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17 साल पहले घर के गेट पर मिला था 15 लाख कैश अब रिटायर्ड जस्टिस निर्मल यादव हुईं बरी


पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस निर्मल यादव को 17 साल पुराने कैश कांड में बड़ी राहत मिली है और घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में चंडीगढ़ की विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को निर्मल यादव को बरी कर दिया. विशेष अदालत ने निर्मल यादव के अलावा अन्य चार आरोपियों को भी बरी कर दिया हैं. इस मामले में, 13 अगस्त 2008 को हाई कोर्ट की एक अन्य कार्यरत जज जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर कथित रूप से 15 लाख रुपये से भरा एक पैकेट गलत तरीके से पहुंचा दिया गया था. आरोप लगाया गया था कि यह नकदी न्यायमूर्ति निर्मल यादव को एक संपत्ति सौदे को प्रभावित करने के लिए रिश्वत के रूप में दी जानी थी.
लगाए गए थे झूठे आरोप
विशेष सीबीआई जज अलका मलिक की अदालत ने शनिवार को फैसला सुनाया. बचाव पक्ष के वकील विशाल गर्ग नरवाना ने बताया कि अदालत ने पूर्व जस्टिस निर्मल यादव और चार अन्य को बरी कर दिया है. मामले में कुल पांच आरोपी थे, जिनमें से एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई. नरवाना ने संवाददाताओं से कहा, ‘अदालत ने मामले में फैसला सुनाया है. जस्टिस (रिटायर्ड) निर्मल यादव को बरी कर दिया गया है. उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे.’
न्याय मिलने में क्यों लग गए 17 साल?
आरोपी राजीव गुप्ता और संजीव बंसल के वकील बी एस रियार ने कहा, ‘हां, इस फैसले में 17 साल लग गए, लेकिन यह बचाव पक्ष के वकील की गलती नहीं थी. देरी सीबीआई की ओर से हुई, क्योंकि वे हाई कोर्ट से अनुमति मांगते रहे और अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाह पेश करते रहे.’ वकील ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार न्याय हुआ है. हमें राहत है कि भले ही इसमें देरी हुई, लेकिन अंत में सही फैसला हुआ.’ अदालत ने गुरुवार को जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दर्ज मामले में अंतिम दलीलें सुनी थीं और फैसला सुनाने के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी.
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी. मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में ‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है. जस्टिस वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है.
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
लगाए गए थे झूठे आरोप
विशेष सीबीआई जज अलका मलिक की अदालत ने शनिवार को फैसला सुनाया. बचाव पक्ष के वकील विशाल गर्ग नरवाना ने बताया कि अदालत ने पूर्व जस्टिस निर्मल यादव और चार अन्य को बरी कर दिया है. मामले में कुल पांच आरोपी थे, जिनमें से एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई. नरवाना ने संवाददाताओं से कहा, ‘अदालत ने मामले में फैसला सुनाया है. जस्टिस (रिटायर्ड) निर्मल यादव को बरी कर दिया गया है. उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे.’
न्याय मिलने में क्यों लग गए 17 साल?
आरोपी राजीव गुप्ता और संजीव बंसल के वकील बी एस रियार ने कहा, ‘हां, इस फैसले में 17 साल लग गए, लेकिन यह बचाव पक्ष के वकील की गलती नहीं थी. देरी सीबीआई की ओर से हुई, क्योंकि वे हाई कोर्ट से अनुमति मांगते रहे और अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाह पेश करते रहे.’ वकील ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार न्याय हुआ है. हमें राहत है कि भले ही इसमें देरी हुई, लेकिन अंत में सही फैसला हुआ.’ अदालत ने गुरुवार को जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दर्ज मामले में अंतिम दलीलें सुनी थीं और फैसला सुनाने के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी.
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी. मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में ‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है. जस्टिस वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है.
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
विशेष सीबीआई जज अलका मलिक की अदालत ने शनिवार को फैसला सुनाया. बचाव पक्ष के वकील विशाल गर्ग नरवाना ने बताया कि अदालत ने पूर्व जस्टिस निर्मल यादव और चार अन्य को बरी कर दिया है. मामले में कुल पांच आरोपी थे, जिनमें से एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई. नरवाना ने संवाददाताओं से कहा, ‘अदालत ने मामले में फैसला सुनाया है. जस्टिस (रिटायर्ड) निर्मल यादव को बरी कर दिया गया है. उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे.’
न्याय मिलने में क्यों लग गए 17 साल?
आरोपी राजीव गुप्ता और संजीव बंसल के वकील बी एस रियार ने कहा, ‘हां, इस फैसले में 17 साल लग गए, लेकिन यह बचाव पक्ष के वकील की गलती नहीं थी. देरी सीबीआई की ओर से हुई, क्योंकि वे हाई कोर्ट से अनुमति मांगते रहे और अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाह पेश करते रहे.’ वकील ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार न्याय हुआ है. हमें राहत है कि भले ही इसमें देरी हुई, लेकिन अंत में सही फैसला हुआ.’ अदालत ने गुरुवार को जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दर्ज मामले में अंतिम दलीलें सुनी थीं और फैसला सुनाने के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी.
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी. मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में ‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है. जस्टिस वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है.
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
न्याय मिलने में क्यों लग गए 17 साल?
आरोपी राजीव गुप्ता और संजीव बंसल के वकील बी एस रियार ने कहा, ‘हां, इस फैसले में 17 साल लग गए, लेकिन यह बचाव पक्ष के वकील की गलती नहीं थी. देरी सीबीआई की ओर से हुई, क्योंकि वे हाई कोर्ट से अनुमति मांगते रहे और अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाह पेश करते रहे.’ वकील ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार न्याय हुआ है. हमें राहत है कि भले ही इसमें देरी हुई, लेकिन अंत में सही फैसला हुआ.’ अदालत ने गुरुवार को जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दर्ज मामले में अंतिम दलीलें सुनी थीं और फैसला सुनाने के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी.
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी. मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में ‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है. जस्टिस वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है.
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
आरोपी राजीव गुप्ता और संजीव बंसल के वकील बी एस रियार ने कहा, ‘हां, इस फैसले में 17 साल लग गए, लेकिन यह बचाव पक्ष के वकील की गलती नहीं थी. देरी सीबीआई की ओर से हुई, क्योंकि वे हाई कोर्ट से अनुमति मांगते रहे और अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाह पेश करते रहे.’ वकील ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार न्याय हुआ है. हमें राहत है कि भले ही इसमें देरी हुई, लेकिन अंत में सही फैसला हुआ.’ अदालत ने गुरुवार को जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दर्ज मामले में अंतिम दलीलें सुनी थीं और फैसला सुनाने के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी.
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी. मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में ‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है. जस्टिस वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है.
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था. आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी. मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में ‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है. जस्टिस वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है.
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
इस केस में कब क्या हुआ?
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
जस्टिस निर्मल यादव के घर के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था. दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया. सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी.
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)
सीबीआई ने चार मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड हाई कोर्ट में जज थीं. उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से ट्रांसफर किया गया था. विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में जस्टिस यादव के खिलाफ आरोप तय किए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी. सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया. मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की. 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की.(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)

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