प्रस्तावना
मुंबई की एक अदालत ने 40 साल पुराने बलात्कार के मामले में आरोपी को बरी कर दिया है। मामले का फैसला हाल ही में सुनाया गया, जिसमें सबूतों के अभाव के कारण आरोपी को निर्दोष करार दिया गया। यह मामला चार दशक पहले का है, जब आरोपी 30 साल का था और उस पर 15 साल की एक लड़की से बलात्कार का आरोप था।
मामले का विवरण
मुंबई की डीबी मार्ग पुलिस थाने में 1984 में पहली बार मुकदमा दर्ज किया गया था। इसे पीड़िता की सास द्वारा दर्ज कराया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता, जो उस समय 15 वर्ष की थी, शौच के लिए घर से बाहर निकली थी लेकिन वापस नहीं लौटी। पीड़ित परिवार ने इस घटना के लिए दाऊद बंदू खान उर्फ पापा को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने आरोप लगाया कि खान ने लड़की का अपहरण किया और उसके साथ बलात्कार किया।
फरारी और परिवारिक हालात
1984 में ही आरोपित दाऊद खान के खिलाफ बलात्कार और अपहरण का मुकदमा दर्ज किया गया था। वह तब आगरा भाग गया था, जहां वह और पीड़िता साथ रहने लगे। दोनों ने बाद में शादी कर ली और उनके चार बच्चे भी हुए। हालांकि, खान 1986 में फरार हो गया और तब से उसे पकड़ने में किसी को सफलता नहीं मिली। 2024 में मुंबई पुलिस ने इसे उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया।
चार दशक तक चला ट्रायल
1985 में दाऊद बंदू खान के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी, लेकिन उसके तुरंत बाद ही वह फरार हो गया। 1986 में उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था। अदालत में पेश किए जाने के बाद, लगभग चार दशक तक यह मामला अदालत में चला। मामले की सुनवाई के दौरान, पीड़िता की मौत हो चुकी थी, और यहां तक कि शिकायत करने वाली उसकी मां भी गुजर चुकी थी।
अदालत का निर्णय
मंगलवार को, चार दशकों तक चले ट्रायल के बाद, सेशंस कोर्ट ने दाऊद खान को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ऐसा कोई सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे यह साबित होता कि खान ने अपराध किया था। निर्णय लेते समय, जज माधुरी एम देशपांडे ने कहा, “प्रकरण बेहद पुराना है और आरोपी हिरासत में है, इसलिए शीर्ष प्राथमिकता प्रकरण के निपटारे को दी जानी चाहिए।”
बचाव पक्ष का पक्ष
खान के वकील ने दावा किया कि उसे झूठे मुकदमे में फंसाया गया था। अदालत ने पीड़िता की चचेरी बहन की गवाही सुनी, जिसमें उसने बताया कि पीड़िता और खान एक-दूसरे से प्रेम करते थे और यह बात परिवार को पता चल गई थी। इसके बाद दोनों घर छोड़कर भाग गए और शादी कर ली। बहन ने यह भी बताया कि पीड़िता के अलावा उसके दो बच्चों की भी मौत हो चुकी है।
बीते वक्त की जटिलाएं
अदालत ने यह भी माना कि अभियोजन पक्ष ऐसा कोई सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका जो यह साबित करता कि घटना के समय लड़की नाबालिग थी। जज ने कहा, “प्रकरण की पुरानी तारीख और सबूतों के अभाव को देखते हुए, आरोपी को बरी किए जाने का हकदार है।”
सरकार और पुलिस की प्रतिक्रिया
मुंबई पुलिस ने इसी साल मई में दाऊद बंदू खान को गिरफ्तार किया था। पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए, पुलिस ने इस केस को पूरी प्रतिबद्धता के साथ संभाला। हालांकि, कई सालों बाद भी, कोई निर्णायक सबूत नहीं पेश किया जा सका।
सामाजिक दृष्टिकोण
इस मामले से संबंधित न्यायालय का यह निर्णय समाज में कई सवाल खड़े करता है विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहां पीड़िता और शिकायतकर्ता इस दुनिया में नहीं हैं। यह भी दर्शाता है कि समय के साथ-साथ सबूतों की कमी और पुराने मामलों की जटिलताओं से निपटना कितना कठिन हो सकता है।
निष्कर्ष
चार दशक पुराने इस मामले का अधूरा ट्रायल और अंततः निर्णय हमारे न्यायिक प्रणाली की समस्याओं को उजागर करता है। न्याय की मांग सिर्फ अदालतों से नहीं, बल्कि पूरे समाज से है। ऐसे मामलों में समय पर न्याय होना अत्यंत आवश्यक है ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और अपराधियों को उचित सजा दी जा सके।
मार्गदर्शक सिद्धान्त के रूप में, यह मामला हमें यह भी सिखाता है कि इंसानी जीवन की जटिलताओं को न्यायिक प्रक्रियाओं के माध्यम से सही दिशा में ले जाना कितना महत्वपूर्ण है। बिना सबूत के दोषारोपण और साक्ष्य की कमी जैसी चुनौतियों के बीच न्याय दिलाना कठिन हो जाता है, लेकिन सही दिशा में प्रयास करना हमारी जिम्मेदारी है।