हम अंदर जाते हैं, हम जम जाते हैं, हम यह काम बहुत मुश्किल परिस्थितियों में करते हैं.’
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
कमल ककड़ी किसान मोहम्मद अल्ताफ खांडे का कहना है कि वो बीते 15 सालों से ये काम कर रहे हैं, पहले तो ये काम बहुत मुश्किल था. वो  मई से अगस्त तक झीलों को साफ करते हैं, सर्दियों में उनके हाथ सुन्न हो जाते हैं. माइनस पांच डिग्री तापमान में भी वह कमल ककड़ी की कटाई करते हैं. खांडे ने कहा, ‘पारा चाहे माइनस हो या भारी बर्फबारी के बीच पारा चाहे माइनस में कितने ही नीचे क्यों न चला गया हो, लेकिन हमें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए यह करना ही पड़ता है. कभी-कभी झील जम जाती है तब हमें लाठी से बर्फ तोड़नी पड़ती है और फिर हम अंदर जाते हैं, हम जम जाते हैं, हम यह काम बहुत मुश्किल परिस्थितियों में करते हैं.’
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और अक्सर त्यौहारों पर पकाए जाते हैं चाहे वह ईद हो, नवरोज़ हो, शिवरात्रि हो. कश्मीरी रसोइये अक्सर इसे मछली, पालक, दालों और “यखनी” नामक कश्मीरी व्यंजन जो दही के साथ बनती के साथ कमल ककड़ी को बनाते हैं. कमल ककड़ी कोलेस्ट्रॉल और शुगर रहित होते हैं, और उनमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बी विटामिन और विटामिन सी होते हैं. जब हम इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं तो हमें याद नहीं आता कि एक किसान ने हमारे लिए झील के तल से इसे निकालने के लिए कितना संघर्ष किया होगा, वह भी हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
इरशाद की आपबीती
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
इरशाद अहमद कमल ककड़ी की खेती करने वाले किसान ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल काम है, हम माइनस डिग्री में काम कर रहे हैं और वह भी पानी के अंदर. इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 90 प्रतिशत लोग कमल ककड़ी की खेती से जुड़े हैं. यह हमारी कमाई  का एकमात्र ज़रिया है. जितने अधिक लोग होंगे, हम उतनी अधिक फसल ले पाएंगे. हम सर्दियों के दौरान फसल काटते हैं. मैं आभारी हूँ कि आप यहाँ आए हैं और आप लोगों को दिखाएंगे कि हम इसमें कितनी मेहनत करते हैं.’
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
500 रुपये प्रति किलोग्राम
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.
हर कोई ऐसा नहीं कर सकता कमल ककड़ी की कटाई करना एक कला है क्योंकि कटाई के दौरान ये किसान न केवल जमी हुई झीलों में कूदते हैं बल्कि अपने पैरों से यह भी जांचते हैं कि कहां और कौन सा कमल का तना कटाई के लिए तैयार है. अभी तक कमल ककड़ी की खेती और कटाई के लिए कोई मशीन नहीं बनी है. कमल की खेती का हर चरण हमेशा किसानों द्वारा उनके हाथों से ही किया जाता रहा है जिससे कभी-कभी उनके स्वास्थ्य और त्वचा पर असर पड़ता है. डल झील से मिलने वाले बेहतरीन गुणवत्ता वाले कमल ककड़ी बहुत महंगे होती हैं, इनकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है.

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