Holi 2025: क्या आपने कभी सुना है कि एक ट्रेन को रोकने के लिए उसके चालक पर कानूनी रोक लगा दी जाए? यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि सचमुच की घटना है.. जो 1999 की होली के दिन घटी थी. उस दिन रंगों का त्योहार अपने पूरे जोश में था. और दूसरी तरफ हज तीर्थयात्री दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ने वाले थे. लेकिन उत्तर प्रदेश के मऊ शहर में प्रशासन को डर था कि कहीं होली के हुड़दंग और तीर्थयात्रियों की भीड़ के बीच टकराव न हो जाए. नतीजतन प्रशासन ने ऐसा अनोखा कदम उठाया जो भारत के इतिहास में पहली बार हुआ. ट्रेन को रोकने के लिए लोको पायलट पर निषेधाज्ञा लगा दी गई. इस घटना के 26 साल बाद एक बार फिर 2025 में भी होली और रमजान एक साथ आ रहे हैं और प्रशासन फिर से शांति बनाए रखने की जुगत में जुटा है.
1999 की होली
बात 1999 के फाल्गुन महीने की है. होली का दिन था और मऊ शहर में रंगों का उल्लास चरम पर था. इसी दिन बड़ी संख्या में हज तीर्थयात्री मऊ से दिल्ली के लिए ट्रेन में सवार होने वाले थे. ये लोग सफेद कपड़े पहने हुए थे और मक्का की पवित्र यात्रा के लिए निकले थे. लेकिन मऊ का इतिहास सांप्रदायिक झड़पों से भरा रहा है. ऐसे में जिला प्रशासन को चिंता हुई कि होली के हुड़दंगियों और तीर्थयात्रियों का आमना-सामना न हो जाए. ट्रेन दोपहर में पहुंचने वाली थी.. जब होली का जोश अपने चरम पर होता है. प्रशासन ने सोचा कि अगर इन दोनों समूहों का टकराव हुआ तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.
रेलवे से मदद की गुहार
प्रशासन ने इस मुश्किल को टालने के लिए रेलवे से संपर्क किया. अधिकारियों ने अनुरोध किया कि ट्रेन को कुछ घंटों के लिए रोक दिया जाए ताकि होली का उल्लास थम जाए और तीर्थयात्री सुरक्षित निकल सकें. लेकिन रेलवे ने साफ मना कर दिया. उनका कहना था कि ट्रेनों की समय-सारिणी में बदलाव नहीं हो सकता चाहे हालात कितने भी नाजुक क्यों न हों. रेलवे के लिए समय पर चलना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. अब प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती थी.. न तो ट्रेन रुक रही थी, ना ही हालात को हल्के में लिया जा सकता था.
ट्रेन चालक पर लगी निषेधाज्ञा
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
1999 की होली
बात 1999 के फाल्गुन महीने की है. होली का दिन था और मऊ शहर में रंगों का उल्लास चरम पर था. इसी दिन बड़ी संख्या में हज तीर्थयात्री मऊ से दिल्ली के लिए ट्रेन में सवार होने वाले थे. ये लोग सफेद कपड़े पहने हुए थे और मक्का की पवित्र यात्रा के लिए निकले थे. लेकिन मऊ का इतिहास सांप्रदायिक झड़पों से भरा रहा है. ऐसे में जिला प्रशासन को चिंता हुई कि होली के हुड़दंगियों और तीर्थयात्रियों का आमना-सामना न हो जाए. ट्रेन दोपहर में पहुंचने वाली थी.. जब होली का जोश अपने चरम पर होता है. प्रशासन ने सोचा कि अगर इन दोनों समूहों का टकराव हुआ तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.
रेलवे से मदद की गुहार
प्रशासन ने इस मुश्किल को टालने के लिए रेलवे से संपर्क किया. अधिकारियों ने अनुरोध किया कि ट्रेन को कुछ घंटों के लिए रोक दिया जाए ताकि होली का उल्लास थम जाए और तीर्थयात्री सुरक्षित निकल सकें. लेकिन रेलवे ने साफ मना कर दिया. उनका कहना था कि ट्रेनों की समय-सारिणी में बदलाव नहीं हो सकता चाहे हालात कितने भी नाजुक क्यों न हों. रेलवे के लिए समय पर चलना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. अब प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती थी.. न तो ट्रेन रुक रही थी, ना ही हालात को हल्के में लिया जा सकता था.
ट्रेन चालक पर लगी निषेधाज्ञा
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
बात 1999 के फाल्गुन महीने की है. होली का दिन था और मऊ शहर में रंगों का उल्लास चरम पर था. इसी दिन बड़ी संख्या में हज तीर्थयात्री मऊ से दिल्ली के लिए ट्रेन में सवार होने वाले थे. ये लोग सफेद कपड़े पहने हुए थे और मक्का की पवित्र यात्रा के लिए निकले थे. लेकिन मऊ का इतिहास सांप्रदायिक झड़पों से भरा रहा है. ऐसे में जिला प्रशासन को चिंता हुई कि होली के हुड़दंगियों और तीर्थयात्रियों का आमना-सामना न हो जाए. ट्रेन दोपहर में पहुंचने वाली थी.. जब होली का जोश अपने चरम पर होता है. प्रशासन ने सोचा कि अगर इन दोनों समूहों का टकराव हुआ तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.
रेलवे से मदद की गुहार
प्रशासन ने इस मुश्किल को टालने के लिए रेलवे से संपर्क किया. अधिकारियों ने अनुरोध किया कि ट्रेन को कुछ घंटों के लिए रोक दिया जाए ताकि होली का उल्लास थम जाए और तीर्थयात्री सुरक्षित निकल सकें. लेकिन रेलवे ने साफ मना कर दिया. उनका कहना था कि ट्रेनों की समय-सारिणी में बदलाव नहीं हो सकता चाहे हालात कितने भी नाजुक क्यों न हों. रेलवे के लिए समय पर चलना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. अब प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती थी.. न तो ट्रेन रुक रही थी, ना ही हालात को हल्के में लिया जा सकता था.
ट्रेन चालक पर लगी निषेधाज्ञा
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
रेलवे से मदद की गुहार
प्रशासन ने इस मुश्किल को टालने के लिए रेलवे से संपर्क किया. अधिकारियों ने अनुरोध किया कि ट्रेन को कुछ घंटों के लिए रोक दिया जाए ताकि होली का उल्लास थम जाए और तीर्थयात्री सुरक्षित निकल सकें. लेकिन रेलवे ने साफ मना कर दिया. उनका कहना था कि ट्रेनों की समय-सारिणी में बदलाव नहीं हो सकता चाहे हालात कितने भी नाजुक क्यों न हों. रेलवे के लिए समय पर चलना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. अब प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती थी.. न तो ट्रेन रुक रही थी, ना ही हालात को हल्के में लिया जा सकता था.
ट्रेन चालक पर लगी निषेधाज्ञा
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
प्रशासन ने इस मुश्किल को टालने के लिए रेलवे से संपर्क किया. अधिकारियों ने अनुरोध किया कि ट्रेन को कुछ घंटों के लिए रोक दिया जाए ताकि होली का उल्लास थम जाए और तीर्थयात्री सुरक्षित निकल सकें. लेकिन रेलवे ने साफ मना कर दिया. उनका कहना था कि ट्रेनों की समय-सारिणी में बदलाव नहीं हो सकता चाहे हालात कितने भी नाजुक क्यों न हों. रेलवे के लिए समय पर चलना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. अब प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती थी.. न तो ट्रेन रुक रही थी, ना ही हालात को हल्के में लिया जा सकता था.
ट्रेन चालक पर लगी निषेधाज्ञा
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
ट्रेन चालक पर लगी निषेधाज्ञा
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
जब रेलवे ने मदद से इनकार कर दिया तो मऊ के अधिकारियों ने एक साहसिक और अनोखा कदम उठाया. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किया. यह धारा आमतौर पर भीड़ को काबू करने या शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है. लेकिन इस बार इसे ट्रेन रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया. लोको पायलट यानी ट्रेन चालक को सीधे निषेधाज्ञा का आदेश दिया गया. उसे कानूनी तौर पर हिदायत दी गई कि वह ट्रेन को पड़ोसी जिले के स्टेशन से आगे न बढ़ाए. यह भारत के इतिहास में पहला मौका था.. जब इस कानून का ऐसा इस्तेमाल हुआ.
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
ट्रेन रुकी.. शांति बनी रही
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
इस फैसले के बाद ट्रेन कुछ घंटों तक रुकी रही. यह कोई तकनीकी खराबी या देरी की वजह से नहीं बल्कि कानून के दम पर किया गया था. पुलिस और दूसरे अधिकारी ट्रेन के साथ तैनात किए गए ताकि कोई गड़बड़ी न हो. होली का उल्लास थमने के बाद तीर्थयात्री शांति से ट्रेन में सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल गए. इस अनोखे कदम की चर्चा उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपनी किताब “थ्रू माई आइज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक” में की है. उन्होंने लिखा कि यह फैसला कितना जरूरी और असामान्य था.
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
2025 में फिर चुनौती
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
अब 26 साल बाद 2025 में भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस बार होली शुक्रवार 14 मार्च को पड़ रही है और रमजान का पवित्र महीना भी चल रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे संवेदनशील इलाकों में प्रशासन फिर से सतर्क है. यहां जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही दिन पर हैं. प्रशासन चाहता है कि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव मनाएं और शांति बनी रहे. लेकिन हाल ही में संभल के एक पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग होली के रंगों से परेशान हैं उन्हें घर में रहना चाहिए क्योंकि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है.
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
संभल का तनाव
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
संभल में पहले भी तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. तब से शहर में तनाव का माहौल है. अब होली और रमजान के इस संयोग ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अधिकारी हर हाल में शांति बनाए रखना चाहते हैं ताकि 1999 की तरह कोई अनोखा कदम न उठाना पड़े.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
(एजेंसी इनपुट के साथ)
