राहुल गांधी और गोहाना की जलेबी
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक नई राजनीतिक चर्चा ने जोर पकड़ा – जलेबी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी जब सोनीपत के गोहाना में चुनाव प्रचार के लिए गए थे, तो स्थानीय कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने उन्हें वहां की प्रसिद्ध जलेबी चखाई। गोहाना की जलेबी की तारीफ करते हुए राहुल गांधी ने इसे अपनी बहन प्रियंका गांधी के लिए भी ले जाने की बात कही।
सोशल मीडिया पर जलेबी का जोश
चुनावी नतीजों के बाद जलेबी की चर्चा ने सोशल मीडिया पर आग लगा दी। लोग इसे लेकर मजेदार मीम्स और टिप्पणियाँ करने लगे। कांग्रेस की जलेबी की तारीफ को लेकर बीजेपी समर्थकों ने तंज कसा। उनके अनुसार, जलेबी का जिक्र चुनाव परिणामों की तुलना में ज्यादा चर्चित हो गया था।
दुकानदार का नजरिया
गोहाना में जलेबी बनाने वाले दुकानदार ने राहुल गांधी की तारीफ पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह जलेबी शुद्ध देसी घी में बनाई गई है और यह लंबे समय तक खराब नहीं होती। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह किसी फैक्ट्री का उत्पाद नहीं है बल्कि उनके खुद के दुकान का खास उत्पाद है। दुकान पर काम करने वाले दस लोग यही सुनिश्चित करते हैं कि जलेबी की गुणवत्ता उच्चतम स्तर की हो।
राजनीतिक विवाद का नया अंदाज
राहुल गांधी के जलेबी को लेकर बयान का हरियाणा की जनता और बीजेपी समर्थकों ने खूब मजाक बनाया। वे चुनावी नतीजों की तुलना जलेबी जैसे मीठे और चक्करदार परिणामों से करने लगे। बीजेपी समर्थकों ने इसे विकास की जलेबी का तंज दिया। जनता का कहना था कि जलेबी की तरह विकास को भी हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए।
चुनावी परिणामों के अप्रत्याशित मोड़
हरियाणा में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाकर इतिहास रच दिया, हालांकि शुरुआती मतगणना में कांग्रेस आगे चल रही थी। एग्ज़िट पोल्स की भविष्यवाणी के बावजूद बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ दिया और अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही। कांग्रेस 36 सीटों पर सिमट गई, जबकि बीजेपी ने 90 सीटों वाली विधानसभा में 48 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया।
जलेबी और राजनीति का अटूट बंधन
जलेबी का यह मामला न केवल सिंघाड़े तक सीमित रहा बल्कि यह चुनावों के सियासी मिश्रण में भी एक दिलचस्प और मीठा मोड़ ले आया। इस घटना ने स्पष्ट किया कि कैसे छोटी-छोटी चीजें भारतीय राजनीति में बड़ा असर डाल सकती हैं।
इस प्रकार, हरियाणा विधानसभा चुनाव और जलेबी के इस उपखंड ने यह दिखा दिया कि किस प्रकार लोगों और नेताओं के व्यक्तिगत अनुभव भी व्यापक राजनीतिक चर्चाओं का विषय बन सकते हैं। अब देखना होगा कि यह राजनीतिक मिठास और चक्कर संसद के गलियारों में कैसे और कब तक बनी रहती है।