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हत्याकांड से लेकर भगवा तक: दुर्दांत डॉन प्रकाश पांडे कैसे बना महामंडलेश्वर

प्रकाश पांडे: अंडरवर्ल्ड से अध्यात्म तक का सफर

प्रकाश पांडे का नाम अंडरवर्ल्ड की दुनिया में वेहद मशहूर था। 90 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले इस डॉन ने मुंबई से लेकर वियतनाम तक अपने नेक्सस का जाल फैला रखा था। उसके नाम के आगे लोग कांपते थे, लेकिन अब ये खतरनाक अंडरवर्ल्ड डॉन एक महामंडलेश्वर के रूप में नया अध्याय लिख रहा है।

उत्तराखंड से वियतनाम तक का सफर

प्रकाश पांडे का बचपन उत्तराखंड के नैनीताल जिले के खनैइया गांव में गुजरा। पिता फौज से रिटायर्ड थे, लेकिन प्रकाश को जुर्म की रंगीन दुनिया बचपन से ही आकर्षित करती थी। बहुत ही कम उम्र में मायानगरी मुंबई का रुख करने वाला प्रकाश, नब्बे के दशक में छोटा राजन के संपर्क में आया और देखते ही देखते उसका सबसे खास गुर्गा बन गया।

दाऊद को मारने पाकिस्तान पहुंचा प्रकाश

दाऊद और छोटा राजन की दोस्ती तूटने के बाद, प्रकाश को दाऊद को ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी दी गई। इसके लिए वह पाकिस्तान तक पहुंच गया, लेकिन दाऊद को पहले ही खबर मिल जाने के कारण वह बच निकला। हालांकि, इससे प्रकाश का नाम और भी बड़ा हो गया। प्रसिद्धि और कद बढ़ने के बाद उसने छोटा राजन का साथ छोड़ दिया और फिरौती, वसूली और हत्या जैसे अपराधों में स्वतंत्र काम करने लगा।

शाहरुख खान से मांगी रंगदारी

साल 2007 में प्रकाश पांडे ने शाहरुख खान की फिल्म “ओम शांति ओम” की बंपर कमाई के बाद उसे रंगदारी के लिए फोन किया। एक सुपरस्टार से रंगदारी मांगने के बाद वह राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आ गया और अंडरवर्ल्ड में उसकी पहचान और स्थापित हो गई। इसके बाद उसने दिल्ली क्राइम ब्रांच के एसीपी राजबीर सिंह की दिन-दहाड़े हत्या कर अपनी कुख्याति को और भी बढ़ा दिया।

वियतनाम में मसाले के कारोबार की आड़ में अंडरवर्ल्ड का संचालन

एसीपी राजबीर सिंह की हत्या के बाद प्रकाश पांडे देश छोड़कर वियतनाम भाग गया, जहां उसने मसाले के कारोबार की आड़ लेकर मुंबई के अंडरवर्ल्ड को नियंत्रित करना जारी रखा। लेकिन कानून के लंबे हाथों से वह ज्यादा दिनों तक नहीं छिप सका। 2010 में उसे वियतनाम से पकड़ लिया गया और वापस भारत लाया गया।

पुलिस की गिरफ्त से बार-बार फरार

मुंबई पुलिस ने प्रकाश पांडे पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) के तहत मुक़दमा दर्ज किया। यह कानून महाराष्ट्र सरकार ने संगठित अपराधों और अंडरवर्ल्ड से जुड़े अपराधों पर लगाम कसने के लिए बनाया था। 2007 में एक पेशी के दौरान पीपी फरार हो गया, लेकिन कुछ दिनों बाद पकड़ा गया। माना जाता है कि वह लगातार पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता रहा।

आध्यात्मिकता की ओर रुख

जहां एक ओर बंटी पांडे अपने कुख्यात जीवन से ऊब गया था, वहीं दूसरी ओर जेल में रहते हुए उसने अध्यात्म की ओर रुख किया। देहरादून की सुद्धोवाला जेल में बंद रहते हुए उसे श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के साधु संतों ने देखा और प्रभावित हुए। उन्होंने उसे दीक्षा देने और उसे महामंडलेश्वर का उत्तराधिकारी बनाने का फैसला लिया।

महामंडलेश्वर के दीक्षा समारोह

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जेल में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के साधु संतों ने पहुंचकर प्रकाश पांडे को दीक्षा दी और उसे महामंडलेश्वर का उत्तराधिकारी बनाया। दीक्षा पाने के बाद, प्रकाश पांडे से साधुओं ने ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाए और वह प्रकाशानंद गिरी महाराज के नए नाम से प्रसिद्ध हुए।

क्या अध्यात्मिकता के पीछे अभी भी कुछ है?

अब सवाल उठता है कि क्या यह डॉन की कोई अगली चाल तो नहीं? क्या प्रकाश पांडे वाकई में अपराध की दुनिया को छोड़कर अध्यात्म की राह पर चल पड़ा है या यह उसकी कोई नई रणनीति है? इन सवालों का जवाब तो समय ही बता सकेगा, लेकिन इतना जरूर है कि एक अंडरवर्ल्ड डॉन का महामंडलेश्वर बन जाना एक अनोखी और चौंकाने वाली घटना है।

अंतिम विचार

प्रकाश पांडे अब अपने नए अवतार में श्री श्री प्रकाशानंद गिरी महाराज कहलाता है। किसी जमाने में इंसानी जान को मूंगफली से भी सस्ती समझने वाले इस डॉन ने अब आध्यात्मिकता का मार्ग चुन लिया है। चाहे यह उसके नए जीवन की शुरुआत हो या फिर कोई चाल, परंतु यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई एक अंडरवर्ल्ड डॉन आध्यात्मिक गुरु बन सकता है।

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